व्यवस्था, व्यक्तित्व और मानव मूल्य!

punjabkesari.in Wednesday, Sep 28, 2016 - 03:57 PM (IST)

दिल्ली जो देश की राजधानी है और न्याय का सर्वोच्च आशियाना भी साथ ही आखरी उम्मीद भी। यहां देश से ही नहीं दुनिया भर से लोग आते हैं और अपने खट्टे-मीठे अनुभव साथ ले जाते है। इनमें कुछ अनुभव अमेरिका के रक्षा मंत्री जॉन कैरी के तरह विदेशो में पहुंचते हैं और कुछ अखबारों, न्यूज़ चैनलों और अन्य अंतर्राष्ट्रीए इकाइयों के माध्यम से दिल्ली में देश भर के सैकड़ों नेताओं का भीरोज़ आना-जाना होता है।

केजरीवाल और कन्हैया कुमार जैसे नेता बनते भी है और न जाने हर रोज़ कितने गिरफ्तार भी होते है। देश के बेहतरीन विश्विद्यालय जैसे की जे. न. यू., डी. यू., और आई. आई. टी. भी यहां है, जिसका मतलब हुआ कि यहां  डॉक्टर, इंजीनियर, साइंटिस्ट और राजनितिज्ञ भी ज़रूर बनते है। यह तो बात हुई शानदार, दिलचस्प, और कामयाब दिल्ली की, पर क्या यही वास्तविकता भी है?

लगता तो कुछ ऐसा ही है कि मानव मूल्य और इंसानियत केवल अब किताबों में ही सिमित रह गई है और ज्यादा ही हुआ तो फेसबुक पर लाइक। दिल्ली में जो हुआ उसको तो नहीं बदल सकता लेकिन आप लोगों को कुछ किस्सें बता सकता हूं जो शायद मानव मूल्यों की तरफ बढ़ने में आपको कुछ प्रेरित करे। घटनाक्रम कुछ इस प्रकार है कि मैं अपने संस्थान से निकल कर रोहतक-दिल्ली राजमार्ग पर कुछ दूर तक ही पहुंचा था और देखता हूं कि दो युवक ट्रैफिक पुलिस बने गए है। एक ट्रैफिक को डाइवर्ट कर रहा है और दूसरा कुदाल लेकर किनारे पर गड्ढा खोद रहा है।

मुझे भी थोड़ा अचरज हुआ और मैंने सोचा कि क्या मैं कोई स्वपन देख रहा हूं?क्योंकि आज के युवा को व्हाट्सएप्प, फेसबुक, और न जाने क्या-क्या से ही फुरसत नहीं मिलती, वैसे समय दिन का था नहीं तो शायद मैं इसको लूट का कोई नया तरीका भी समझ सकता था। हालांकि जब मैं नज़दीक पहुंचा तो मैंने पाया कि मैं बिल्कुल गलत था और मेरा द्रष्टिकोण भी। क्योंकि वह दोनों युवक उस वक्त एक बिल्ली जो कि सड़क हादसे का शिकार हो गई थी उसको दफन करने की तैयारी कर रहे थे।

किसी सड़क हादसे में कुत्ते, बिल्ली, बन्दर, गायें, और यहां तक की आदमियों का भी मर जाना कोई नई बात नहीं है बल्कि उनको मार कर भाग जाने वालों के लिए भी वह मात्र एक घटना होती है। परंतु उन युवकों का एक बिल्ली के प्रति इस प्रकार का प्राणिमात्र के लिए प्रेम का भाव मेरे जीवन में किसी अद्वित्य घटना से कम नहीं था। इस घटना ने न केवल आज के युवाओं के प्रति मेरे द्रष्टिकोण को बदला है बल्कि एक लगभग धूमिल हो चुकी उम्मीद की किरण को भीज गाया है।

एक अन्य वृतांत भी आपको बताना चाहूंगा जिसका अनुभव आज भी मुझे भावविभोर कर देता है, और मन ही मन मुस्कुरा उठता हूं। एक बार मैं अपनी कुछ साथियों के साथ रेलगाड़ी से उत्तर से दक्षिण भारत जा रहा था, जैसा की आपको पता ही है सफर भी नामकीत रह ही लंबा था और हमें लगभग 50 घंटे तक रेलगाड़ी में रहना था।

हमारे डिब्बे में एक दम्पत्ति अपने छोटे बच्चे के साथ यात्रा कर रहे थे, सफर इतना लंबा था कि स्वाभाविक रूप से बच्चा बार-बार कुछ खाने की जिद करता था और अन्य किसी माता-पिता की तरह उसको कुछ खिला देते, ऐसा ही कुछ हम भी कर रहे थे मतलब खाना-पीना। लेकिन उनकी एक आदत हमसें बिल्कुल भिन्न थी वो यह की वो समाज के कुछ बेहद जिम्मेदार लोग और हम उनसे कुछ पीछे ऐसा कहूं तो कोई अतिशयोक्तिन होगी।

क्योंकि खाने के बाद जो कूड़ा हम रेलगाड़ी से बाहर इधर-उधर फैंक रहे थे वहीं कूड़ा वो अपनी एक थैली में इक्कठा कर रहे थे और जैसे ही रेलगाड़ी रूकती थी कूड़े की उस थैली को स्टेशन पर रक्खे कूड़ेदान में खाली कर आते थे, यह देख कुछ समय बाद हमें भी शिक्षा और शर्म दोनों आई और हमने भी अपनी खिड़की पर कूड़े की एक थैली लटकाई जिसे देख वह परिवार इशारों में हमसे बोला कि 'यदि हम सब समझ जाएं ऐसे तो सपने क्यों न हो जाए हकीकत जैसे'।

अत: अंतत: उक्त घटना  वर्णन से मेरा आशय यही है कि यदि हम अपने समाज एवम राष्ट्र के प्रति थोड़े भी सजग है तो किसी भी प्रकार के स्वार्थ से दूर रहकर अपनी क्षमता अनुसार लोकहित में निरंतर कार्ये करते रहे और इस देश में मानव मूल्यों की धरोहर को संचित एवम सृजित करके इसे गौरवान्वित करें, जिसमें राजा राम मोहन राय, महात्मा गांधी, एवम अम्बेडकर जैसे अनेकों महापुरुषों के प्राणों की आहुति सम्मिलित है।

                                                                                                                       
                                                                                                                    अंकुर चौहान


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