सफलता की ऊचांइयों तक पहुंचाती हैं आचार्य चाणक्य की नीतियां, आज ही करे अमल

punjabkesari.in Tuesday, Sep 05, 2017 - 11:21 AM (IST)

महान राजनीतिज्ञ अौर कुटनीतिज्ञ होने के साथ-साथ इन्होंने मौर्य साम्राज्य की स्थापना व चन्द्रगुप्त मौर्य को सम्राट बनाने में अहम भूमिका निभाई थी। आचार्य चाणक्य एक बड़े दूरदर्शी विद्वान थे। चाणक्य जैसे बुद्धिमान, रणनीतिज्ञ, चरित्रवान व राष्ट्रहित के प्रति समर्पित भाव वाले व्यक्ति भारत के इतिहास में ढूंढने से भी बहुत कम मिलते हैं। इनकी नीतियों में उत्तम जीवन का निर्वाह करने के बहुत से रहस्य समाहित हैं, जो आज भी उतने ही कारगर सिद्ध होते हैं। जितने कल थे। चाणक्य की नीतियां व्यक्ति के जीवन को राह दिखाते हैं।  
नीतिज्ञा देशकालौ परीक्षेत्।
भावार्थ:
जो व्यक्ति अपने बुद्धि-कौशल से स्थान और समय की पूर्व परीक्षा करने के उपरांत कार्य प्रारंभ करते हैं, उनकी सफलता संदिग्ध नहीं होती। वे अपना कार्य सदैव सफलतापूर्वक पूरा करते हैं

कान्तावियोग: स्वजनापमान: ऋणस्य शेष: कुनृपस्य सेवा।
दरिद्रभावो विषमा सभा च विनाग्निनैते प्रदहन्ति कायम्।।
भावार्थ:
पत्नी का बिछुड़ना, अपने बंधु-बांधवों से अपमानित होना, अपने पर कर्ज चढ़े रहना, दुष्ट अथवा बुरे मालिक की सेवा में रहना, निरंतर निर्धन बने रहना, दुष्ट लोगों और स्वार्थियों की सभा अथवा समाज में रहना, ये सब ऐसी बातें हैं जो बिना अग्रि के शरीर को हर समय जलाती रहती हैं।

देशफलविभागौ ज्ञात्वा कार्यमारभेत्।
भावार्थ: जो व्यक्ति देश और फल अर्थात परिणाम का विचार करके कार्य आरंभ करता है, उसका कार्य अवश्य सफल होता है। देश से यहां तात्पर्य स्थान विशेष से है कि किस स्थान पर कार्य प्रारंभ करना चाहिए।
 


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