एक वेश्या हूँ! मेरी कहानी सुनेंगे?
punjabkesari.in Sunday, Dec 24, 2017 - 04:17 PM (IST)

आप मुझे किसी भी नाम से बुला सकते हैं (रंडी या वेश्या), क्योंकि समाज में मुझे कभी सम्मानित नजर से नहीं देखा। हमारे पास हर तरह के कस्टमर आते हैं। इसलिए थोड़ी बहुत अंग्रेजी भी आती है मुझे। मैं मुंबई के करीब 15 किलोमीटर के दायरे में एक जिले में रहती हूं। आप रेड लाइट एरिया नियर मुंबई शब्द डालकर सर्च करेंगे तो मेरा यह इलाका आसानी से मिल जाएगा। यहां पर करीब 800 महिलाएं इसी धंधे में लगी हैं। यूं तो हम समाज से अलग-थलग रहते हैं पर हमें सब की खबर रहती है। सर्जिकल स्ट्राइक से लेकर ईवीएम घोटाले तक… कश्मीर में पत्थरबाजी से लेकर नक्सली इलाके में औरतों के बलात्कार तक… आपके क्लीन कैरेक्टर वाले समाज में हमारे जीवन के बारे में जानने की बड़ी इच्छा होती है। जैसे कि हमारा अतीत क्या था? हम कैसे आए ? हमारी बातचीत का लहजा क्या है?
हमारा पहनावा… हमारा अछूत सा जीवन… हमारे कस्टमर… और हमारे HIV मरीज होने का डर! सभी कुछ जानना चाहते हैं। कुछ लोगों को लगता है कि यह आसानी से पैसा कमाने का सबसे अच्छा तरीका है। लोगों को लगता है कि हम इस पेशे में स्वेच्छा से आए हैं। एक बात जानना चाहती हूं किसी भी साधारण स्त्री से आप पूछिए कि अगर कोई पुरुष आपको गलत नजर से देखता है तो कितना गुस्सा आता है! वह कितना असहज महसूस करती है! तो ,जब ऐसी स्थिति में जब उसने आपको छुआ नहीं सिर्फ देखा आप असहज हो जाती हैं तो हमें वह सब करके कैसे अच्छा लगता होगा? यह धारणा जानबूझकर बनाई गई कि यह पेशा अच्छे लगने की वजह से फल फूल रहा है।
आप के सभ्य समाज ने यह मान्यता स्थापित कर दी है कि पुरुष हमारे शरीर को नोचने, तोड़ने ,और काटने का हक रखते हैं। इसलिए यह ईज़ी मनी अर्निंग वाली मानसिकता बिल्कुल गलत है। इस पेशे में आने वाली लड़कियां अधिकतर मजबूर होती हैं, अशिक्षित होती हैं… उनका परिवार बेहद गरीब और लाचार होता है। उनका कोई सहारा नहीं होता है। लेकिन कोई उनका ही नजदीकी ,दोस्त, रिश्तेदार, पड़ोसी वही उसकी मजबूरी का फायदा उठाता है और पैसों के लिए ऐसे नर्क में धकेल देता है। मेरे साथ काम करने वाली कुछ लड़कियां तो रद्दी से भी सस्ते दामों में खरीदी गई हैं। आमतौर पर 14 से 15 साल की लड़की 2,500 से लेकर 30,000 के बीच खरीदी जाती है। पिछले साल यानी 2016 में दो बहनें एक 16 साल और दूसरी 14 साल की को सिर्फ 230 रुपए में खरीदा-बेचा गया। दो लड़कियां 230 रुपए में बिक गईं।
