मोदी ने पारिवारिक पार्टियां को बताया चिंता का विषय : कहा कि ऐसे दल नहीं कर सकते लोकतंत्र की रक्षा

punjabkesari.in Saturday, Nov 27, 2021 - 09:50 AM (IST)

नयी दिल्ली, 26 नवंबर (भाषा) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को कांग्रेस सहित कुछ अन्य विपक्षी दलों पर कड़ा प्रहार करते हुए कहा कि कश्मीर से कन्याकुमारी तक पारिवारिक पार्टियों के रूप में भारत एक ऐसे संकट की ओर बढ़ रहा है, जो लोकतंत्र के प्रति आस्था रखने वालों के लिए चिंता का विषय है। साथ ही उन्होंने दावा किया कि लोकतांत्रिक चरित्र खो चुके दल, लोकतंत्र की रक्षा नहीं कर सकते हैं।

संसद के केंद्रीय कक्ष में संविधान दिवस पर आयोजित समारोह को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने जहां इस आयोजन का बहिष्कार करने वाले दलों को आड़े हाथों लिया वहीं राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा कि विचारधारा में मतभेद हो सकते हैं, लेकिन कोई भी मतभेद इतना बड़ा नहीं होना चाहिए कि वह जनसेवा के वास्तविक उद्देश्य में बाधा बने।

कोविंद ने कहा ,‘‘ प्रतिपक्ष वास्तव में, लोकतंत्र का सर्वाधिक महत्वपूर्ण तत्व है। सच तो यह है कि प्रभावी प्रतिपक्ष के बिना लोकतंत्र निष्प्रभावी हो जाता है।’’
राष्ट्रपति ने कहा कि सरकार और प्रतिपक्ष, अपने मतभेदों के बावजूद, नागरिकों के सर्वोत्तम हितों के लिए मिलकर काम करते रहें और उनसे यही अपेक्षा की जाती है।

संविधान दिवस पर संसद के केंद्रीय कक्ष में आयोजित कार्यक्रम को प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के अलावा उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू और लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने भी संबोधित किया।

कोविंद ने कहा कि सत्ता पक्ष और प्रतिपक्ष के सदस्यों में प्रतिस्पर्धा होना स्वाभाविक है, लेकिन यह प्रतिस्पर्धा बेहतर प्रतिनिधि बनने और जन-कल्याण के लिए बेहतर काम करने की होनी चाहिए और तभी इसे स्वस्थ प्रतिस्पर्धा माना जाएगा।

राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘ संसद में प्रतिस्पर्धा को प्रतिद्वंद्विता नहीं समझा जाना चाहिए।’’
नायडू ने कहा कि संविधान में देश के एक लोकतांत्रित गणतंत्र होने की जरूरत को रेखांकित किया गया है, ऐसे में विधान मंडलों में चर्चा और संवाद होना चाहिए और व्यवधान डालकर इसे निष्क्रिय नहीं बनाया जाना चाहिए।
राज्यसभा के सभापति ने संसद की कार्यवाही के दौरान व्यवधान पैदा किये जाने पर चिंता व्यक्त की और कहा कि सरकार को दिये गए जनादेश का सम्मान किया जाना चाहिए।

प्रधानमंत्री ने संविधान दिवस पर उच्चतम न्यायलय की ओर से आयोजित दो दिवसीय संविधान दिवस समारोहों में भी हिस्सा लिया और वहां भी बगैर किसी दल का नाम लिए आरोप लगाया कि उपनिवेशवाद की मानसिकता के चलते अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर या अन्य चीजों का सहारा लेकर अपने ही देश के विकास में रोड़े अटकाए जाते हैं।

उन्होंने कहा कि भारत एकमात्र देश है, जो पेरिस समझौते के लक्ष्यों को समय से पहले पूरा करने की ओर अग्रसर है लेकिन इसके बावजूद उपनिवेशवादी मानसिकता के चलते देश पर पर्यावरण के नाम पर तरह-तरह के दबाव बनाए जाते हैं।

प्रधानमंत्री ने इस उपनिवेशवादी मानसिकता को दूर करने की जरूरत पर बल देते हुए कहा कि इसके लिए सबसे बड़ी शक्ति और सबसे बड़ा प्रेरणा स्रोत भारत का संविधान ही है।

बहरहाल, संसद भवन में आयोजित समारोह का कुछ विपक्षी दलों द्वारा बहिष्कार किए जाने पर चिंता जताते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि संविधान निर्माता बाबा साहेब आंबेडकर जैसे स्वतंत्रता सेनानियों के योगदान का स्मरण ना करने और उनके खिलाफ ‘‘विरोध के भाव’’ को यह देश स्वीकार नहीं करेगा।
उन्होंने कहा कि संविधान की भावनाओं को चोट पहुंचाए जाने की घटनाओं को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, इसलिए हर वर्ष संविधान दिवस मनाकर राजनीतिक दलों को अपना मूल्यांकन करना चाहिए।

