राजद्रोह कानून के तहत 2014-19 में 326 मामले दर्ज, केवल छह में दोषी करार

punjabkesari.in Tuesday, May 10, 2022 - 10:45 PM (IST)

नयी दिल्ली, 10 मई (भाषा) औपनिवेशिक काल के विवादास्पद राजद्रोह कानून के तहत देश में 2014 से 2019 के बीच कुल 326 मामले दर्ज किए गए जिनमें सिर्फ छह लोगों को दोषी ठहराया गया।

केंद्रीय गृह मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, 2014 और 2019 के बीच राजद्रोह कानून के तहत कुल 326 मामले दर्ज किए गए। इनमें सबसे ज्यादा असम में 54 मामले दर्ज किए गए। अधिकारियों ने बताया कि दर्ज मामलों में से 141 मामलों में आरोपपत्र दाखिल किए गए जबकि छह साल की अवधि में केवल छह लोगों को अपराध के लिए दोषी करार दिया गया।

आंकड़ों के मुताबिक, असम में दर्ज किए गए 54 मामलों में से 26 मामलों में आरोपपत्र दाखिल किए गए और 25 मामलों में मुकदमा पूरा हो गया। हालांकि, 2014 और 2019 के बीच एक भी मामले में दोष सिद्ध नहीं हुआ।

झारखंड ने छह वर्षों के दौरान धारा 124 (ए) के तहत 40 मामले दर्ज किए, जिनमें से 29 मामलों में आरोपपत्र दाखिल किए गए और 16 मामलों में मुकदमा पूरा हो गया। राज्य में दर्ज इन सभी मामलों में से केवल एक व्यक्ति को दोषी ठहराया गया।

हरियाणा में राजद्रोह कानून के तहत 19 मामलों में आरोपपत्र दाखिल करने के साथ 31 मामले दर्ज किए गए और छह मामलों में सुनवाई पूरी हुई। यहां भी सिर्फ एक व्यक्ति को दोषी ठहराया गया। बिहार, जम्मू कश्मीर और केरल में राजद्रोह कानून के तहत 25-25 मामले दर्ज किए।

उत्तर प्रदेश में 2014 से 2019 के बीच 17 और पश्चिम बंगाल में राजद्रोह के आठ मामले दर्ज किए गए। उत्तर प्रदेश में आठ मामलों में और पश्चिम बंगाल में पांच मामलों में आरोपपत्र दाखिल किए गए, दोनों राज्यों में किसी को भी दोषी नहीं ठहराया गया था।

इस अवधि में दिल्ली में चार मामले दर्ज किए गए। किसी भी मामले में आरोपपत्र दाखिल नहीं हुआ और ना ही किसी को दोषी ठहराया गया। छह साल की अवधि में मेघालय, मिजोरम, त्रिपुरा, सिक्किम, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, लक्षद्वीप, पुडुचेरी, चंडीगढ़, दमन और दीव तथा दादरा और नगर हवेली में राजद्रोह का कोई मामला दर्ज नहीं किया गया।

महाराष्ट्र (2015 में), पंजाब (2015), और उत्तराखंड (2017) में राजद्रोह का एक-एक मामला दर्ज किया गया था। गृह मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, 2019 में देश में राजद्रोह के सबसे ज्यादा 93 मामले दर्ज किए गए। वर्ष 2018 में, ऐसे 70 मामले दर्ज किए गए, उसके बाद 2017 में 51, 2014 में 47, 2016 में 35 और 2015 में 30 मामले दर्ज किए गए।

केंद्र ने सोमवार को उच्चतम न्यायालय से यह अनुरोध किया कि वह राजद्रोह कानून की संवैधानिक वैधता का अध्ययन करने में समय नहीं लगाए। केंद्र सरकार ने कहा कि उसने ‘उचित फोरम’ द्वारा राजद्रोह संबंधी कानून का ‘पुन: अध्ययन और उस पर पुनर्विचार कराने’ का फैसला किया है।

गृह मंत्रालय ने शीर्ष अदालत में दाखिल एक हलफनामे में कहा कि उसका निर्णय औपनिवेशिक चीजों से छुटकारा पाने के संदर्भ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विचारों के अनुरूप है और वह नागरिक स्वतंत्रता और मानवाधिकारों के सम्मान के पक्षधर रहे हैं तथा इसी भावना से 1,500 से अधिक अप्रचलित हो चुके कानूनों को समाप्त कर दिया गया है।



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PTI News Agency

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