अंतरराष्ट्रीय वाणिज्यिक फसलों से हो सकता है हिमालयी क्षेत्रों का उत्थान

punjabkesari.in Friday, Jan 12, 2018 - 03:34 PM (IST)

पिछले 16 वर्षों से निजी तौर से अंतराष्ट्रीय वाणिज्यिक फसलों पर शोध व प्रासार में लगे जिला बिलासपुर की घुमारवीं तहसील के डॉ विक्रम शर्मा ने अपने अनुभवों को शेयर करते हुए बताया कि हिमाचल प्रदेश व उत्तराखण्ड दोनों राज्य सूखे मेवों व अन्य अंतराष्ट्रीय स्तर के फलों के लिए हर तरह से उपयुक्त हैं। डॉ शर्मा ने बताया कि हमारे देश का लगभग 60% सूखा मेवा बाहरी देशों से मंगवाया जाता है जिनमे अफगानिस्तान, ईरान,तुर्की अमेरिका व चीन आदि है परन्तु हमारे पास उपयुक्त जलवायु होने के बावजूद भी इस ओर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। 

 

भारत सरकार के कॉफ़ी बोर्ड मण्डल सदस्य डॉ विक्रम शर्मा ने कहा कि उन्होंने 1999 में सर्वप्रथम कॉफ़ी की पौध अपने खेतों में ट्रायल के तौर पर उगाई थी जो मात्र तीसरे वर्ष ही फल देने लग पड़ी परन्तु सरकार के किसानों के प्रति विपरीत रवैये के कारण इसे वाणिज्यिक तौर पर लगवा पाना तथा किसानों को इसके लिए प्रयोजित करना सही ढंग से नहीं हो पाया। डॉ विक्रम ने हिमालयी क्षेत्रों की समस्याओं पर बोलते हुए कहा कि जंगली जानवरों व आवारा पशुओं के कारण किसान खेती छोड़ने को मजबूर हो चुके हैं, पारम्परिक फसलें बर्बाद होती जा रही हैं, आगामी पीढ़ी इन्ही परिस्थितियों को देखते हुए पलायन के लिए मजबूर होती जा रही है तथा लगातार हमारे हिमालयी क्षेत्र बंजर होते जा रहे हैं जो हमारे लिए एक बहुत बड़ा चिंता का विषय है तथा इस पर गंभीर सोच के साथ परिस्थितियों को समझते हुए पर्यावरण के साथ समायिक शोध पर ध्यान देना चाहिए जिसमें स्थानीय प्रदेश सरकारों के साथ भारत सरकार को इस मुद्दे को गंभीरता से लेना होगा। 

 

डॉ विक्रम ने बताया कि उन्होंने निजी तौर से वाणिज्यिक फसलों को शोध व प्रासार के लिए एक मुहीम शरू की है जिसका लक्ष्य मात्र युवायों व किसानों को पलायन से रोकना व उनका आर्थिक सवावलम्बन है। डॉ शर्मा ने बताया कि उन्होंने कॉफ़ी, अंजीर, अवोकेडो, विष्वस्तरीय अंगूर की कुछेक किस्में, हींग ,पिस्ता दालचीनी, अत्यंत वैश्विक मांग वाले अखरोट, कीवी, तथा अन्य पारम्परिक फलदार पौधे जिनमे आम,सेब व प्रूनस की भी ऐसी पौध जिनकी मार्केट में अत्यधिक मांग है को भी मंगवा कर किसानों को उपलव्ध करवाया या करवाना है ताकि हमारे युवा कृषि बाग़वानी को अपना कर इसे स्वरोजगार के रूप में अपनाएं जिससे प्रदेश का आर्थिक विकास व युवायों का आर्थिक स्वावलम्बन हो सके। डॉ शर्मा ने बताया कि आगामी सत्र में कॉफ़ी के करीब एक से सवा लाख पौधे किसानों को उपलव्ध करवाए जाएंगे जिसका पूरा जिम्मा उन्होंने खुद उठाया है। 

 

डॉ विक्रम शर्मा ने बताया कि उन्होंने कॉफ़ी पर खुद हर तरह का शोध किया है तथा उसी को मध्यनजर रखते हुए तीन किस्मों के चयन हिमाचल प्रदेश के लिए किया गया है। डॉ विक्रम शर्मा ने बताया कि सरकारी महकमों का तो आलम यह है कि उन्होंने पहली बार हींग का बीज भारत में मंगवाया परन्तु हिमाचल प्रदेश के कृषि व बागवानी बिभाग को बार बार खबर व मुफ्त में बीज देने पर भी उन्होंने आनाकानी ही कि तथा इस वाणिज्यिक फसल पर कोई भी प्रासार व शोध के लिए कोई जहमत नहीं उठाई। डॉ विक्रम शर्मा ने बताया कि विश्व के कुल हींग उत्त्पादन का 40 % हींग गम भारत वर्ष में प्रयोग होता है परन्तु माकूल मौसम व परिस्थितयां होने के बावजूद भी इसके उगाने के लिए आजतक कोई प्रयास नहीं किए गए। इसी प्रकार उन्होंने कहा कि हमारे देश में पिस्ता की खपत कुल उत्त्पादन का 28% है परन्तु हर तरह से माकूल मौसम व भूगोलिक परिस्थितियां होने पर भी इस पर भी कोई शोध नहीं हो पाया। 

 

डॉ विक्रम शर्मा ने हिमाचल प्रदेश में नई सरकार से उम्मीद जाहिर करते हुए कहा कि एक किसान का बेटा मुख्यमंत्री के पद पर बिराजमान हुआ है तथा पलायन व आर्थिक तंगी से परेशानी को बखूवी समझते हैं से उम्मीद जाहिर करते हुए कहा कि इनके कार्यकाल में किसानों व बागवानों के उत्थान के लिए नए आयाम स्थापित किये जाएंगे जिससे युवायों व किसानों को अंतराष्ट्रीय स्तर की फसलें उगा कर आर्थिक स्वावलम्बी बनाया जाएगा। डॉ शर्मा ने भारत सरकार के प्रधानमन्त्री व कृषि मंत्री से भी गुहार लगाते हुए कहा कि हिमालयी राज्यों के लिए भी उत्तरी पूर्व राज्यों की तरह हिमालयी राज्य बागवानी व कृषि उत्थान बोर्ड का गठन किया जाए ताकि स्थानीय सरकारों के साथ भारत सरकार की मदद सीधे कृषकों व बागवानों तक पहुंच सके तथा हमारे युवा इसका लाभ उठा कर वाणिज्यिक फसलों से स्वावलम्बन की राह पर अग्रसर हो सकें।

 

डॉ विक्रम शर्मा


 


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