देस अजूबा (बाल कहानी)

punjabkesari.in Wednesday, Jan 30, 2019 - 11:38 AM (IST)

दस्युराज शुंबला का आतंक कई राज्यों में था। अच्छे-अच्छे राजा भी उससे भय खाते। पांच हजार खूंखार डाकुओं से सजी उसकी सेना कहां से आती और भारी लूटपाट मचा के किधर गायब हो जाती, किसी को पता नहीं चल पाता। उसके गुप्तचर वेश बदलकर जगह-जगह जाकर जानकारी इकट्ठी करते कि कहां-कहां से ज्यादा माल हाथ लग सकता!

इसी क्रम में एक बार उसके गुप्तचर किसी द्वीप पर पहुंचे। वहां की संपन्नता देख उनकी आंखें चौंधिया गयीं। कहीं एक रुपये में एक बड़े गिलास मलाईवाला दूध मिल रहा था तो कहीं पांच रुपयों में पनीर पुलाव की थाली। ऊंचे-ऊंचे सुंदर घर और गहनों से लदी नारियाँ। स्वर्णमुद्राओं से भरी थैलियाँ यों ही निश्चिंतता से लेकर घूमते पुरुष। एक गुप्तचर ने उस जगह का नाम किसी व्यक्ति से पूछा,"भाई, हम यात्री हैं, दूर से आये हैं, आपके इस देश का नाम क्या है?"

व्यक्ति मुस्कुराया और बोला, "ये देस अजूबा है भाई, आपका यहां स्वागत है, आप उस सामने वाली धर्मशाला में चले जाइए, आप सबके जलपान और विश्राम का वहाँ निःशुल्क प्रबंध हो जाएगा" गुप्तचर धर्मशाला में गये। सचमुच वहां बहुत अच्छी व्यवस्था थी। वहां के मालिक ने बताया,"हम बाहर से आनेवाले यात्रियों के लिए सदा-सदा से ऐसी ही व्यवस्था करते आये हैं, यह हमारी परंपरा है"गुप्तचर डाकू चकित थे। उन्होंने अगले दिन धर्मशाला मालिक से देस अजूबा के राजा का नाम पूछा। मालिक बोला,"भई, ये देस अजूबा है, यहां का कोई राजा नहीं"गुप्तचरों का तो दिमाग ही इस बात से घूम गया। वे वहां से निकल गये। उन्होंने पूरे द्वीप पर भ्रमण किया। वहाँ एक भी सैनिक उन्हें नहीं दिखा और न ही कोई कारागार। पूछने पर एक नागरिक बोला, "यहाँ कोई सैनिक नहीं और न ही जेल, आमतौर पर यहां अपराध नहीं होते"

गुप्तचरों का मन तो झूम उठा। इतना संपन्न राज्य और न कोई राजा न सैनिक! एक कारागार तक नहीं! मूर्ख हैं, मूर्ख हैं ये सारे लोग जो अब हमारे हाथों लुटेंगे और इनकी रक्षा करने भी कोई नहीं आएगा। उन्होंने लौटकर शुंबला को यह अच्छा समाचार दिया। शुंबला भी खुशी से उछल पड़ा। उसने गुप्तचरों को मोतियों की माला भेंट की। अगले ही दिन उसकी खूंखार सेना देस अजूबा पर हमले को कूच कर गयी। उनका जहाज अभी देस अजूबा के निकट पहुंचने ही वाला था कि अचानक हथियारबंद लोगों से लदे कई जहाजों ने उनके जहाज को घेर लिया। शुंबला के सैनिकों ने पूरी बहादुरी के साथ हमला किया लेकिन वे हार गये। वे हथियार बंद लोग उन्हें गिरफ्तार कर देस अजूबा के एक बड़े से घर में ले गये। वहाँ बहुत से लोग जुटे हुए थे और बीच में वेशभूषा से कुछ राजसी परिवार से दिखने वाले लोग बैठे थे। उनमें से एक ने कड़क के कहा,"हमारी मातृभूमि पर बुरी दृष्टि डालने वालों, तुम्हें कड़ी सजा दी जाएगी" शुंबला सिर झुकाए खड़ा था। वह बोला, "महाराज, हमें तो सूचना मिली थी कि इस राज्य में न कोई राजा है और न हीं सैनिक इसलिए हमने यहाँ डकैती की योजना बना ली परंतु यहाँ तो राजा और सिपाही सबकुछ हैं  "हम यहां के राजा नहीं हैं" उसी व्यक्ति ने पुनः अपनी रौबदार आवाज में कहा, "यहाँ का व्यक्ति-व्यक्ति राजा-रानी है और सिपाही भी तथा गुप्तचर भी, तुम्हारे आदमी जब यहाँ आये थे तभी हमारे लोगों ने जान लिया था कि वे डाकू हैं, हमने उन पर नजर रखी और तुम्हारे आक्रमण को विफल कर दिया।

शुंबला हैरानी से सब सुनता जा रहा था। व्यक्ति आगे बोला,"हमारे यहां ऐसी हर परिस्थिति में लोग आम सहमति से किसी भी उचित व्यक्ति को अपना प्रमुख मान लेते हैं, जैसे अभी मैं यहां का प्रमुख हूं, हो सकता है कि अगली किसी परिस्थिति में मैं एक आम सैनिक का भी दायित्व निभाता मिलूं। शुंबला ने हाथ जोड़ दिये लेकिन वह मन ही मन खुश भी हो रहा था क्योंकि उसे पता था कि यहां तो कोई जेल है ही नहीं जहां उसे कैद किया जाए! वह अस्थायी राज्य प्रमुख उसके मन की बात समझ गया और मुस्कुरा के बोला, "तुम हमारे राज्य में छः माह तक साफ-सफाई और खेतों में कड़ी मेहनत करोगे और बदलें में तुम्हें कोई मजदूरी नहीं मिलेगी, हाँ भोजन, वस्त्र आदि मिलेंगे"दरबार नारों से गूँज रहा था "देस अजूबा प्यारा है, जान से हमको न्यारा है" (समाप्त)

रचनाकार- कुमार गौरव अजीतेन्दु


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