हेमंत सोरेन की कानूनी टीम ने खनन पट्टा मामले में निर्वाचन आयोग में दलीलें पूरी कीं
punjabkesari.in Friday, Aug 12, 2022 - 08:40 PM (IST)
नयी दिल्ली, 12 अगस्त (भाषा) झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की कानूनी टीम ने खनन पट्टे के विस्तार के आरोपों को लेकर अयोग्य करार देने संबंधी याचिका पर शुक्रवार को निर्वाचन आयोग के समक्ष अपनी दलीलें पूरी कीं। सोरेन की टीम ने कहा कि चुनाव कानून का प्रावधान इस मामले में लागू नहीं होता है।
हालांकि, सोरेन की दलीलों के जवाब में याचिकाकर्ता भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने ‘‘हितों के टकराव’’ के ऐसे मामलों के संबंध में ‘‘उच्चतम न्यायालय के कई फैसलों का हवाला दिया।’’
भाजपा के वकील कुमार हर्ष ने निर्वाचन आयोग में सुनवाई के बाद संवाददाताओं से कहा, ‘‘हेमंत सोरेन के वकील ने दलीलों के दौरान कहा कि मामले जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951 की धारा 9 ए (‘‘सरकारी अनुबंधों के लिए अयोग्यता’’ से संबंधित) के तहत शामिल नहीं हैं। उन्होंने लगभग दो घंटे तक बहस की। जिसके बाद हमने जवाब दिया और दिखाया कि यह हितों के टकराव का मामला है और उच्चतम न्यायालय के कई फैसले हैं जो (मामले में) लागू होते हैं।’’
उन्होंने कहा कि निर्वाचन आयोग ने दोनों पक्षों के लिखित बयान के लिए 18 अगस्त की तारीख तय की है। हर्ष ने कहा, ‘‘हमें उम्मीद है कि फैसला जल्द सुनाया जाएगा।’’
ऐसे मामलों पर सुनवाई के दौरान, निर्वाचन आयोग अर्द्ध-न्यायिक निकाय के रूप में कार्य करता है। मामले में याचिकाकर्ता के रूप में भाजपा ने दावा किया है कि सोरेन ने पद पर रहते हुए खुद को एक सरकारी अनुबंध के साथ शामिल कर चुनाव कानून के प्रावधान का उल्लंघन किया।
झारखंड के राज्यपाल के एक संदर्भ के बाद, निर्वाचन आयोग ने मई में झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के नेता को जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 9ए के तहत नोटिस जारी किया क्योंकि यह आरोप लगाया गया कि पट्टे का स्वामित्व इस कानून का उल्लंघन करता है। याचिका में विधायक के रूप में सोरेन को अयोग्य करार देने की मांग की गई है।
यह आर्टिकल पंजाब केसरी टीम द्वारा संपादित नहीं है, इसे एजेंसी फीड से ऑटो-अपलोड किया गया है।
हालांकि, सोरेन की दलीलों के जवाब में याचिकाकर्ता भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने ‘‘हितों के टकराव’’ के ऐसे मामलों के संबंध में ‘‘उच्चतम न्यायालय के कई फैसलों का हवाला दिया।’’
भाजपा के वकील कुमार हर्ष ने निर्वाचन आयोग में सुनवाई के बाद संवाददाताओं से कहा, ‘‘हेमंत सोरेन के वकील ने दलीलों के दौरान कहा कि मामले जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951 की धारा 9 ए (‘‘सरकारी अनुबंधों के लिए अयोग्यता’’ से संबंधित) के तहत शामिल नहीं हैं। उन्होंने लगभग दो घंटे तक बहस की। जिसके बाद हमने जवाब दिया और दिखाया कि यह हितों के टकराव का मामला है और उच्चतम न्यायालय के कई फैसले हैं जो (मामले में) लागू होते हैं।’’
उन्होंने कहा कि निर्वाचन आयोग ने दोनों पक्षों के लिखित बयान के लिए 18 अगस्त की तारीख तय की है। हर्ष ने कहा, ‘‘हमें उम्मीद है कि फैसला जल्द सुनाया जाएगा।’’
ऐसे मामलों पर सुनवाई के दौरान, निर्वाचन आयोग अर्द्ध-न्यायिक निकाय के रूप में कार्य करता है। मामले में याचिकाकर्ता के रूप में भाजपा ने दावा किया है कि सोरेन ने पद पर रहते हुए खुद को एक सरकारी अनुबंध के साथ शामिल कर चुनाव कानून के प्रावधान का उल्लंघन किया।
झारखंड के राज्यपाल के एक संदर्भ के बाद, निर्वाचन आयोग ने मई में झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के नेता को जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 9ए के तहत नोटिस जारी किया क्योंकि यह आरोप लगाया गया कि पट्टे का स्वामित्व इस कानून का उल्लंघन करता है। याचिका में विधायक के रूप में सोरेन को अयोग्य करार देने की मांग की गई है।
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