ई-शिक्षा और भारत की जटिल परिस्थितियां
punjabkesari.in Friday, May 22, 2020 - 05:18 PM (IST)

कोविड-19 महामारी से शायद हमारी शिक्षा सर्वाधिक प्रभावित हुई है। ई-कॉमर्स, ई-बैंकिंग, ई-शॉपिंग, ई-कनेक्ट के उपरांत हम ई-लर्निंग और ई-शिक्षा का नया स्वरूप देख रहे हैं। भारत जैसे देश में जहां आधारभूत संसाधनों की कमी एवं एक बहुत बड़े वर्ग की इंटरनेट तथा कंप्यूटर तक पहुंच दुर्गम है वहां ई-शिक्षा एक तमाशा एक नाटक बन कर रह जाती है। सबसे चिंताजनक बात यह है कि महामारी के लंबा खींचने से इस व्यवस्था पर निर्भरता और अधिक बढ़ेगी तथा धीरे-धीरे यह एक स्थाई रूप ले लेगी। इस ई-शिक्षा के साथ समस्याएं कई पर लाभ सीमित हैं। हम एक वैकल्पिक शिक्षा प्रणाली की ओर बढ़ रहे हैं इसलिए इसके प्रति हमारा रवैया भी देखनेलायक होगा।
हम कितने तैयार हैं
एक छोटी सी स्क्रीन पर इंटरनेट से वीडियो देख-देख कर पढ़ना कहां तक संभव है? विभिन्न शिक्षण संस्थानों में अध्यापक अपने पाठ या तो रिकॉर्ड करके भेज रहे हैं अथवा विभिन्न प्लेटफॉर्म के द्वारा सीधी कक्षाएं ले रहे हैं। सरकारी विद्यालय पूरी तरह से बंद है और वहां पढ़ने वाले विद्यार्थी फिलहाल खाली हैं। 2017 तक भारत में केवल 34% आबादी इंटरनेट का इस्तेमाल करती थी। वर्तमान में यह आंकड़ा 55 करोड़ के निकट है। इनमें एक बड़ा वर्ग 20 से 29 वर्ष का है और अधिकतम व्यक्ति अपने मोबाइल फोन पर इंटरनेट का प्रयोग करते हैं। 55 करोड़ में से अधिकतम लोग इंटरनेट का प्रयोग सोशल मीडिया से जुड़ने के लिए करते हैं और शिक्षा के लिए कम। गांवों में आधारभूत ढांचा काफी कमजोर है।
गरीबों के लिए शिक्षा बहुत दुर्लभ हो गई है, अनेकों गांव में ना ही तो कंप्यूटर है और ना ही इंटरनेट तथा ना ही लोग इन उपकरणों को चलाना जानते हैं। सिर्फ बच्चों या अभिभावकों को ही नहीं किंतु बहुत से अध्यापकों को भी इस व्यवस्था से सामंजस्य बैठाने में कठिनाई है। उन्हें ठीक से कंप्यूटर या नए प्लेटफार्म का उपयोग करना नहीं आता क्योंकि उन्हें यह सिखाया ही नहीं गया है। कई अध्यापक तो इसमें बहुत अधिक असहजता महसूस करते हैं विशेषकर सरकारी विद्यालयों में। ऐसे में वह विद्यार्थियों को केवल नोट्स या किताबे भेज रहे हैं और पढ़ाई विद्यार्थियों को खुद ही करनी पड़ रही है। निजी विद्यालयों में इस समय केवल अपनी फीस को न्यायोचित ठहराने के लिए गृह कार्य दिया जा रहा है और कुछ हद तक ऑनलाइन कक्षाएं लग रही है लेकिन यह सब केवल खानापूर्ति है। कनेक्टिविटी तथा इंटरनेट स्पीड के साथ भी कई दिक्कतें हैं। घर से कार्य करने, ई-शिक्षा तथा अन्य काम ऑनलाइन होने से मौजूदा आधारिक संरचना पर बहुत दबाव पड़ा है तथा इंटरनेट स्पीड में कमी देखी गई है।
