चीन की अदृश्य सलामी स्लाइसिंग रणनीति

Sunday, Jun 28, 2020 - 03:16 PM (IST)

चीन का हमेशा से भारत की तरफ एक कुटनीतक नजरिया रहा है जिसका खामियाजा भारत को 1962 में उठाना भी पड़ा था। यदि तिब्बत के मसले पर भारत मौन नहीं रहता तो भारत की सीमा कभी चीन से नहीं लगती। ब्रिटिशो ने भी भारत की सीमा को चीन की सीमा से लगने ही नहीं दिया था इसलिए उन्होंने तिब्बत नाम के एक बफर राज्य का निर्माण भारत और साम्यवादी प्रभावी चीन के मध्य किया था। इसके लिए ब्रिटिशो ने 1914 में एक शिमला समझौता किया था जिसके कारण मक्मोहन रेखा अस्तित्व में आयी जो भारत-तिब्बत सीमा को तय करती है, ठीक इसी प्रकार का समझौता चीन और तिब्बत के बीच हुआ था जिसे चीन ने 1950 में तोड़ दिया क्योकि चीन का मानना है की तिब्बत 1914 में स्वायत राज्य नहीं था इसलिए उसकी किसी भी संधि को चीन मान्यता नहीं देतैसिलिये चीन ने बाहरी तिब्बत पर आक्रमण कर दिया। 

भारत भी 1954 में हुए पंचशील समझौते में इस मुद्दे पर मौन रहा क्योकि उसे चीन पर काफी भरोसा था, लेकिन जब भारत ने चीन के धार्मिक नेता दलाई लामा को राजनीतिक शरण दी, तो चीन ने भारत पर 1962 में आक्रमण कर दिया जिसके लिए भारत बिलकुल तैयार नहीं था। इस तरह चीन की कार्टोग्राफिक आक्रामकता का पहली बार भारत को सामना करना। ये चीन के क्रांतिकारी नेता माओ त्से टोंग की दक्षिण एशिया क्षेत्र के प्रति दर्शन रणनीति है जो धीरे धीरे चीन के दावे को स्पष्ट करती है और यह रणनीति चीन के अदृश्य सलामी स्लाइसिंग रणनीति को स्पष्ट करती है जिसके कारण चीन किसी बड़े क्षेत्र को कब्जाने के लिए धीरे धीरे छोटे छोटे क्षेत्रों पर अपना दावा कर उसे हथियाने की कोशिश करता है जिसके कारण चीन को किसी भी देश के सामने बेनकाब करना आसान नहीं होता।

चीन की हैंड, पाल्म और फिंगर पालिसी: -
चीन की यह नीति एक हाथ जो चीन खुद है उसकी हथेली जो तिब्बत है और उसकी पांच उंगलिया जो हिमालयी क्षेत्रों से सम्बंधित है, उससे जानी जा सकती है चीन ने 1950 से ही तिब्बत पर अपना शिकंजा कसना शुरू कर दिया था, जिसके कारण उसने हथेली को 1959 में तिब्बत में नरसंहार करके पूरी तरह हथिया लिया, अब उसकी नज़र दक्षिण एशिया क्षेत्र के पांच हिमालयी क्षेत्रों पर है, जिसमे अरुणाचल प्रदेश,भूटान, सिक्किम, नेपाल और लद्दाख है, जिसे चीन हथियाना चाहता है जिसमे से नेपाल को चीन अपनी तरफकरने की कोशिश कर रहा है, जिसका अंदाज़ा पिछले दिनों हाल ही के कुछ घटनाओ से लगाया जा सकता है

जो भारत और नेपाल के मध्य हुए है। इसके अलावा भारत नेपाल भूटान सीमा पर 2017 में चीन ने विवाद खड़ा किया था जिसमें दोकलाम क्षेत्र को लेकर चीन उसमे रोड बनाना चाहता था जिससे भारत का सिलीगुड़ी क्षेत्र जिसे चिकन नैक क्षेत्र कहते है वो ब्लॉक हो जाता जिसके कारण भारत का पुरे उत्तर पूर्वी राज्यों से सम्बन्ध बनाये रखना काफी मुश्किल होता।

