हर जगह रिजेक्ट हुए इस लड़के ने बना डाली 50 करोड़  की कंपनी

punjabkesari.in Friday, Feb 24, 2017 - 07:40 PM (IST)

नई दिल्ली : कहते हैं ना कि दिल में जज्बा और हुनर हो तो आदमी कुछ भी कर सकता है। इस बात को सच कर दिखाया हैदराबाद के श्रीकांत बोला ने। आज हम बात कर रहे है श्रीकांत बोला के बारे में कि किस तरह एक जन्म से अंधा व्यक्ति शून्य से शुरुआत कर, जा पहुंचा सफलता के उस मुकाम पर, जहां पहुंचना हर किसी का सपना होता है लेकिन उस मंजिल को पाना हर किसी के बस की बात नहीं। 

कैसे श्रीकांत बोला आज बन चुका है 50 करोड़ की कंपनी का मालिक?
कहते हैं जब श्रीकांत बोला का जब जन्म हुआ था, तो उनके मां - पापा को आसपास के लोगों ने यह सलाह दी थी कि वह श्रीकांत को किसी अनाथालय में दे आए। क्योंकि वो अंधा था। लेकिन मां – बाप भला ऐसा कैसे कर सकते थे। इसलिए हर किसी की बातों को नजरअंदाज करते हुए श्रीकांत बोला की खूब अच्छे से परवरिश की और उन्हें अच्छी एजुकेशन भी दिया। जब श्रीकांत बड़ा हुआ तो  एक समझदार और जिम्मेदार बेटे की तरह मां-बाप के हर सपने को पूरा करने की पुरजोर कोशिश में जुट गया और आज वह   50 करोड़ से भी ज्यादा की कंपनी का सीईओ है । 

क्या करती है श्रीकांत बोला की कंपनी  
श्रीकांत की कंपनी का नाम बोलांट इंडस्ट्रीज है, जो दिव्यांग और अशिक्षित लोगों को नौकरी देने का काम करती है। इनकी कंपनी आंध्रप्रदेश, कर्नाटक और तेलंगाना स्थित यूनिटों में पत्तियों और इस्तेमाल किए गए कागजों से इको-फ्रेंडली पैकेजिंग बनाने का काम करती है।

रतन टाटा को किया प्रभावित
अपने काम से श्रीकांत बोला ने रतन टाटा को भी प्रभावित किया, जिस कारण रतन टाटा ने इनकी कंपनी में इन्वेस्ट किया। हालांकि उन्होंने ये बात नहीं बताई कि रतन टाटा ने कितनी राशि लगाई है। इनकी कंपनी बोलांट इंडस्ट्रीज के बोर्ड में पीपुल कैपिटल श्रीनि राजू, रवि मंथा और डॉक्टर रेड्डी लैबोरेट्रीज के सतीश रेड्डी जैसे लोग शामिल है।

कलाम के साथ किया काम
श्रीकांत ने डिजीटल इंडिया प्रोजेक्ट में पूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम के साथ भी काम किया। उन्हें दसवीं में 90 फ़ीसदी अंक मिले थे। जिसके बाद साइंस स्ट्रीम में दाखिला लेने के लिए उन्हें 6 महीने तक का लंबा इंतजार करना पड़ा था और बारहवीं में उन्होंने ऑडियो क्लासेज की मदद से 98 फिसदी अंक प्राप्त किए। लेकिन श्रीकांत की परेशानी यहीं खत्म नहीं हुई। साथ 2009 में आईआईटी दाखिले में भी श्रीकांत को रिजेक्शन का सामना करना पड़ा था। इसके बाद उन्हें मैसचूसिट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में दाखिला मिला। वहां से अपनी पढ़ाई खत्म करने के बाद वो भारत वापस आए और यहां उन्होंने 450 कर्मचारियों के साथ मिलकर कंपनी की शुरुआत की।

श्रीकांत का कहना है कि  “किसी की सेवा करने का मतलब ये नहीं होता कि आप ट्रैफिक लाइट के पास बैठे किसी भिखारी को भीख दें, और आगे बढ़ जाएं, सेवा का मतलब तो होता है कि आप उससे जिंदगी जीने के मौके उपलब्ध करा दें।”


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