प्रौद्योगिकी एवं परंपरा, आधुनिकता एवं संस्कृति का संयोग वक्त की जरूरत : राष्ट्रपति मुर्मू
punjabkesari.in Monday, Nov 28, 2022 - 10:41 PM (IST)
नयी दिल्ली, 28 नवंबर (भाषा) राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सोमवार को कहा कि प्रौद्योगिकी एवं परंपरा, आधुनिकता एवं संस्कृति का संयोग आज वक्त की जरूरत है तथा प्रकृति के साथ जनजाति समाज को साथ लेकर चलने पर ही सही अर्थों में समावेशी विकास हो सकता है।
राष्ट्रपति भवन में ‘जनजातीय अनुसंधान- अस्मिता, अस्तित्व एवं विकास’ पर कार्यशाला के शिष्टमंडल को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति ने यह बात कही ।
उन्होंने कहा, ‘‘ ''स्वतन्त्रता संग्राम में जनजाति नायकों का योगदान'' नामक पुस्तक का विमोचन होना गर्व की बात है। मुझे विश्वास है कि इस पुस्तक के माध्यम से देश भर में जनजातियों के संघर्ष और बलिदान की गाथाओं का व्यापक रूप से प्रचार-प्रसार होगा।’’
राष्ट्रपति ने कहा कि इतिहास हमें बताता है कि जनजाति समाज ने कभी भी गुलामी स्वीकार नहीं की बल्कि देश पर हुए सभी आक्रमणों का सबसे पहले जनजाति समाज ने ही प्रबल प्रतिकार किया।
उन्होंने कहा कि देश की उन्नति तभी हो सकती है जब हमारा युवा अपने गौरवशाली इतिहास को समझे, अपने देश एवं समाज की सुख-समृद्धि के सपने देखे, और उन्हें साकार करने के हर संभव प्रयास करे।
मुर्मू ने कहा, ‘‘ प्रकृति के साथ जनजाति समाज का घनिष्ठ संबंध अनुकरणीय है। उन्हें साथ लेकर हम विकास की नई ऊंचाईयां पा सकते हैं और सही अर्थों में समावेशी विकास का लक्ष्य प्राप्त कर सकते हैं।’’
उन्होंने कहा कि प्रौद्योगिकी एवं परंपरा, आधुनिकता एवं संस्कृति का संयोग आज वक्त की जरूरत है।
उन्होंने कहा कि हमारे देश की अनुसूचित जनजातीय जनसंख्या दस करोड़ से अधिक है।
राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘ हमारे सामने यह सुनिश्चित करने की चुनौती है कि विकास का लाभ सभी जनजातियों तक पहुंचे। साथ ही साथ उनकी सांस्कृतिक अस्मिता और पहचान भी बनी रहे।’’
उन्होंने कहा कि जनजाति समाज का ज्ञान जिस भी रूप में उपलब्ध है उसका संकलन करके लोकप्रिय माध्यम से उसे देश और दुनिया तक पहुंचाना एक उपयोगी प्रयास होगा।
मुर्मू ने कहा कि डिजिटल युग में प्रौद्योगिकी के माध्यम से हम जनजातियों की संस्कृति का ज्ञान आने वाली पीढ़ियों तक आसानी से पहुंचा सकते हैं।
यह आर्टिकल पंजाब केसरी टीम द्वारा संपादित नहीं है, इसे एजेंसी फीड से ऑटो-अपलोड किया गया है।
राष्ट्रपति भवन में ‘जनजातीय अनुसंधान- अस्मिता, अस्तित्व एवं विकास’ पर कार्यशाला के शिष्टमंडल को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति ने यह बात कही ।
उन्होंने कहा, ‘‘ ''स्वतन्त्रता संग्राम में जनजाति नायकों का योगदान'' नामक पुस्तक का विमोचन होना गर्व की बात है। मुझे विश्वास है कि इस पुस्तक के माध्यम से देश भर में जनजातियों के संघर्ष और बलिदान की गाथाओं का व्यापक रूप से प्रचार-प्रसार होगा।’’
राष्ट्रपति ने कहा कि इतिहास हमें बताता है कि जनजाति समाज ने कभी भी गुलामी स्वीकार नहीं की बल्कि देश पर हुए सभी आक्रमणों का सबसे पहले जनजाति समाज ने ही प्रबल प्रतिकार किया।
उन्होंने कहा कि देश की उन्नति तभी हो सकती है जब हमारा युवा अपने गौरवशाली इतिहास को समझे, अपने देश एवं समाज की सुख-समृद्धि के सपने देखे, और उन्हें साकार करने के हर संभव प्रयास करे।
मुर्मू ने कहा, ‘‘ प्रकृति के साथ जनजाति समाज का घनिष्ठ संबंध अनुकरणीय है। उन्हें साथ लेकर हम विकास की नई ऊंचाईयां पा सकते हैं और सही अर्थों में समावेशी विकास का लक्ष्य प्राप्त कर सकते हैं।’’
उन्होंने कहा कि प्रौद्योगिकी एवं परंपरा, आधुनिकता एवं संस्कृति का संयोग आज वक्त की जरूरत है।
उन्होंने कहा कि हमारे देश की अनुसूचित जनजातीय जनसंख्या दस करोड़ से अधिक है।
राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘ हमारे सामने यह सुनिश्चित करने की चुनौती है कि विकास का लाभ सभी जनजातियों तक पहुंचे। साथ ही साथ उनकी सांस्कृतिक अस्मिता और पहचान भी बनी रहे।’’
उन्होंने कहा कि जनजाति समाज का ज्ञान जिस भी रूप में उपलब्ध है उसका संकलन करके लोकप्रिय माध्यम से उसे देश और दुनिया तक पहुंचाना एक उपयोगी प्रयास होगा।
मुर्मू ने कहा कि डिजिटल युग में प्रौद्योगिकी के माध्यम से हम जनजातियों की संस्कृति का ज्ञान आने वाली पीढ़ियों तक आसानी से पहुंचा सकते हैं।
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