स्ट्रिंग ऑफ़ पर्ल्स रणनीति: -
चीन ने भारत के विभिन्न पडोसी देशो में अपने रणनीतिक बंदरगाह बना रखे है जिसके कारण उसकी भारत को घेरने की नीति का पता चलता है। चीन का इस तरह का रुख उसके भारत के साथ युद्ध करने की मंशा को दर्शाता है की यदी भविष्य में भारत का चीन के साथ कोई भी विवाद हो जाता है तो वह इस बंदरगाहों केजरिये भारत पर दबाव बना सके। चीन ने पाकिस्तान, श्री लंका, बांग्लादेश, मालदीव्स, म्यांमार आदि देशो में बंदरगाह बना रखे है, जिससे चीन की दूसरी तरफ पुरे दक्षिण एशिया पर अधिकार करने की रणनीति का भी पता चलता है। इस छोटे छोटे क्षेत्रों पर रणनीतिक कदम चीन की सलामी स्लाइसिंग रणनीति का भी
हिस्सा है। ताकि पुरे दक्षिण एशिया पर अपनी पकड़ मजबूत कर सके।

शाक्सगाम क्षेत्र चीन को सौंप देना: -
पाकिस्तान ने भारत के उत्तरी क्षेत्र में स्थित शाक्सगाम क्षेत्र को चीन को 1963 में सौंप दिया जिसके कारण चीन का भारत पर रणनीतिक नज़र रखना आसान हो गया है। यह क्षेत्र पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के अंतर्गत आता है, जिसे पाकिस्तान ने 1947 में कश्मीर पर आक्रमण करके छीना था। यह क्षेत्र पूरी तरह से पाकिस्तान का नहीं है क्योकि अंतरार्ष्ट्रीय क़ानून के अनुसार कोई भी छीने गए या कब्जाए हुए क्षेत्रों पर कोई भी देश पूरी तरह अधिकार नहीं कर सकता। और इसमें पाकिस्तान द्वारा चीन को शक्सगम क्षेत्र सौंप देना भारत की दृष्टि से ठीक नहीं है जिसकी भारत ने निंदा भी की है। पाकिस्तान द्वारा चीन को आसानी से यह क्षेत्र सौंप देना उसकी भारत के प्रति रणनीतियों में सुलभता को दर्शाता है जिसके कारण वह भारत पर ऊपर से अपनी पकड़ बना सकता है।

अक्साईचिन क्षेत्र विवाद: -
लद्दाख का अक्साईचिन क्षेत्र 1962 से पहले भारत के प्रादेशिक क्षेत्र में आता था जो पूर्वी कश्मीर की तरफ है, जिसे चीन ने 1962 में भारत पर आक्रमण करके हथिया लिया था। चीन द्वारा 1962 में अक्साईचिन क्षेत्र पर जहां तक कब्ज़ा किया गया था, उसी क्षेत्रीय रेखा को चीन वास्तविक भारत-चीन सीमा मानता है, जिसे एलएसी कहते है। यह 1964 में दोनों देशो के सैनको द्वारा पेट्रोलिंग के माध्यम सेबनायीं गयी रेखा है, इससे पहले चीन 1899 में बनायीं गयी मॅक्कार्टनी मैक्डोनाल्ड लाइन का समर्थन करता है, जिसका कोई पुख्ता सबूत नहीं है। इसका अर्थ एहि है की चीन आधे अक्साईचिन को मैकार्टी के माध्यम से अपना बताता है और आधे अक्साईचिन को 1964 में चीन द्वारा हथियाने जाने के कारण अपना दावा करता है। भारत भी इस क्षेत्र को चीन द्वारा कब्जाए जाने के पक्ष में नहीं है वह 1865 में ब्रिटिश सरकार द्वारा खींची गयी भारत-तिब्बत सीमा को वास्तविक रेखा मानता है। जिसे जॉनसन लाइन कहा जाता है। हाल ही के दिनों में भारत द्वारा अक्साईचिन भूभाग के नज़दीक लद्दाख क्षेत्र में बनाये जा रहे DSDBO रोड का चीन द्वारा विरोध किया गया जिसके कारण चीन ने गलवान घाटी क्षेत्र और पैंग्गोंग झील में समस्या पैदा करना शुरू कर दिया। क्योंकि भारत का इस क्षेत्र में विकास चीन की सलामी स्लाइसिंग रणनीति में खलल डालता है।