अगर दोनों लड़कियों का कुल वजन 80 किलो भी था तो इसका मतलब तीन रुपए प्रति किलो… जरा याद करके बताइए आपने पिछली बार रद्दी पेपर किस भाव बेचा था। शुरुआत के दिनों खरीद कर लाई गई लड़कियों को समझाने का काम हमें ही करना पड़ता है। पर कोई भी लड़की सिर्फ बात करने से नहीं मानती। फिर उसे खूब डराया जाता है। बहुत सारी लड़कियां डर के कारण मान जाती हैं। और जो नहीं मानती हैं ,उनके साथ बलात्कार करते हैं। शारीरिक और मानसिक यातना देते हैं… बार-बार, लगातार… तब तक, जब तक वह इन यातनाओं के कारण टूट नहीं जाती और काम करने के लिए हां नहीं कर देती। पर कुछ लड़कियां फिर भी नहीं मानती… तब उनको बलात्कार करने के बाद बेहद शारीरिक कष्ट दिए जाते हैं और उसी यंत्रणाओं के दौरान उनकी हत्या भी कर दी जाती है… या लड़की स्वयं को ही मार लेती है… ऐसी लड़कियों की लाश नदी किनारे या जंगल में पड़ी मिल जाती है… जिन्हें लावारिस घोषित कर दिया जाता है।
मैं स्वयं 18 साल से इस पेशे में हूँ। मैंने भी डर ,भय और जख्मों को भोगा है। हर पल मौत से भी बदतर रहा। दूसरी लड़कियों को इस दलदल में धकेले जाते हुए देखा है…और कुछ नहीं कर पातीं। हम सिर्फ एक शरीर हैं। आपका साफ-सुथरा समाज सब कुछ देखता है और अपने काम में लग जाता है। अब आइए बताती हूँ… अपने ग्राहकों के बारे में। पहले हमारे ग्राहक मिडिल एज हुआ करते थे। पर अब नौजवान और यहां तक की नाबालिग भी आते हैं। इस पेशे का एक वीभत्स चेहरा यह भी है कि नाबालिग बहुत आक्रामक होते हैं। ये लड़के हमसे अलग-अलग डिमांड करते हैं। वे इंटरनेट में जैसे दृश्य देखते हैं, उन्हें क्रूरता के साथ अपनाते हैं। हमारे मना करने पर हिंसक हो जाते हैं, क्योंकि पैसा देकर मनमानी करना इनका अधिकार है। ये लड़के काफी निर्दयी होते हैं। पर हमारे पास चुनाव की गुंजाइश नहीं होती है।
कुछ भी हो जाए हमें वह हर आक्रमण, हर प्रयोग, हर चोट, हर दर्द… सहना पड़ता है और किसी तरह से उस वक्त को गुजारना होता है। समाज में बैठे लोगों को लगता है हम बैठे-बैठे मलाई खा रहे हैं और हमारे पास बेतहाशा कमाई है। सच तो यह है कि हमारी वित्तीय हालत देश के बजट जितना ही मुश्किल है समझना। हमें जब खरीदा जाता है तो वह रकम हमें ब्याज समेत चुकानी पड़ती है। जिसे हम 4 से 8 साल तक चुका पाती हैं। क्या आपको पता है हमारी खरीदी और बिक्री में लगी हुई पूंजी की ब्याज दरें कितनी होती है? यह हमारा मालिक या दलाल तय करता है। लड़की की उम्र, खरीद की रकम, उसके लुक्स… और अंत में मध्यस्थ (जिसमें पुलिस और मानव अधिकार वालों का भी हिस्सा होता है) मिलकर हमारी वित्तीय हालत तय करते हैं।
यह एक बड़ा सच है की एक वेश्या को मिलने वाले पैसे से बहुत लोगों के घर भरते हैं। पर वह सभी लोग सभ्य समाज का हिस्सा बन जाते हैं और हम बदनाम गलियों की रोशनी… शुरुआत के दिनों में सिर्फ हमें खाना और कपड़ा तथा मेकअप का कुछ सामान ही दिया जाता है। मुझे 1997 में 8000 में खरीदा गया। शुरू के 5 साल तक मुझे कभी कुछ नहीं मिला। यानी कि 8,000 रुपये चुकाने के लिए मुझे 1000 से ज्यादा लोगों के साथ शारीरिक संबंध बनाना पड़ा। यानी प्रति कस्टमर मेरी लागत 8 रुपये थी। हालांकि अब इस समय हर लड़की को एक ग्राहक ग्राहक से 100 से 150 रुपये मिल रहे हैं। आमतौर पर खुद का सौदा करने के लिए मजबूर एक लड़की महीने में 4,000 से 6,000 रुपए कमा लेती है। इसके बाद उसे घर का किराया 1,500, खाना-पीना 3,000, खुद की दवाई 500, और बच्चों की शिक्षा यदि संभव हो पाया तो 500 रुपये। और सबसे अधिक खर्च हमारे मेकअप का।