ऐसे में समय की बर्बादी, शिक्षा की गुणवत्ता तथा दक्षता का कम होना स्वभाविक है। पांचवी कक्षा तक के विद्यार्थियों के लिए खुद से पढ़ना व सीखना और भी ज्यादा कठिन है क्योंकि उन्हें बुनियादी चीजें सिखाने के लिए शिक्षक की अधिक आवश्यकता होती है। उनके लिए यह छुट्टियों की एक लंबी अवधि है। शिक्षा की नई व्यवस्था शिक्षक-विद्यार्थी के रिश्तो को भी नए तरीकों से परिभाषित करेगी। पहले ही शिक्षा के व्यापारीकरण से इस रिश्ते में काफी दूरी आई है जिसका अब और बढ़ना निश्चित है। कक्षा में शिक्षक का एक नैतिक अनुशासन तथा नियंत्रण होता है अब उसके अभाव में तथा बिना किसी नियमों एवं अनुशासन के छोटे बच्चे कहां तक पढ़ेंगे। कक्षा में बच्चों को संस्कार तथा मूल्य भी दिए जाते हैं जोकि ऑनलाइन उतने संभव नहीं। यह एक पक्षीय है तथा वार्तालाप के लिए बहुत ही सीमित स्थान हैं जिससे समझ तथा बौद्धिक विकास प्रभावित होता है।
अध्यापको के लिए यह जानने के लिए भी सीमित स्त्रोत हैं कि उनका पढ़ाया बच्चों को समझ आ रहा है कि नहीं। अक्सर विद्यार्थी अपने साथियों को देखकर या सामूहिक गतिविधियों में भाग लेकर सीखते हैं और अपनी समझ को विकसित करते हैं। खेलों में भाग लेकर वह शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ जीवन के कई अहम मूल्य व पहलू भी सीखते हैं जो कि अब नदारद है। चर्चा तथा वार्तालाप के अभाव में विद्यार्थियों द्वारा नए विचारों एवं सिद्धांतों की उत्पत्ति भी प्रभावित होगी। एकाग्रचित्त ना हो पाना, ना समझ आना, कक्षा का वातावरण ना होना, एकपक्षीय संवाद, अधूरा ज्ञान, मूल्य रहित शिक्षा इन सब बिंदुओं के अनुरूप परिवर्तित होते हुए हमें विद्यार्थियों को नए युग की शिक्षा प्रणाली में ढालना होगा।
सकारात्मक कदम
सरकार टीवी के माध्यम से पढ़ाने का विचार लेकर आई है जहां कक्षा 1 से लेकर 12वीं तक के लिए अलग- अलग चैनल होगा। कम से कम इससे गरीब वर्ग के बच्चे भी कुछ तो सीखेंगे ही। यह देखना दिलचस्प होगा इससे कितना अंतर आता है। वही सीबीएसई ने पहले ही अपनी वेबसाइट पर सभी पाठ्य पुस्तकें उपलब्ध करवा दी थी। बहुत से बड़े शिक्षण संस्थान तथा पुस्तकालय अपने यहां पुस्तकों की डिजिटल प्रतिलिपि उपलब्ध करवा रहे हैं जोकि सराहनीय है। बहुत से संस्थान नए-नए विषयों पर रोचक पाठ्यक्रम के साथ भी आ रहे हैं जो इस समय में विद्यार्थियों को कुछ नया सीखने का अवसर प्रदान करेंगे। समझनेयोग्य बात यह है कि हमारे पास विकल्प बहुत ही सीमित हैं। हमें युवा पीढ़ी को बदलते हुए नियमों तथा चुनौतियों के अनुरूप ढालना ही होगा तभी हम एक सशक्त युवा पीढ़ी और उज्जवल भविष्य का निर्माण कर पाएंगे।
( योगेश मित्तल)