पैंग्गोंग झील के हिस्सों को सेना द्वारा हाथ की उंगलियों के नाम पर इंगित किया गया है क्योकि ये सारा पहाड़ी क्षेत्र है जो चैंग चेन्मो के नाम से जाना जाता है, इस क्षेत्र पर भारत फिंगर नंबर 8 (8 पर्वतो तक) तक अपना दावा करता जबकि फिंगर नंबर 4 (4 पर्वतो तक) के ही क्षेत्र तक भारत की सेना सिमित है, चीन फिंगर नंबर 4 के बाद के हिस्सों पर अपना दावा करता है जिसके कारण भारत को इससे आग नहीं आने देता और नंबर 4 पर रणनीतिक नज़रिये से अपना स्थाई निर्माण कार्य कर रहा है। यह चीन की सलामी स्लाइसिंग रणनीति को दर्शाता है, जिसके कारण चीन छोटे छोटे क्षेत्रों पर दावा कर उसे कब्ज़ा लेता है।

चीन का गलवान नदी घाटी में भी अपना दावा करना उसकी काटोग्राफिक आक्रामकता और सलामी स्लाइसिंग रणनीति का हिस्सा है जिसमे उसने हाल ही के दिनों में भारत द्वारा निर्मित किये गए रोड का विरोध किया और इसे अपना क्षेत्र बताया। चीन द्वारा एलएसी के नज़दीक गलवान नदी घाटी में उसका दावा भारत द्वारा बनाये गए DSDBO रोड का गुस्सा निकलना है, जिसके जरिये चीन भारत को एलएसी के नज़दीक मजबूत कार्यवाही करने से रोक सके। चीन द्वारा आज DSDBO रोड का विरोध कही न कही

दोकलाम में 2017 में चीन द्वारा बनाये गए असफल रोड के विरोध से भी सम्बंधित है। चीन का गलवान घाटी में सैनिको द्वारा अपनी आक्रामकता दिखाना बेहद शर्मनाक है, जिसके कारण प्रत्येक देश का उसके प्रति विश्वास काम ही होगा जो किसी भी प्रकार के समझौते का पालन नहीं करता या उसे तोड़ देता है। जैसा उसने भारत के साथ पिछले दिनो किया। यह सब चीन के माओ दर्शन की झलक दिखलाता है और उसकी हमेशा की तरह कार्टोग्राफिक आक्रामकता और सलामी स्लाइसिंग रणनीति के प्रति ध्यान आकर्षित करता है।

भारत को भी चीन के इस रवैये के प्रति सजग रहने को आवशयकता है, और चीन के हर कदम पर नज़र रखना उसकी जिम्मेदारी है। क्योकि चीन हमेशा ही सीमा विवादों के बल पर भारत के ऊपर दबाव बनाता रहेगा, क्योकि भारत चीन के साथ तीन क्षेत्रों में अपनी सीमा साझा करता है, जिसका अभी तक कोई फैसला नहीं है। भारत और चीन एलएसी के मसले पर कभी भी साँझा नहीं हुए, जिसके कारण दोनों देशो की सेनाएं एक अनिश्चित रेखा तक पेट्रोलिंग करती है, और बाहरी हस्तक्षेप से रक्षा करती है। भारत चीन के साथ 1962 जैसी गलती बिलकुल नहीं कर सकता जिसका खामियाज़ा आज तक भारत को उठाना पड़ा है।

(हिमांशु अकरणीय)

Riya bawa

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