द्रमुक ने ‘तमिझगम’ पर राज्यपाल रवि के स्पष्टीकरण को खारिज किया

punjabkesari.in Thursday, Jan 19, 2023 - 04:58 PM (IST)

चेन्नई, 19 जनवरी (भाषा) सत्तारूढ़ द्रमुक ने यहां ‘तमिझगम’ पर तमिलनाडु के राज्यपाल आर.एन. रवि के स्पष्टीकरण को खारिज कर दिया और दावा किया कि उनका इरादा उसे एक विभाजनकारी पार्टी के रूप में पेश करना था।


द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक) ने बृहस्पतिवार को कहा कि इसके अलावा जो व्यक्ति राज्यपाल पद पर हैं, उनके पास तमिलनाडु या इसकी संस्कृति या भाषा पर टिप्पणी करने का कोई अधिकार नहीं है।


यहां राजभवन द्वारा जारी विज्ञप्ति पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए द्रमुक प्रवक्ता टी.के.एस. इलंगोवनने कहा, “मुझे नहीं पता कि उनका (राज्यपाल) इरादा नाम बदलने का सुझाव देना था या नहीं, लेकिन उनका इरादा द्रमुक को एक विभाजनकारी पार्टी के रूप में पेश करना था।”

उन्होंने आरोप लगाया कि वह (राज्यपाल) द्रमुक को एक अलग देश के लिए लड़ने वाली ताकत के रूप में चित्रित करना चाहते थे। इलंगोवन ने कहा, “पर ये सच नहीं है। हमने अलग राष्ट्र की मांग नहीं की है, बल्कि प्रशासनिक कारणों से राज्य को और अधिकार देने की मांग की है।”

रवि ने चार जनवरी, 2023 को राजभवन में काशी तमिल संगमम के कार्यकर्ताओं को सम्मानित करने के लिए आयोजित एक कार्यक्रम में दोनों स्थानों के बीच ऐतिहासिक सांस्कृतिक जुड़ाव पर चर्चा करते हुए ‘तमिझगम’ शब्द का उल्लेख किया था। इसे लेकर उन्हें द्रमुक के तीखे विरोध का सामना करना पड़ा था।

राजभवन द्वारा जारी एक प्रेस नोट में बुधवार को रवि को उद्धृत करते हुए कहा गया, ‘‘उन दिनों, कोई तमिलनाडु नहीं था। इसलिए ऐतिहासिक, सांस्कृतिक संदर्भ में मैंने ‘तमिझगम’ शब्द को अधिक उपयुक्त अभिव्यक्ति के रूप में संदर्भित किया।’’

काशी के साथ तमिल लोगों के सदियों पुराने सांस्कृतिक जुड़ाव का जश्न मनाने के लिए एक महीने तक आयोजित यह उत्सव हाल में संपन्न हुआ।


रवि ने कहा, ‘‘यह धारणा या अनुमान कि यह तमिलनाडु का नाम बदलने का सुझाव था, गलत और संदर्भ से परे है। मेरे भाषण के आधार को समझे बिना, यह तर्क दिया गया कि राज्यपाल तमिलनाडु शब्द के खिलाफ हैं। यह चर्चा का विषय बन गया है। इसलिए, मैं इसे समाप्त करने के लिए यह स्पष्टीकरण दे रहा हूं।’’

द्रमुक के आयोजन सचिव आर.एस. भारती ने स्पष्टीकरण को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि ‘‘राज्यपाल के पास तमिलनाडु, इसकी संस्कृति या भाषा के बारे में टिप्पणी करने का कोई अधिकार नहीं है।’’



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