मुझे नहीं पता, कैसे कैसे लोग यहाँ पर रहते है (कविता)
Saturday, Apr 28, 2018 - 02:26 PM (IST)
मुझे नहीं पता, कैसे कैसे लोग यहाँ पर रहते है,
कैसी इनकी सोच है, कैसे ये सब करते है,
बहन बेटियो को समझ लिया बस एक खिलौना है,
कैसे करते है ये सब, जबकि ये कर्म घिनौना है,
कैसा दिल रखते है ये, कैसे करते हैवानियत,
क्या खुद की बेटी नहीं दिखी जो भूल गए इंसानियत,
द्रोपदी चिर हरण का पन्ना फिर से एक बार खोल दिया,
नहीं है हम इंसान, हैवान है हम ये बोल दिया,
बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ, ये नारा है किस काम का,
जब इज्जत लूटी जा रही, हर राज्य (परिवार) के हर एक गांव (बेटी) का,
उठा लिया अब हाथ बहोत, मारने और धमकाने को,
उठे अगर अब हाथ तो केवल, बेटी के इज्जत को बचाने को,
उठे अगर अब हाथ किसी का, चिर हरण करवाने को,
उखाड़ दो हर वो हाथ और जला दो उन हैवानो को,
जिस दिन लग जाएगी आग सब हैवानो की बस्ती में,
फिर घूमेंगी बेटियां बेफिक्र अंघेरी कस्ती में,
बस इसी दिन का इंतजार, पर पता नही कब दिन आएगा,
जब हर इंसान, हर स्त्री के सम्मान में आगे आएगा,
जब हर इंसान, हर स्त्री के सम्मान में आगे आएगा।
प्रमोद कुमार दुबे