पंजाब के राज्यपाल ने विधानसभा का विशेष सत्र आहूत करने का आदेश वापस लिया

punjabkesari.in Thursday, Sep 22, 2022 - 12:26 AM (IST)

चंडीगढ़, 21 सितंबर (भाषा) पंजाब के राज्यपाल बनवारीलाल पुरोहित ने विश्वास प्रस्ताव पेश करने के लिए विधानसभा का विशेष सत्र आहूत करने की आम आदमी पार्टी (आप) सरकार की योजना को बुधवार को विफल कर दिया।

राज्यपाल ने बृहस्पतिवार को विशेष सत्र आहूत करने के पिछले आदेश को वापस लेते हुए कहा कि कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के राजभवन से संपर्क करने के बाद कानूनी राय मांगी गई और सदन के नियमों के अनुसार इसकी अनुमति नहीं है।

राज्यपाल के फैसले के बाद, पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने आगे की कार्रवाई तय करने के लिए बृहस्पतिवार सुबह विधानसभा परिसर में ‘आप’ विधायकों की बैठक बुलाई है।
राजभवन के ताजा आदेश में कहा गया है कि विधानसभा के नियम सिर्फ सरकार के पक्ष में विश्वास मत पारित करने के लिए सत्र बुलाने की अनुमति नहीं देते हैं।

राज्यपाल ने मंगलवार को 22 सितंबर के लिए विशेष सत्र आहूत करने की अनुमति दी थी। उनके ताजा आदेश के बाद वह अनुमति वापस ले ली गई है।

पंजाब कैबिनेट ने मंगलवार को भारत के संविधान के अनुच्छेद 174 (1) के तहत सदन का विशेष सत्र आहूत करने की सरकार की सिफारिश राज्यपाल को भेजने की मंजूरी दे दी थी।

‘आप’ सरकार ने विश्वास प्रस्ताव लाने के लिए विशेष सत्र आहूत करने की मांग की थी। इससे कुछ दिन पहले ही ‘आप’ ने भाजपा पर उसकी सरकार गिराने की कोशिश करने का आरोप लगाया था।

पार्टी ने हाल ही में दावा किया था कि भाजपा ने उसकी छह महीने पुरानी सरकार को गिराने के लिए अपने ‘‘ऑपरेशन लोटस’’ के तहत उसके कम से कम 10 विधायकों से संपर्क करके उन्हें 25-25 करोड़ रुपये की पेशकश थी।
पंजाब की 117 सदस्यीय विधानसभा में ‘आप’ के पास भारी बहुमत है। विधानसभा में ‘आप’ के 92, कांग्रेस के 18, शिअद के तीन, भाजपा के दो और बसपा का एक सदस्य है। विधानसभा में एक निर्दलीय सदस्य भी है।

पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान और आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल ने इस फैसले की आलोचना की।

विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष प्रताप सिंह बाजवा, कांग्रेस के नेता सुखपाल सिंह खैरा और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की पंजाब इकाई के अध्यक्ष अश्विनी शर्मा ने राज्यपाल से संपर्क करके कहा था कि सिर्फ ‘विश्वास प्रस्ताव’ लाने के लिए विधानसभा का विशेष सत्र आहूत करने का कोई कानूनी प्रावधान नहीं है।

मान ने ट्वीट किया, ‘‘राज्यपाल द्वारा विधानसभा ना चलने देना देश के लोकतंत्र पर बड़े सवाल पैदा करता है... अब लोकतंत्र को करोड़ों लोगों द्वारा चुने हुए जनप्रतिनिधि चलाएंगे या केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त एक व्यक्ति... एक तरफ भीमराव जी का संविधान और दूसरी तरफ ‘ऑपरेशन लोटस’... जनता सब देख रही है।’’
केजरीवाल ने ट्वीट किया, ‘‘राज्यपाल कैबिनेट द्वारा बुलाए गए सत्र को कैसे मना कर सकते हैं? फिर तो जनतंत्र खत्म है। दो दिन पहले राज्यपाल ने सत्र की इजाज़त दी। जब ऑपरेशन लोटस विफल होता दिखा और संख्या पूरी नहीं हुई तो ऊपर से फ़ोन आया कि इजाज़त वापस ले लो। आज देश में एक तरफ संविधान है और दूसरी तरफ ऑपरेशन लोटस।’’
भाजपा ने राज्यपाल के इस कदम को ‘‘उचित और संवैधानिक फैसला’’ करार दिया।

भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव तरुण चुघ ने ‘आप’ पर आरोप लगाया कि वह अपने ''''स्वार्थी राजनीतिक उद्देश्यों'''' के लिए विधानसभा का इस्तेमाल करने की कोशिश कर रही है।

पंजाब की भाजपा इकाई के अध्यक्ष अश्विनी शर्मा ने कहा कि राज्यपाल ने ‘आप’ सरकार को गलत मिसाल कायम करने से रोक दिया।

उन्होंने कहा, ‘‘केजरीवाल के कहने पर देश नहीं चलेगा। जब उन्होंने पंजाब विधानसभा के नियमों और प्रक्रिया का उल्लंघन करने और ''लक्ष्मण रेखा'' को पार करने की कोशिश की, तो राज्यपाल ने हस्तक्षेप किया और अपनी भूमिका ठीक से निभाई।’’
पंजाब प्रदेश कांग्रेस के प्रमुख अमरिंदर सिंह राजा वडिंग ने भी, ‘आप’ सरकार को “संवैधानिक, लोकतांत्रिक व विधायी प्रथाओं तथा प्रक्रियाओं को नुकसान” पहुंचाने से रोकने के लिए राज्यपाल के इस कदम का स्वागत किया।

उन्होंने कहा कि ‘आप’ सरकार ने “शासन और संवैधानिक व विधायी प्रक्रियाओं का मजाक” बना दिया है और राज्यपाल ने इसे ठीक करके अच्छा किया है।

शिरोमणि अकाली दल (शिअद)के प्रमुख सुखबीर सिंह बादल और पार्टी के नेता बिक्रम सिंह मजीठिया ने भी राज्यपाल के इस कदम की सराहना करते हुए कहा कि इससे सरकारी खजाने के करोड़ों रुपये की बचत होगी।

इस बीच, भारत के अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल सत्यपाल जैन ने कहा कि जब बहुमत पर कोई संदेह न हो तो “केवल विश्वास प्रस्ताव” पेश करने के लिए विधानसभा का सत्र आहूत नहीं किया जा सकता।

जैन ने फोन पर ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, “पंजाब विधानसभा के कार्य संचालन के नियमों के तहत, अविश्वास प्रस्ताव के लिए नियम 58 है। ऐसा कोई नियम नहीं है, जो केवल विश्वास प्रस्ताव का प्रावधान करता हो।”
जैन ने कहा, ‘‘विश्वास प्रस्ताव तभी लाया जा सकता है जब या तो राज्यपाल, मुख्यमंत्री को सदन में बहुमत साबित करने के लिए कहें या राज्यपाल को कोई संदेह हो कि मुख्यमंत्री को बहुमत का समर्थन प्राप्त है या नहीं, या यदि कोई अविश्वास प्रस्ताव हो और मंत्रिपरिषद सत्र बुलाने से बच रही हो।’’
उन्होंने कहा, ‘‘जब इन सब बातों पर कोई संदेह नहीं है, बहुमत पर कोई संदेह नहीं है, राज्यपाल का कोई अनुरोध नहीं है, तो सत्र केवल इसी उद्देश्य से नहीं बुलाया जा सकता।’’


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