क्या एक ही आरोप के लिए आरोपी पर एनआईए और आईपीसी के तहत अलग-अलग मुकदमा चलाया जा सकता है?

punjabkesari.in Thursday, Aug 11, 2022 - 08:28 PM (IST)

नयी दिल्ली, 11 अगस्त (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को इस सवाल को बड़ी पीठ के पास भेज दिया कि क्या दोषसिद्धि से पूर्व या बरी होने के बावजूद एक ही आरोप के लिए निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट (एनआई) एक्ट और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत अलग-अलग मुकदमा चलाया जा सकता है?
शीर्ष अदालत ने इस मुद्दे को भी बड़ी पीठ को भेजा है कि क्या इस तरह के मुकदमे में दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 300(1) का प्रतिबंध लागू होगा?
सीआरपीसी की धारा 300 के अनुसार, किसी मामले में दोषी ठहराये गये या बरी किये गये किसी व्यक्ति को उसी अपराध के लिए मुकदमे का सामना नहीं करना होगा।
न्यायमूर्ति एस. ए. नज़ीर और न्यायमूर्ति जे. के. माहेश्वरी की पीठ ने शीर्ष अदालत द्वारा दिए गए कुछ पिछले फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि इन मामलों में विचार ‘परस्पर विरोधी’ थे।

शीर्ष अदालत ने मद्रास उच्च न्यायालय के दिसंबर 2018 के आदेश को चुनौती देने वाली एक अपील पर अपना फैसला सुनाया, जिसने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की विभिन्न धाराओं के तहत चार व्यक्तियों के खिलाफ कोयम्बटूर की मजिस्ट्रेट अदालत के समक्ष लंबित मुकदमे को निरस्त कर दिया था। इनके खिलाफ धोखाधड़ी और आपराधिक साजिश के आरोप थे।

शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा कि अपीलकर्ताओं द्वारा उद्धृत निर्णय के अनुसार, एनआईए और आईपीसी के तहत अपराध साबित करने की आवश्यकता अलग-अलग है और इसलिए, बाद के मामलों को किसी भी वैधानिक प्रावधानों द्वारा प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता है।

इसने आगे कहा कि प्रतिवादियों द्वारा उद्धृत निर्णयों में कहा गया है कि सीआरपीसी की धारा 300(1) के अनुसार, किसी को भी एक ही अपराध के लिए या यहां तक ​​कि एक ही तथ्य पर एक अलग अपराध के लिए न तो मुकदमा चलाया जा सकता है, न दोषी ठहराया जा सकता है।

शीर्ष अदालत ने कहा कि दोनों पक्षों द्वारा उद्धृत निर्णय दो न्यायाधीशों वाली पीठों द्वारा दिए गए थे।

पीठ ने कहा, ‘‘हमारे विचार में, संबंधित पक्षों द्वारा उद्धृत उपरोक्त निर्णय परस्पर-विरोधी हैं। इसलिए किसी भी भ्रम से बचने और (निर्णयों में) एकरूपता बनाए रखने के लिए, हम इन प्रश्नों को बड़ी पीठ के पास भेजना उचित समझते हैं।’’


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PTI News Agency

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