थरूर ने उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयुसीमा बढ़ाने की मांग की

punjabkesari.in Tuesday, Dec 07, 2021 - 05:34 PM (IST)

नयी दिल्ली, सात दिसंबर (भाषा) लोकसभा में कांग्रेस सदस्य शशि थरूर ने उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयुसीमा बढ़ाने की मांग की तथा न्यायपालिका से जुड़े अन्य मुद्दों के समाधान के लिये सरकार से कदम उठाने को कहा ।
वहीं, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सदस्य पी पी चौधरी ने अखिल भारतीय न्यायिक सेवा शुरू किये जाने की मांग की ।
‘उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय न्यायाधीश (वेतन और सेवा शर्त) संशोधन विधेयक, 2021’ पर चर्चा की शुरुआत करते हुए कांग्रेस के शशि थरूर ने कहा कि सरकार को इस विधेयक के जरिये न्यायपालिका से जुड़े कछ दूसरे मुद्दों का समाधान करना चाहिए था।

उन्होंने कहा कि सरकार को उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयुसीमा बढ़ाने और अदालतों में लंबित मामलों का निपटारा करने के उपायों पर ध्यान देना चाहिए था।

थरूर ने सवाल किया क्या सरकार उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयुसीमा को 62 से बढ़ाकर 65 साल करना चाहती है जैसा कि उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों के लिए तय है?
कांग्रेस सदस्य ने कहा कि सरकार को उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयुसीमा में एकरुपता होनी चाहिए।
उन्होंने ऊपरी अदालतों में न्यायाधीशों के रिक्त पदों का मुद्दा भी उठाया और कहा कि अगर ये पद रिक्त होंगे तो फिर लोगों को त्वरित न्याय कैसे मिलेगा।

थरूर ने कहा कि 4.4 करोड़ से अधिक मामले अदालतों में लंबित हैं, सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए।

उन्होंने कहा कि डेनमार्क, ऑस्ट्रेलिया और कुछ देशों में न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयुसीमा 70 साल है।
चर्चा के दौरान कांग्रेस नेता ने उच्चतम न्यायालय में लंबित कुछ विवादित मामलों का उल्लेख किया जिस पर संसदीय कार्य राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल और भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने आपत्ति जताई और व्यवस्था के प्रश्न का हवाला देते हुए कहा कि शीर्ष अदालत में लंबित मामलों पर यहां टिप्पणी नहीं की जा सकती।

इस पर पीठासीन सभापति अंडिमुथु राजा ने कहा कि वह इसे देखेंगे और अगर कुछ भी संसदीय कार्यवाही की प्रक्रिया के विपरीत लगा तो उसे हटा दिया जाएगा।
थरूर ने दावा किया कि कि न्यायपालिका ने हाल के वर्षों में संशोधित नागरिकता कानून (सीएए), नोटबंदी और सरकार के कई अन्य कदमों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करने में विलंब किया है।

उन्होंने कहा कि ‘‘संविधान का उल्लंघन करने वाले कई कदमों और कानूनों पर उच्चतम न्यायालय ने सुनवाई नहीं की।’’
कांग्रेस ने सवाल किया कि क्या सरकार के कदमों के साथ न्यायपालिका की सहमति है? उन्होंने कहा कि न्यायपालिका और विधायिका की शक्तियों में स्पष्ट अंतर होना चाहिए।

थरूर ने कहा कि न्यायाधीशों को सेवानिवृत्ति के तत्काल बाद कोई पद नहीं दिया जाना चाहिए, बल्कि इसके लिए तीन-चार साल का ‘कूलिंग पीरियड’ होना चाहिए।

चर्चा में भाग लेते हुए भाजपा के पी पी चौधरी ने कहा कि संसदीय लोकतंत्र में सभी मंत्रियों की जवाबदेही होती है लेकिन उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की बात करे तब कानून मंत्री के संदर्भ में ऐसी कोई बात नहीं होती, नियुक्ति को लेकर उनकी (कानून मंत्री) की कोई भूमिका नहीं होती ।

उन्होंने कहा कि देश में 1952 से लेकर 1993 तक राष्ट्रपति द्वारा प्रधान न्यायाधीश की सिफारिश से उच्चतम न्यायालय में और राज्यों के राज्यपालों की सिफारिश से उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति की व्यवस्था थी ।
चौधरी ने कहा कि 1993 से पहले नियुक्त न्यायाधीशों ने अनेक महत्वपूर्ण फैसले दिये और उनमें प्रतिभा की कमी नहीं थी । इसके बाद कालेजियम की व्यवस्था आई जिसमें कई मुद्दे आते हैं ।
उन्होंने कहा कि अमेरिका समेत अनेक देशों में उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति सरकार द्वारा या उसकी सिफारिश से होती है, लेकिन भारत में इस बाबत पूरी तरह ‘‘चैक एंड बेलैंस’’ की व्यवस्था है।

चौधरी ने कहा कि देश में ‘अख्रिल भारतीय न्यायिक सेवा’ शुरू किये जाने की मांग की ताकि न्यायपालिका में संघीय व्यवस्था लाई जा सके।

भाजपा सदस्य ने यह भी कहा कि अगर संसद ‘कंसल्टेशन’ शब्द को परिभाषित करे तो न्यायपालिका और विधायिका के बीच अधिकारों के विभाजन को लेकर समस्या का समाधान हो जाएगा। जारी

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