‘जम्मू-कश्मीर को अभी भी एक लम्बा रास्ता तय करना होगा’

punjabkesari.in Saturday, Jan 30, 2021 - 05:18 AM (IST)

जम्मू और कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश के रूप में एक वर्ष पूरा हो गया है। क्या इसे मोदी सरकार की सफलता की कहानी के रूप में देखा जा सकता है? मुझे यकीन नहीं है। यह सब इस बात पर निर्भर करता है कि जम्मू-कश्मीर में जटिल स्थिति के सभी पहलुओं को देखते हुए पुलिस आंकड़ों के अनुसार कानून-व्यवस्था की घटनाओं में कमी आई है। 

आतंकवादी रैंकों की भर्ती में वृद्धि हुई है। जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद में शामिल होने वाले लोगों की गिनती में 22 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। जहां यह गिनती 2019 में 143 थी वहीं 2020 में बढ़ कर 174 हो गई। 143 रंगरूटों में 76 आतंकियों के मारे जाने की सूचना है और 46 अन्य गिरफ्तार हो चुके हैं। इसका मतलब है कि आप्रेशन में केवल 52 आतंकवादी सक्रिय रहे हैं। जम्मू-कश्मीर पुलिस के महानिदेशक दिलबाग सिंह ने एक साक्षात्कार में कहा कि ‘‘जहां तक आतंकी ङ्क्षहसा का मामला है तो कानून-व्यवस्था तथा सुरक्षा में काफी बेहतर हुआ है। एक वर्ष में अनेकों आतंकी कमांडर मार गिराए हैं।’’ 

आधिकारिक सूत्रों का दावा है कि 2020 में मारे गए आतंकियों में विभिन्न आतंकी संगठनों के 46 शीर्ष कमांडर  शामिल हैं। आंकड़े यह भी बताते हैं कि 2020 में आतंकियों से संबंधित कार्रवाइयों में 36 नागरिकों तथा 45 सुरक्षा अधिकारियों की मृत्यु भी हुई है। इसके साथ-साथ 61 पुलिस अधिकारियों ने भी अपना जीवन खोया है। केंद्र शासित प्रदेश के तौर पर जम्मू-कश्मीर की सफलता या असफलता को कानून-व्यवस्था की घटनाओं के तौर पर इसका आकलन नहीं किया जा सकता बल्कि राजनीतिक आधार पर यह आकलन किया जा सकता है। यही आधार है कि मैं मानता हूं कि केंद्र की असफलता में निरंतरता बनी हुई है। पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने यह स्पष्ट किया है कि ‘‘जम्मू-कश्मीर में कही जाने वाली नई वास्तविकता वह नहीं जिसे हम स्वीकार करने को तैयार हैं।’’ 

यात्रा प्रतिबंध और जम्मू-कश्मीर के ज्यादातर इलाकों में 4-जी कनैक्टिविटी के बारे में बात करते हुए नैशनल कांफ्रैंस नेता उमर अब्दुल्ला ने कहा कि ‘‘आज हमारे पास कौन से मौलिक अधिकार हैं? कोई नहीं। आपके पास बोलने की स्वतंत्रता का अधिकार नहीं है।’’उमर ने दोहराया कि जम्मू-कश्मीर के लोग जीने के लिए सीखने को तैयार नहीं हैं। उमर अब्दुल्ला काफी हद तक सही हैं। जम्मू-कश्मीर के लोगों को मौलिक अधिकारों का आनंद लेना चाहिए। जम्मू-कश्मीर को अभी भी एक लम्बा रास्ता तय करना होगा। 

बेशक नव-गठित पीपुल्स एलाइंस फॉर गुपकार डिक्लारेशन (पी.ए.जी.डी.) जिसका नेतृत्व फारूख अब्दुल्ला कर रहे हैं, के लिए अभी भी सब कुछ क्रम में नहीं है। सज्जाद लोन के नेतृत्व वाली पीपुल्स कांफ्रैंस पहले ही इससे बाहर आ चुकी है। हमें अभी इंतजार और देखना होगा। यह शायद ध्यान दिया जाए कि पी.ए.जी.डी. में कई मुख्य धारा वाली राजनीतिक पार्टियां शामिल हैं जिसका गठन पिछले वर्ष अक्तूबर में किया गया था ताकि जम्मू-कश्मीर में विशेष दर्जा फिर से स्थापित किया जाए। 

मैं नहीं मानता कि केंद्र में भाजपा प्रशासन के अंतर्गत विशेष दर्जे की बहाली हो पाएगी। यह एक आसान प्रक्रिया नहीं है। फिर भी मेरा मानना है कि जम्मू-कश्मीर को बिना किसी देरी किए राज्य का दर्जा लुटा देना चाहिए। नई दिल्ली से जम्मू-कश्मीर के लिए सही दृष्टिकोण तथा इसके विकास की मूल परेशानियों के बारे में बात होनी चाहिए। जम्मू-कश्मीर के लिए पाकिस्तान का मुख्य रूप से दावा एक जनमत संग्रह पर आधारित था जो कोई वैध अधिकार नहीं है। प्रोफैसर मॉरिस मंडेलसन जोकि अंतर्राष्ट्रीय कानून पर एक अथॉरिटी है, के अनुसार अंतर्राष्ट्रीय कानून के अंतर्गत कश्मीर को स्वयं के लिए कोई अधिकार नहीं है। मॉरिस का मानना है कि भारत में शामिल होने के मुद्दे पर सबसे लोकप्रिय फैसला 1962 के चुनाव ने दिया था जब शेख अब्दुल्ला ने भारत में मिलने की घोषणा की थी। 

भारत के पक्ष में महाराजा हरि सिंह ने वस्तुत: इस मामले को सील कर दिया था। बदलती राजनीतिक व्यवस्था के बीच अब सब कुछ उस पर निर्भर करता है जो हम चाहते हैं और हम जमीनी वास्तविकताओं के आधार पर किस हद तक समायोजित और समझौता करते हैं। यह मोदी सरकार के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती है। केवल एक दृढ़ निश्चय वाला नेतृत्व ही फर्क कर सकता है। अभी कई पहलु हैं जिन्होंने खेल खेलना है। केंद्र में भाजपा नेताओं को गहन जानकारी होनी चाहिए कि जम्मू-कश्मीर की जमीनी स्तर की वास्तविकताओं तथा इसके मुख्य धारा वाले नेताओं को समझा जा सके। 

जम्मू-कश्मीर निश्चित तौर पर फिर से चौराहे पर है। मौजूदा परिस्थितियों में कौन क्या कर सकता है? समस्याएं अपने स्वयं के समाधान पा सकती हैं। यह सब आज के बदलते माहौल में संभव नहीं। सब कुछ केंद्रीय नेताओं पर निर्भर करता है जिन्हें राज्य के नेताओं के साथ निकटता से तालमेल बिठाना होगा या फिर सहयोग करना होगा। बहाव की कभी न खत्म होने वाली स्थिति में जम्मू-कश्मीर का राजनीतिक जीवन अस्त-व्यस्त है।-हरि जयसिंह 
 


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News