आप सोचते हैं मेकअप की क्या जरूरत है ! पर यदि मेकअप नहीं होगा तो कस्टमर हमारे पास नहीं आएगा। पिछले 18 सालों में देसी और विदेशी करीब 200 गैर सरकारी संस्थाएं देखी हैं। इनमें से 7-8 को छोड़कर बाकी सब फर्जी हैं। ऐसा लगता है सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाएँ मिलकर हमारी बस्तियों को बनाए रखने के लिए काम कर रही हैं। हमारे लिए ऐसे NGO चंदा मांगते हैं, डॉक्यूमेंट्री फिल्में बनाते हैं… पर वह सब हमारे पास कभी नहीं पहुंचते। अच्छी फिल्म बनने पर डायरेक्टर को और काम करने वाले कलाकारों को पुरस्कार मिल जाता है, और हम जहां के तहां ही फँसे रहते हैं। हम भी काम करना चाहते हैं। हम आलसी नहीं हैं। पर सच तो यह है कि हमें इस दलदल से निकलने ही नहीं देना चाहते यह समाज के ठेकेदार। हम जैसी औरतों का दो बार जन्म होता है। एक बार मां के पेट से… और दोबारा समाज में वेश्या के रूप में। हमारा सामाजिक जीवन भी आपके जैसा ही है। हम भी उत्सव मनाते हैं। जैसे ईद, दीपावली, क्रिसमस… सभी कुछ… उसकी बहुत बड़ी वजह है कि हमारे एरिया में सभी राज्यों से और विदेशी जैसे नेपाल ,बांग्लादेश, म्यानमार ,रूस ,आयरलैंड और भी बहुत से देश की लड़कियां हमारे साथ इस चक्रव्यूह में फंसी हुई हैं।
हमारा रहन -सहन पहले अलग था…पर अब नहीं… हमारी भाषा अलग है, हमारे धर्म अलग हैं, हमारी जाति अलग है… पर 18 साल से एक साथ रहते रहते हम लोगों ने एक दूसरे को अपना लिया है। क्या आपने कभी सुना है कि ऐसे एरिया में कभी दंगे हुए? मतभेद हुए? नहीं… क्योंकि हम एक दूसरे से दर्द के रिश्ते से जुड़े हुए हैं। मुझे कभी-कभी गर्व होता है वेश्या होने पर… क्योंकि हममें बहुत एकता है, प्या> है, त्याग है, ईमानदारी है, सदभावना है, इंसानियत है… हममें दर्द है और दर्द के होने का एहसास भी जिंदा है। पर जिस समाज से आप आते हैं उस समाज में इन सारी सम्वेदनाओं के लिए कहीं कोई जगह नहीं है। और इसीलिए हमारे लिए भी आपके उस उत्कृष्ट समाज में कहीं कोई जगह नहीं है। न दिल में न समाज में। अगर कुछ मिला है तो वह है घृणा, तिरस्कार और बात-बात पर रंडी और वेश्या की गाली… आपके लिए यह गाली होगी पर यह तो हमारा जीवन है। एक ऐसा जीवन जिसको हमने स्वयं नहीं चुना। हमें जबरन इसमें धकेला गया और निकलने नहीं दिया जा रहा है। एक बार दिल पर हाथ रखकर बताइए क्या आसान है एक वेश्या का जीवन?
अनिल अनूप