श्रमिक व्यथा

Tuesday, Jun 23, 2020 - 12:55 PM (IST)

इस लिए यहाँ से, कर रहे हम हिजरत। 
रोटी न मिली हमको, मिली न कोई उजरत। 

बीमारी से न मरते, भूख से हम मर जाते
किसी ने न जाना, क्या थी मेरी जरूरत। 

कब खुलेगें ताले इन कारखानों, दुकानों के
कब निकलेगा आखिर कोई महूर्त। 

भूखे हैं बच्चे,माँ बाप, लाचार हूँ आज कितना
कैसे निकलूँ इससे, बताओ कोई सूरत। 

करोड़ों का दान हजम हो गया मेरे नाम से
यही तो है राजनेताओं की फितरत । 

(सुरिंदर कौर)

Riya bawa

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