रे मन
Wednesday, Jun 03, 2020 - 01:56 PM (IST)
रे मन -
धीर धर,
क्यों है चिंतित,
न हो व्यथित ,
बैठ शांति से,
व्याकुल, मत हो |
जो हो रहा है,
मानव कर्मों का फल ही तो है,
कुछ क्षण शांत होकर तो सोच,
प्रकृति से कर लिया तूने
खिलवाड़ बहुत,
सहना तो पड़ेगा ही अब |
कर संतोष अभी,
प्रकृति ने तानी है भृकुटि ही केवल,
विवश मत कर और उसे,
तांडवता मचाने पर,
हो सके जितना,
कर सामना - हो कर निडर,
दे योगदान भरपूर ,
कर मानव सेवा
मत भूल,
है समाधान हर समस्या का,
उठ, सीमित रहकर ‘लक्छमण रेखा’ में,
सामना कर ‘होनी’ का,
दे धन्यवाद विधाता को,
होकर विनम्र,
हर नव पल जीने का,
कर साहस,
टल जाएगी यह विपदा भी,
रे मन - धीर धर ||
(भगवान दास मोटवानी)