भाग्य रेखा
punjabkesari.in Sunday, Aug 16, 2020 - 12:14 PM (IST)

भाग्य रेखा में तुम्हारे , मैं रहूँ या ना रहूँ ।
नाथ ! इतना जानती हूँ , चेतना में मैं रहूँगी ।।
बन के तुलसी प्रीत की मन भवन में मैं खिलूँगी।
साँस बनकर धड़कनों में अनवरत चलती रहूँगी।
अक्षरों के धाम में तेरे लाख परिजन हो भले पर;
मौन मन के भाव के,मृदु व्यंजना में मैं रहूँगी।।
जीवनी के शुभ क्षणों पे,जब कभी संवाद होगा।
याद आऊँगी तुम्हें जब,प्रेम का अभिवाद होगा।
हाँ!भले प्रतिबिम्ब बन,संग तुम्हारे चल न पाऊँ।
रक्त कणिका बन के किन्तु,तन्त्रिका में मैं रहूँगी।।
चक्षुओं के देवगृह में, दीप बन कर मैं जलूँगी।
फूल बनके पंथ में निज आत्म तर्पण मैं करूँगी।
प्रार्थनाओं में प्रभु का ध्यान तुम जब भी करोगे।
करबद्ध कर के नैन मूंदे, मन्त्रणा में मैं रहूँगी ।।
इस जन्म में है भले ना आत्म का संयोग सम्भव।
पर बिछड़ना नियति में है हमारा प्रिय असम्भव।
सात जन्मों तक तुम्हारी,रूक्मिणी कोई हो पर,
युग युगांतर तक तुम्हारी,राधिका बन मैं रहूँगी।।
(सृष्टि सिंह)