पेगासस जासूसी विवाद: न्यायालय ने कहा कि प्रेस की स्वतंत्रता लोकतंत्र का महत्वपूर्ण स्तंभ
punjabkesari.in Wednesday, Oct 27, 2021 - 04:44 PM (IST)
नयी दिल्ली, 27 अक्टूबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को कहा कि प्रेस की आजादी लोकतंत्र का ‘महत्वपूर्ण स्तंभ’ है और पेगासस मामले में अदालत का काम पत्रकारीय सूत्रों की सुरक्षा के महत्व के लिहाज से अहम है।
शीर्ष अदालत ने भारत में कुछ लोगों की निगरानी के लिए इजराइली स्पाईवेयर पेगासस के कथित इस्तेमाल के मामले में जांच के लिए तीन सदस्यीय विशेषज्ञ समिति की नियुक्ति की है। न्यायालय ने प्रेस की आजादी से संबंधित पहलू को रेखांकित करते हुए कहा कि वह सच का पता लगाने और आरोपों की तह तक जाने के लिए मामले को लेने के लिए बाध्य है।
प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि निगरानी और यह जानकारी कि किसी पर जासूसी का खतरा है, यह किसी व्यक्ति द्वारा अपने अधिकारों का प्रयोग करने के निर्णय के तरीके को प्रभावित कर सकता है।
पीठ में न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति हिमा कोहली भी शामिल हैं। पीठ ने कहा, ‘‘जब प्रेस की आजादी की बात होती है जो कि लोकतंत्र का महत्वपूर्ण स्तंभ है तो यह खासतौर पर चिंता की बात है। प्रेस की आजादी पर इस तरह की अड़चन उसकी सार्वजनिक निगरानी की महत्वपूर्ण भूमिका पर हमला है, जिससे सटीक और प्रामाणिक जानकारी प्राप्त करने की प्रेस की क्षमता को कमजोर करती है।’’
कथित पेगासस जासूसी मामले में स्वतंत्र जांच की मांग वाली याचिकाओं पर 46 पन्नों के अपने आदेश में शीर्ष अदालत ने कहा कि पत्रकारीय सूत्रों का संरक्षण प्रेस की आजादी के लिए एक बुनियादी शर्त है और इसके बिना सूत्र जनहित के मामलों पर जनता को सूचित करने में मीडिया की मदद करने से विचलित हो सकते हैं।
संविधान के अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को निरस्त करने के बाद जम्मू-कश्मीर में लगाए गए प्रतिबंधों के खिलाफ याचिकाओं पर पिछले साल जनवरी में दिए गए शीर्ष अदालत के फैसले का जिक्र करते हुए पीठ ने कहा कि उस निर्णय में न्यायालय ने आधुनिक लोकतंत्र में प्रेस की स्वतंत्रता के महत्व पर प्रकाश डाला था।
यह आर्टिकल पंजाब केसरी टीम द्वारा संपादित नहीं है, इसे एजेंसी फीड से ऑटो-अपलोड किया गया है।
शीर्ष अदालत ने भारत में कुछ लोगों की निगरानी के लिए इजराइली स्पाईवेयर पेगासस के कथित इस्तेमाल के मामले में जांच के लिए तीन सदस्यीय विशेषज्ञ समिति की नियुक्ति की है। न्यायालय ने प्रेस की आजादी से संबंधित पहलू को रेखांकित करते हुए कहा कि वह सच का पता लगाने और आरोपों की तह तक जाने के लिए मामले को लेने के लिए बाध्य है।
प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि निगरानी और यह जानकारी कि किसी पर जासूसी का खतरा है, यह किसी व्यक्ति द्वारा अपने अधिकारों का प्रयोग करने के निर्णय के तरीके को प्रभावित कर सकता है।
पीठ में न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति हिमा कोहली भी शामिल हैं। पीठ ने कहा, ‘‘जब प्रेस की आजादी की बात होती है जो कि लोकतंत्र का महत्वपूर्ण स्तंभ है तो यह खासतौर पर चिंता की बात है। प्रेस की आजादी पर इस तरह की अड़चन उसकी सार्वजनिक निगरानी की महत्वपूर्ण भूमिका पर हमला है, जिससे सटीक और प्रामाणिक जानकारी प्राप्त करने की प्रेस की क्षमता को कमजोर करती है।’’
कथित पेगासस जासूसी मामले में स्वतंत्र जांच की मांग वाली याचिकाओं पर 46 पन्नों के अपने आदेश में शीर्ष अदालत ने कहा कि पत्रकारीय सूत्रों का संरक्षण प्रेस की आजादी के लिए एक बुनियादी शर्त है और इसके बिना सूत्र जनहित के मामलों पर जनता को सूचित करने में मीडिया की मदद करने से विचलित हो सकते हैं।
संविधान के अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को निरस्त करने के बाद जम्मू-कश्मीर में लगाए गए प्रतिबंधों के खिलाफ याचिकाओं पर पिछले साल जनवरी में दिए गए शीर्ष अदालत के फैसले का जिक्र करते हुए पीठ ने कहा कि उस निर्णय में न्यायालय ने आधुनिक लोकतंत्र में प्रेस की स्वतंत्रता के महत्व पर प्रकाश डाला था।
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