उन्होंने कहा, ‘‘अच्छा होता कि देश आजाद होने के बाद... 26 जनवरी के बाद (संविधान लागू होने के बाद)...देश में संविधान दिवस मनाने की परंपरा शुरू होती।’’
उन्होंने कहा कि ऐसा होता तो एक जीवंत इकाई और सामाजिक दस्तावेज के रूप में संविधान एक बहुत बड़ी ताकत के रूप में पीढ़ी दर पीढ़ी काम आता।

उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन कुछ लोग इससे चूक गए।’’
प्रधानमंत्री ने कहा कि जब वर्ष 2015 में उन्होंने संसद में बाबा साहब आंबेडकर की 125 वीं जयंती पर संविधान दिवस मनाने का प्रस्ताव रखा था, उस वक्त भी इसका विरोध किया गया था।

उन्होंने कहा, ‘‘विरोध आज भी हो रहा है... उस दिन भी हुआ था। बाबा साहेब आंबेडकर का नाम हो और आपके मन में विरोध का भाव उठे, देश यह सुनने को तैयार नहीं है। अब भी बड़ा दिल रखकर, खुलेमन से ...बाबा साहब आंबेडकर जैसे मनीषियों ने जो देश को दिया है, इसका स्मरण करने को तैयार ना होना, यह चिंता का विषय है।’’
ज्ञात हो कि कांग्रेस समेत 15 विपक्षी दलों ने सरकार पर संविधान की मूल भावना पर आघात करने और अधिनायकवादी तरीके से कामकाज करने का आरोप लगाते हुए संविधान दिवस के इस कार्यक्रम का बहिष्कार किया।

कांग्रेस के अलावा समाजवादी पार्टी, आम आदमी पार्टी, भाकपा, माकपा, द्रमुक, अकाली दल, शिवसेना, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, तृणमूल कांग्रेस, राजद, आरएसपी, केरल कांग्रेस (एम), आईयूएमएल और एआईएमआईएम इस कार्यक्रम से दूर रहे।

भाजपा एवं सहयोगी दलों के साथ ही, वाईएसआर कांग्रेस पार्टी, तेलंगाना राष्ट्र समिति, तेलुगू देशम पार्टी, बीजू जनता दल और बसपा के सदस्य भी कार्यक्रम में शामिल हुए।

प्रधानमंत्री ने कहा कि यह आयोजन किसी सरकार या राजनीतिक दल या किसी प्रधानमंत्री का नहीं था बल्कि इसका आयोजन लोकसभा अध्यक्ष की ओर से किया गया था।

भारत की संवैधानिक लोकतांत्रिक परंपरा में राजनीतिक दलों के महत्व का उल्लेख करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि वह संविधान की भावनाओं को जन-जन तक पहुंचाने का एक प्रमुख माध्यम भी हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘... लेकिन संविधान की भावना को भी चोट पहुंची है, संविधान की एक-एक धारा को भी चोट पहुंची है, जब राजनीतिक दल अपने आप में, अपना लोकतांत्रिक चरित्र खो देते हैं। जो दल स्वयं का लोकतांत्रिक चरित्र खो चुके हों, वह लोकतंत्र की रक्षा कैसे कर सकते हैं?’’
उन्होंने किसी दल का नाम लिए बगैर कहा कि यदि कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक आज के राजनीतिक दलों को देखा जाए तो भारत एक ऐसे संकट की तरफ बढ़ रहा है, जो संविधान के प्रति समर्पित ओर लोकतंत्र के प्रति आस्था रखने वाले लोगों के लिए चिंता का विषय है।

उन्होंने कहा, ‘‘... और वह है पारिवारिक पार्टियां...राजनीतिक दल... पार्टी फॉर द फैमिली, पार्टी बाय द फैमिली...अब आगे कहने की जरूरत मुझे नहीं लगती है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘कश्मीर से कन्याकुमारी तक राजनीतिक दलों की ओर देखिए। यह लोकतंत्र की भावना के खिलाफ है। संविधान हमें जो कहता है, उसके विपरीत है।’’
उन्होंने पारिवारिक पार्टियों की व्याख्या भी की और कहा कि योग्यता के आधार पर व जनता के आशीर्वाद से किसी परिवार से एक से अधिक लोग राजनीति में जाएं, इससे पार्टी परिवारवादी नहीं बन जाती।

उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन जो पार्टी पीढ़ी दर पीढ़ी एक ही परिवार चलाता रहे, पार्टी की सारी व्यवस्था परिवारों के पास रहे तो वह स्वस्थ लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा संकट होता है।’’
उन्होंने देश में इस बारे में जागरूकता लाने की आवश्यकता पर बल दिया और जापान में इसी प्रकार के एक प्रयोग का उल्लेख किया और कहा, ‘‘लोकतंत्र को समृद्ध करने के लिए हमें भी हमारे देश में ऐसी चीजों की ओर जाने की आवश्यकता है, चिंता करने की आवश्यकता है, देशवासियों को जगाने की आवश्यकता है।’’
प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में राजनीति में भ्रष्टाचार का मुद्दा भी उठाया और ‘‘राजनीतिक स्वार्थ’’ के कारण दोष सिद्ध हो चुके लोगों का कथित तौर पर महिमामंडन किए जाने पर चिंता जताई।

उन्होंने कहा, ‘‘क्या हमें ऐसी समाज व्यवस्था खड़ी करनी है? भ्रष्टाचार का अपराध सिद्ध हो चुका हो, उसे सुधरने का मौका दिया जा सकता है, लेकिन सार्वजनिक जीवन में उसे प्रतिष्ठा देने की जो प्रतिस्पर्धा चल पड़ी है, मैं समझता हूं कि अपने आप में नए लोगों को लूटने के रास्तों पर जाने के लिए मजबूर करती है। हमें चिंतित होने की जरूरत है।’’
आजादी के 75 वर्ष के उपलक्ष्य पर देश में मनाए जा रहे ‘‘अमृत महोत्सव’’ का उल्लेख करते हुए प्रधानमंत्री ने देशवासियों से कर्तव्य पथ पर चलने का आग्रह किया।

उन्होंने कहा कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी आजादी के आंदोलन में अधिकारों के लिए लड़ते हुए भी, सफाई, शिक्षा, नारी सशक्तीकरण जैसे विचारों व कर्तव्यों के लिए देश को तैयार करने की कोशिश की थी।

उन्होंने कहा कि आजादी के बाद महात्मा गांधी ने कर्तव्य के जो बीज बोए थे, वह अब तक वटवृक्ष बन जाने थे, लेकिन दुर्भाग्य से शासन व्यवस्था ऐसी बनी कि उसने अधिकार की ही बातें कीं और जनता को गुमराह किया।

उन्होंने कहा, ‘‘अच्छा होता अगर देश के आजाद होने के बाद कर्तव्य पर बल दिया गया होता, तो अधिकारों की अपने आप रक्षा होती, क्योंकि कर्तव्य से दायित्व व सामाजिक जिम्मेदारी का बोध होता है, जबकि अधिकार से कभी-कभी याचक भाव का बोध होता है।’’
उन्होंने कहा कि आजादी के अमृत महोत्सव में हमारे लिए आवश्यक है कि कर्तव्य के पथ पर आगे बढ़ें ताकि अधिकारों की रक्षा हो और सम्मान के साथ हक भी मिले।

अपने संबोधन की शुरुआत में प्रधानमंत्री ने संविधान निर्माताओं को श्रद्धांजलि दी तथा स्वतंत्रता सेनानियों को याद किया।

प्रधानमंत्री ने मुंबई आतंकी हमले का जिक्र करते हुए कहा, ‘‘ हमारे लिए 26/11 दुखद दिन है, क्योंकि इस दिन देश के दुश्मनों ने मुंबई में आतंकवादी हमले को अंजाम दिया था।’’
मोदी ने 26/11 को मुंबई में हुए आतंकवादी हमले के दौरान देश की रक्षा करते हुए प्राण न्योछावर करने वाले सुरक्षा कर्मियों को श्रद्धांजलि दी।

कार्यक्रम की शुरुआत संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी के स्वागत भाषण से हुई और उसके बाद लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला, उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू और फिर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने भी कार्यक्रम को संबोधित किया।

राष्ट्रपति कोविंद ने इस अवसर पर लोकतंत्र पर ऑनलाइन प्रश्नोत्तरी के पोर्टल की शुरुआत भी की। उन्होंने संविधान सभा की चर्चाओं का डिजिटल संस्करण, भारत के मूल संविधान की सुलेखित प्रति का डिजिटल संस्करण भी जारी किया।
ज्ञात हो कि संविधान दिवस 26 नवंबर को मनाया जाता है क्योंकि 1949 में इसी दिन संविधान सभा ने भारत के संविधान को अंगीकार किया था। संविधान दिवस की शुरुआत 2015 से की गई थी। भारत का संविधान 26 जनवरी, 1950 को लागू हुआ था।



यह आर्टिकल पंजाब केसरी टीम द्वारा संपादित नहीं है, इसे एजेंसी फीड से ऑटो-अपलोड किया गया है।

सबसे ज्यादा पढ़े गए

PTI News Agency

Recommended News