कानपुर और प्रयागराज में ‘विधीतर’ ध्वस्तीकरण के खिलाफ अर्जियों पर सुनवायी बुधवार को

punjabkesari.in Tuesday, Jun 28, 2022 - 08:21 PM (IST)

नयी दिल्ली, 28 जून (भाषा) उच्चतम न्यायालय भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के दो पूर्व पदाधिकारियों द्वारा पैगंबर मोहम्मद पर की गई आपत्तिजनक टिप्पणी को लेकर उत्तर प्रदेश के कानपुर और प्रयागराज में हिंसक विरोध प्रदर्शन में शामिल आरोपियों से जुड़ी इमारतों के ‘‘विधीतर’’ ध्वस्तीकरण के खिलाफ याचिकाओं पर बुधवार को सुनवायी करेगा।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला की अवकाशकालीन पीठ मुस्लिम संस्था जमीयत उलमा-ए-हिंद द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई करने वाली है।

जमीयत ने इससे पहले राष्ट्रीय राजधानी के जहांगीरपुरी में इमारतों और अन्य कथित अवैध ढांचों को गिराने के मुद्दे पर एक और याचिका दायर की थी।

उत्तर प्रदेश सरकार ने उच्चतम न्यायालय में एक हलफनामे में कहा है कि कानपुर और प्रयागराज में अवैध ढांचों को नगर निकायों द्वारा कानून के अनुसार गिराया गया था और पैगंबर मोहम्मद के बारे में भाजपा के दो नेताओं की टिप्पणी के बाद हुए हिंसक विरोध प्रदर्शन में शामिल आरोपियों को दंडित किए जाने से इसका कोई संबंध नहीं था।

राज्य सरकार ने हलफनामे में कहा था कि आवेदनों में जिस विध्वंस का जिक्र किया गया है, वे स्थानीय विकास प्राधिकरण द्वारा किए गए हैं और वे राज्य प्रशासन से स्वतंत्र वैधानिक स्वायत्त निकाय हैं। इसमें कहा गया है कि की गई कार्रवाई उत्तर प्रदेश शहरी नियोजन एवं विकास कानून, 1972 के अनुसार तथा अनधिकृत व अवैध निर्माण और अतिक्रमण के खिलाफ उनके नियमित प्रयास के तहत है।

हलफनामे में कहा गया है कि किसी भी प्रभावित पक्ष ने, यदि कोई हो, कानूनी विध्वंस कार्रवाई के संबंध में इस अदालत से संपर्क नहीं किया है।

उसने कहा था, ‘‘विनम्रतापूर्वक यह निवेदन किया जाता है कि जहां तक दंगा करने वाले आरोपियों के विरुद्ध कार्यवाही की बात है, राज्य सरकार उनके खिलाफ सीआरपीसी, उप्र गैंगस्टर और असामाजिक गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1986 और नियम, 2021, सार्वजनिक संपत्ति क्षति रोकथाम कानून और उत्तर प्रदेश सार्वजनिक और निजी संपत्ति के नुकसान की वसूली कानून, 2020 और नियम, 2021 जैसे विभिन्न कानूनों के अनुसार कठोर कदम उठा रही है।’’

इसमें कहा गया था कानपुर में दो बिल्डरों ने भी स्वीकार किया है कि ध्वस्त ढांचे अवैध थे।

हलफनामे में कहा गया है कि उच्चतम न्यायालय ने हाल ही में यहां शाहीन बाग में कथित विध्वंस के संबंध में एक राजनीतिक पार्टी द्वारा दायर रिट याचिका में कहा था कि केवल प्रभावित पक्ष को आगे आना चाहिए न कि राजनीतिक दलों को।

इसमें कहा गया है कि इस तरह के सभी आरोप पूरी तरह से निराधार हैं और उनका खंडन किया जाता है। इसमें अदालत से अनुरोध किया गया है कि बिना आधार के इस अदालत के समक्ष गलत आरोपों के लिए याचिकाकर्ता के खिलाफ कार्रवाई की जाए।

दूसरी ओर, याचिकाकर्ताओं ने भाजपा के दो नेताओं द्वारा की गई आपत्तिजनक टिप्पणी को लेकर दोनों शहरों में सांप्रदायिक तनाव का हवाला दिया, जिससे विरोध प्रदर्शन हुए।

एक याचिका में कहा गया है, ‘‘कानपुर में हुई हिंसा के बाद, कई अधिकारियों ने मीडिया में कहा है कि संदिग्धों या आरोपियों की संपत्तियों को जब्त और ध्वस्त कर दिया जाएगा। यहां तक ​​कि राज्य के मुख्यमंत्री ने भी मीडिया में कहा है कि आरोपी व्यक्तियों के घरों को बुलडोजर से गिराया जाएगा।’’
याचिका में आरोप लगाया गया है कि इस तरह के ‘‘विधीतर उपायों" को अपनाना स्वभाविक न्याय के सिद्धांतों का स्पष्ट उल्लंघन है, खासकर जब शीर्ष अदालत वर्तमान मामले की सुनवाई कर रही है।

भाजपा की राष्ट्रीय प्रवक्ता नुपुर शर्मा को निलंबित कर दिया गया और पार्टी के दिल्ली इकाई के मीडिया प्रमुख नवीन कुमार जिंदल को पैगंबर के खिलाफ उनकी टिप्पणी पर हंगामे के बीच पार्टी से निष्कासित कर दिया गया। टिप्पणी को लेकर देश भर में कई जगहों पर विरोध प्रदर्शन हुए थे।



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