भले अमरदास गुण तेरे

punjabkesari.in Thursday, May 03, 2018 - 03:03 PM (IST)

श्री गुरू नानक देव जी की तीसरी ज्योत श्री गुरू अमरदास जी शरीरक तौर पर निसंदेह उम्र क उस अवस्था में थे यहां पहुँच के आम मनुष्य जिसमानी तौर पर कुछ थकावट और रूकावट महसूस करने लग जाता है पर धन्य है श्री गुरू अमरदास जी जिन्होंने सेवा और सिमरन की बदौलत जीवन में पड़ चुकी शाम को एक शिखर दोपहर में ढाल लिया। उनके द्वारा जो सेवा अध्यात्मक और सामाजिक क्षेत्र में मानव कल्याण के हित की गई है वह बहुमूल्य होने के साथ-साथ लासानी किस्म की भी है। आयु के आखरी चरण में उन्होंने श्री गुरू अंगद देव जी को तन-मन से समर्पित हो कर ना सिर्फ अपनी सेवा को ही सफल किया बल्कि कई वर्ष बाबे नानक की विचारधारा के प्रचार तथा प्रसार में भी लगा दिए। गुरू जी द्वारा इस विचारधारा को दूर-दूर तक पहुँचाने के लिए नए ढंग और तरीक को उपयोग में लाया गया। यह ढंग और तरीके ना सिर्फ समय की जरूरत मुताबिक खरे ही उतरे बल्कि पूर्ण रूप में कामयाब भी हुए। इस कामयाबी के कारण ही भाट ‘भल’ जी $फुरमाते हैं:

 

घनहर बंूद, वसुय रोमाविल, कुसम बसंत,गनत न आवै।।
रवि ससि किरणि,उदरु सागर को,गंग तरंग अंतु को पावै।।
रुद्र ध्यान,ज्ञान सतगुर के कवि जन भल उन्हु जो गावै।।
भले अमरदास गुण तेरे,तेरी उपमा तोहि बनि आवै।। 2।।

 

मानवीय समता के समर्थक श्री गुरू अमरदास जी का जन्म वैशाख शुक्ल पक्ष एकादशी सम्वत् 1536 अर्थात 5 मई 1479 ई0 को अमृतसर जिले के गाँव बासरके गिल में हुआ। आप जी के पिता का नाम श्री तेजभान भल्ला एवं माता का नाम लखमी देवी (कुछ लेखकों के अनुसार माता सुलखनी और बख्त कौर भी है) था। पिता तेजभान जी का जीवन साधारण परन्तु चरित्र बहुत ऊँचा था। वह एक सनातनी हिन्दू थे और हर वर्ष गंगा जी दर्शन के लिए हरिद्वार जाया करते थे। 23 साल की आयु में श्री गुरू अमरदास जी का विवाह स्यालकोट जिले के गाँव सनखड़ा के निवासी देवी चंद की पुत्री मनसा देवी के साथ हुआ। आपके घर दो पुत्र मोहन जी और मोहरी जी एवं दो पुत्रियाँ बीबी दानी जी और बीबी भानी जी पैदा हुई।

 

एक दिन बाबा अमरदास जी ने अपने भतीजे जसु की पत्नी बीबी अमरो (पुत्री गुरू अंगद देव जी) से श्री गुरू नानक देव जी द्वारा रचित शबद ‘करणी कागदु मनु मसवाणी बुरा भला दुए लेख पए’ सुना। वे इस शबद से इतना प्रभावित हुए कि गुरू अंगद देव जी को मिलने के लिए खडूर साहिब आ गये। इस समय आप की उम्र 61 साल की थी। इस उम्र में आप ने अपने से 25 वर्ष छोटे और रिश्ते में संबंधी लगने वाले गुरू अंगद देव जी को गुरू धारण किया और गुरू-सेवा को ही अपनी दिनचर्या बना लिया। आप दिन-रात गुरू के लंगर में सेवा करते। सुबह अमृत बेला के समय गागर लेते और रोज़ाना 11 मील दूर ब्यास नदी से पैदल जाकर गुरू अंगद देव जी के स्नान के लिए जल लेकर आते।

 

लगभग 11 साल की अविराम तथा निष्काम सेवा करने के पश्चात् गुरू अंगद देव जी ने आपको गुरगद्दी के पूर्ण योग्य समझ कर गुरगद्दी की सौंपना कर दी। गुरगद्दी पर बैठने के बाद श्री गुरू अमरदास जी ने सिख-धर्म के प्रचार के साथ-साथ समाज-सुधार की और भी विशेष ध्यान दिया। छुआछूत तथा जाति-पाति के भेदभाव को खत्म करने के लिए गोईदवाल साहिब में एक सांझी ‘बावली ’ बनाई जहाँ सभी लोग बिना ऊँच-नीच के स्नान कर सकते थे। लंगर में सभी के लिए एक ‘पंगत’ में बैठ कर भोजन करना अनिवार्य कर दिया गया। गुरू साहिब ने सती-प्रथा को भी विशेष रूप से समाप्त करवाया। श्री गुरू अमरदास जी के 885 सबद,सलोक और छंत 18 रागों में ‘महला तीजा’ के अन्तर्गत श्री गुरू ग्रंथ साहिब में दर्ज हैं। आप जी द्वारा रचित बाणी में प्रेम-भक्ति का स्वर प्रधान है। ‘अनंदु साहिब’ गुरू जी की सबसे प्रसिद्ध रचना है। सामाज-सुधारक,योग्य प्रबंधक एवं तेजस्वी शख़्िसयत के मालिक श्री गुरू अमरदास जी 95 वर्ष की आयु में 1574 ई0 में श्री गोइंदवाल साहिब में ज्योति-जोत समा गये।

 


रमेश बग्गा चोहला

9463132719


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