बचपन Old vs Present

punjabkesari.in Wednesday, Feb 14, 2018 - 04:14 PM (IST)

आज मैं जब बच्चों को खेलता हुआ देखता हूं,  गुम क्यों हो जाता हूं,  कुछ कमी सी क्यों खलती है,  अपने बचपन में क्यों चला जाता हूं,  तब घर कच्चे थे सब सच्चे थे,  आस-पड़ोस. रिश्ते नाते और इरादे पक्के थे,  कहां गई वो मिट्टी की महक, हवा की खुशबू,  चिड़ियों की ची ची और पेड़ों से प्यार,
गलियों की क्रिकेट, गुल्ली डंडा, 
वो कंचे का शोर, बागों में मोर,
देर तक खेलना और पसीने की बदबू,
वो बाप की डांट और मां का प्यार,
वो दादी की खट्टी मीठी कहानियां, 
वो साइकल (Cycle) पर मंदिर, गुरुद्वारे और पीरों के जाना,
जब बच्चे थे हम जिंदगी जीते थे।

 

वक्त का ऐसा Climate Change हुआ, 
आज बच्चे जिंदगी नहीं, जिंदगी बच्चों को जी रही है,
वीडियो गेम्स बच्चों को खिला रही है, 
मोबाइल और टीवी कार्टून बच्चों को Physically Inactive बना रहे हैं,
फिर कहते हैं बच्चों को गुस्सा क्यों इतना आता है,
सब कुछ पक्का है, पर बच्चे और इरादे क्यों कच्चे है।

 

अंत दीपक Bathian वाला इस तर्क पर पहुंचा,
खेलना ही चैलेंज है बच्चों का,
यह हमारा आज ही नही, आने वाला कल भी है,
आज मैं जब बच्चों को खेलता हुआ देखता हूं, 
गुम क्यों हो जाता हूं।

 

दीपक कौशल

9891949192


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