किसानों को विरोध करने का अधिकार है लेकिन वे अनिश्चितकाल के लिए सड़क अवरुद्ध नहीं कर सकते: न्यायालय

punjabkesari.in Thursday, Oct 21, 2021 - 07:50 PM (IST)

नयी दिल्ली, 21 अक्टूबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे किसानों को केंद्र के कृषि कानूनों का विरोध करने का अधिकार है लेकिन वे अनिश्चितकाल के लिए सड़क अवरुद्ध नहीं कर सकते।
किसान संघों ने आरोप लगाया कि पुलिस अवरुद्ध के लिए जिम्मेदार है क्योंकि उनके लिए नागरिकों के मन में यह भावना पैदा करने के लिए उपयुक्त है कि किसान सड़क अवरुद्ध कर रहे हैं।

केंद्र ने कहा कि विरोध के पीछे एक परोक्ष उद्देश्य है।

न्यायमूर्ति एस एस कौल और न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश की पीठ ने कहा कि कानूनी रूप से चुनौती लंबित है फिर भी न्यायालय विरोध के अधिकार के खिलाफ नहीं है लेकिन अंततः इसका कोई समाधान निकालना होगा।
पीठ ने कहा, “किसानों को विरोध प्रदर्शन करने का अधिकार है लेकिन वे अनिश्चितकाल के लिए सड़क अवरुद्ध नहीं कर सकते। आप जिस तरीके से चाहें विरोध कर सकते हैं लेकिन सड़कों को इस तरह अवरुद्ध नहीं कर सकते। लोगों को सड़कों पर जाने का अधिकार है और वे इसे अवरुद्ध नहीं कर सकते।”
शीर्ष अदालत ने किसान यूनियनों से इस मुद्दे पर तीन सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया और मामले को सात दिसंबर को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया।
पीठ ने कहा कि उसके पहले के निर्देश के अनुसरण में केवल चार प्रतिवादी उसके सामने पेश हुए हैं।

शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘जहां तक सड़क का सवाल है, क्या सड़क को अवरुद्ध किया जा सकता है?’’ पीठ ने कहा, ‘‘हम केवल इस मुद्दे से चिंतित हैं कि सड़कें अवरुद्ध नहीं हो। कानून बनाया गया है (शाहीन बाग विरोध मामला)। आपको आंदोलन करने का अधिकार है लेकिन आप सड़कों को अवरुद्ध नहीं कर सकते। सड़कों पर लोगों का भी अधिकार है।’’
किसान संघों का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने कहा कि विरोध का अधिकार एक मौलिक अधिकार है। उन्होंने कहा कि इसी तरह के कई मामले शीर्ष अदालत की एक अन्य पीठ के समक्ष लंबित हैं और इस मामले को भी उनके साथ संलग्न किया जाना चाहिए और उसी पीठ को इसकी भी सुनवाई करनी चाहिए।

वरिष्ठ अधिवक्ता ने आरोप लगाया कि किसानों ने नहीं बल्कि पुलिस ने सड़कों को अवरुद्ध किया है और उन्होंने उन सड़कों पर छह बार यात्रा की है।
दवे ने कहा कि नाकेबंदी हटाने का सरल उपाय यह है कि पुलिस किसानों को रामलीला मैदान और जंतर-मंतर पर जाने दे।
हालांकि, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि विरोध के पीछे एक परोक्ष उद्देश्य है और ‘‘कभी-कभी यह महसूस किया जाता है कि किसानों का विरोध किसी और कारण से तो नहीं है।’’
सॉलिसिटर जनरल ने कहा, ‘‘पिछली बार जब वे (गणतंत्र दिवस पर) आए थे, तो यह एक गंभीर मुद्दा बन गया था।’’
उनकी दलील पर प्रतिक्रिया देते हुए, दवे ने कहा, हालांकि, एक स्वतंत्र जांच से पता चलेगा कि गंभीर मुद्दे को गढ़ा गया था और लोगों को जमानत दी गई थी जिन्होंने कथित तौर पर लाल किले पर चढ़कर इस देश का अपमान किया था।

मेहता की इस दलील पर कि विरोध के पीछे एक परोक्ष उद्देश्य था, दवे ने कहा कि वह किसानों की वास्तविकता पर आरोप नहीं लगा सकते। उन्होंने कहा, ‘‘हम सभी जानते हैं कि कृषि कानूनों को पारित करने का उद्देश्य कॉर्पोरेट घरानों की मदद करना है।’’
पीठ ने दवे से पूछा, ‘‘क्या यह आपका तर्क है कि सड़कों पर कब्जा किया जा सकता है, या आपकी यह दलील है कि पुलिस ने सड़कों को अवरुद्ध कर दिया है।’’
दवे ने कहा कि दिल्ली पुलिस द्वारा अनुचित व्यवस्था के कारण सड़कों को अवरुद्ध कर दिया गया है।
दवे ने पीठ को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘न्यायिक अनुशासन की मांग है कि इस मामले को तीन न्यायाधीशों की पीठ को स्थानांतरित किया जाए।’’
इस पर प्रतिक्रिया देते हुए सॉलिसिटर जनरल ने कहा, ‘‘हम इस तरह की धौंस के आगे नहीं झुकेंगे।’’
शीर्ष अदालत ने दवे की इस दलील पर गौर किया कि वह नहीं चाहते कि यह पीठ मामले की सुनवाई करे और मामले को सुनवाई के लिए दूसरी पीठ को भेजा जाए।

न्यायालय नोएडा की निवासी मोनिका अग्रवाल की याचिका पर सुनवाई कर रहा था जिसमें कहा गया है कि किसान आंदोलन के कारण सड़क अवरुद्ध होने से आवाजाही में मुश्किल हो रही है।


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