साइबर सुरक्षा के लिए कानून के साथ ही एक समर्पित मंत्रालय की भी आवश्यकता: साइबर सुरक्षा विशेषज्ञ पवन दुग्गल

punjabkesari.in Sunday, Dec 04, 2022 - 04:47 PM (IST)

नयी दिल्ली, चार दिसंबर (भाषा) देश के जाने माने साइबर सुरक्षा कानून विशेषज्ञ और लंबे समय तक संचार व सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय से संबंद्ध रहे पवन दुग्गल ने कहा है अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के सर्वर पर हुआ साइबर हमला भारत के लिए आंखें खोलने वाला है और अब समय आ गया है कि वह साइबर सुरक्षा के लिए एक समर्पित मंत्रालय का गठन करे।

दुग्गल ने ‘भाषा’ को दिए एक साक्षात्कार में साइबर सुरक्षा से जुड़ी मौजूदा चुनौतियों के मद्देनजर एक समर्पित मंत्रालय बनाए जाने के साथ ही उपयुक्त तंत्र स्थापित किए जाने की आवश्यकता पर भी बल दिया।

ज्ञात हो कि देश के सबसे प्रतिष्ठित, अग्रणी और विश्वसनीय सरकारी अस्पताल अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के सर्वर पर हुए साइबर हमले ने देश की सुरक्षा एजेंसियों को हिलाकर रख दिया है। इस साइबर हमले की गुत्थी अभी तक उलझी हुई है और ऐसे में सवाल उठ रहे है कि भारत ऐसे साइबर हमलों से निपटने में कितना सक्षम है।

ये सवाल इसलिए भी उठ रहे हैं क्योंकि भारत साइबर हमलों का सामना करने वाले शीर्ष 10 देशों में शुमार है। यह अमेरिका और कुछ पश्चिमी देशों के बाद बढ़ते रैंसमवेयर हमलों वाले शीर्ष पांच देशों में भी शामिल है।

इस साल अप्रैल महीने में राष्ट्रीय पावर ग्रिड पर साइबर हमले हुए थे। वर्ष 2018 की शुरुआत में भारतीय आधारकार्ड धारकों के रिकॉर्ड पर साइबर हमला हुआ था। इसी साल पुणे के कॉसमॉस बैंक पर साइबर हमला हुआ था और हैकर्स ने कॉसमॉस कोऑपरेटिव बैंक लिमिटेड से 94.42 करोड़ रूपये की चोरी की थी।

दुग्गल ने एम्स पर हुए रैंसमवेयर हमले को स्वतंत्र भारत की संप्रभुता, अखंडता और सुरक्षा पर हमला करार देते हुए कहा कि इसे सिर्फ एक अस्पताल पर साइबर हमले के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए । इसे व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखा जाना चाहिए।

उन्होंने कहा, ‘‘इसमें कोई दो राय नहीं है कि भारत को साइबर सुरक्षा के क्षेत्र में मजबूत और पुख्ता कदम उठाने होंगे और जल्द से जल्द उठाने होंगे। एम्स से पहले भी कई प्रमुख संस्थानों पर साइबर हमले हो चुके है। साइबर सुरक्षा पर राष्ट्रीय नीति तो बने ही, मैं तो कहूंगा कि भारत में साइबर सुरक्षा को लेकर एक समर्पित मंत्रालय की आवश्यकता है, जो केवल साइबर सुरक्षा से जुड़े मामलों के लिए हो। साइबर सुरक्षा से जुड़े मामले आज विभिन्न मंत्रालयों के बीच बंटे हुए हैं।’’
दुग्गल ने कहा कि साइबर सुरक्षा एक ऐसा विषय है, जिसमें निरंतर नए आयाम जुड़ते जाते हैं और भारत को अपने राष्ट्रीय हितों को सुरक्षित करने के लिए इस पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है।

उन्होंने कहा कि भारत को साइबर सुरक्षा की दिशा में अभी तक जितना काम करना चाहिए था, वह नहीं किया गया।

उन्होंने कहा कि इसके बहुत कारण हो सकते हैं लेकिन आज भारत के पास न तो साइबर सुरक्षा को लेकर समर्पित कोई कानून है और ना ही कोई प्रभावी ढांचा, जो एम्स पर हुए साइबर हमले जैसी चुनौतियों का सामना कर सके।

उन्होंने कहा, ‘‘राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा नीति, 2013 में आई थी लेकिन वह भी कागजों में सिमट कर रह गई।’’
ज्ञात हो कि साइबर खतरों से निपटने की रणनीति बनाने के लिए केंद्र सरकार 2013 में राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा नीति लेकर आई थी लेकिन अभी तक यह मूर्त रूप नहीं ले सकी है। फिलहाल देश में साइबर सुरक्षा पर कोई संयुक्‍त कार्यकारी समूह नहीं है और साइबर सुरक्षा पर किसी स्‍वायत्त निकाय का गठन भी नहीं किया गया है।

दुग्गल ने कहा कि भारत साइबर सुरक्षा के कानूनी ढांचे के मामले में काफी पिछड़ा हुआ है और इस मामले में चीन, सिंगापुर, थाईलैंड और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश बहुत आगे हैं।

उन्होंने केंद्र सरकार को सचेत करते हुए कहा, ‘‘भारत कहीं ना कहीं अभी भी गलती कर रहा है। इस पर ध्यान देने की जरूरत है। हम इसे जितनी जल्दी विकसित करेंगे, उतना अच्छा रहेगा।’’
‘‘इंटरनेशनल कमीशन ऑन साइबर सिक्योरिटी लॉ’’ के संस्थापक दुग्गल ने एम्स पर हुए रैंसमवेयर हमले के पीछे दुश्मन मुल्कों के शामिल होने की संभावना को भी नहीं नकारा।

उन्होंने कहा, ‘‘इस प्रकार का साइबर आक्रमण ‘बाहरी तत्व’ (स्टेट एक्टर) करते हैं। ऐसे आक्रमण इसलिए भी किए जाते है कि किसी राष्ट्र की अर्थव्यवस्था की प्रगति को झटका दिया जाए, उसकी रफ्तार को रोका जाए। यह एक बहुत ही सोची समझी साजिश है।’’
यह पूछे जाने पर कि क्या उनका इशारा चीन और पाकिस्तान की तरफ है, दुग्गल ने कहा, ‘‘आप इसे नकार नहीं सकते। क्योंकि इतने बड़े पैमाने पर आक्रमण तभी होता है, जब कोई सोची समझी साजिश होती है। इसमें निशाना भारत है।’’
रैंसमवेयर एक तरह का मालवेयर होता है, जो किसी कंप्यूटर तक पहुंच हासिल कर लेता है और सभी फाइल को इन्क्रिप्टेड कर देता है। डेटा और पहुंच के एवज में सेंधमारों द्वारा फिरौती की मांग की जाती है।



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