पिछले साल अक्टूबर-नवंबर में केवल 60 % गर्भवती महिलाएं तीन वक्त का खाना खा सकती थीं : अध्ययन
punjabkesari.in Wednesday, Oct 20, 2021 - 10:38 PM (IST)
नयी दिल्ली, 20 अक्टूबर (भाषा) एक नवीनतम अध्ययन में दावा किया गया है कि उसके अध्ययन में शामिल केवल 60 प्रतिशत गर्भवर्ती महिलाएं ही पिछले साल अक्टूबर-नवंबर में तीन वक्त का खाना खा सकती थीं जो महामारी के दौरान सबसे अधिक असुरक्षित आबादी के बीच भोजन की पर्याप्त उपलब्धता का अभाव प्रतिबिंबित करता है।
यूनीसेफ इंडिया द्वारा भारतीय मानव विकास संस्थान (आईएचडी) की साझेदारी में किए गए अध्ययन में करीब छह हजार परिवारों ने हिस्सा लिया। अध्ययन के दौरान मई से दिसंबर 2020 के बीच चार चरणों में आंकड़े एकत्र किए गए जिनमें सात राज्य- आंध्र प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, तमिलनाडु, तेलंगाना और उत्तर प्रदेश- के 12 जिलों से प्रतिभागियों को चुना गया।
यह अध्ययन ‘‘सबसे असुरक्षित आबादी पर कोविड-19 का सामाजिक आर्थिक असर का आकलन- समुदाय आधारित निगरानी के जरिये’’ शीर्षक से किया गया। इसमें पाया गया महामारी के दौरान प्रतिभागियों द्वारा पर्याप्त भोजन का जुगाड़ करना सबसे बड़ी चुनौती थी।
अध्ययन में कहा गया, ‘‘पांच में से केवल तीन महिला (60 प्रतिशत) प्रतिभागी तीन वक्त का खाना खा सकती थी जो सबसे असुरक्षित आबादी पर भोजन की उपलब्धता को लेकर दबाव को प्रतिबिंबित करता है।भोजन की अनुपलब्धता अजन्में बच्चे के पोषण को भी बुरी तरह से प्रभावित किया। उत्तर प्रदेश के जलौन, ललितपुर और आगरा जिले से प्राप्त नमूने इस संदर्भ में सबसे खराब रहे।’’
अध्ययन के मुताबिक एक तिहाई प्रतिभागियों ने लॉकडाउन से पूर्व के मुकबाले पिछले साल दिसंबर में आवश्यक खाद्य सामग्री जैसे सब्जी, दूध, फल और अंडे पर कम व्यय किया।
अध्ययन में कहा गया, ‘‘इस कमी से बहुत संभव है कि इन प्रोटीन युक्त खाद्य सामग्री के सेवन में भी कमी आई और आशंका है कि इसका दुष्प्रभाव बच्चे के विकास पर भी पड़ा होगा।’’
अध्ययन में रेखांकित किया गया है कि ग्रामीण समुदायों ने इस संदर्भ में अपने शहरी समकक्षों के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन किया।
रिपोर्ट में कहा गया कि जून और जुलाई के बाद स्थिति में सुधार आया ।
अध्ययन के मुताबिक घर लौटे परिवार (लॉकडाउन के बाद अपने पैतृक गांवों पहुंचे परिवार) और महिला मुखिया वाले परिवार सामान्य परिवारों के मुकाबले बेरोजगार व्यक्ति और भोजन की उपलब्धता के संदर्भ में अधिक असुक्षित रहे।
रिपोर्ट में कहा गया, ‘‘छोटे बच्चे वाले परिवारों और घर लौटै परिवारों में खाने की कमी अधिक रही जो संकेत करता है कि घर लौटे परिवारों के बच्चों के विकास पर अधिक दुष्प्रभाव पड़ा़।’’
यह आर्टिकल पंजाब केसरी टीम द्वारा संपादित नहीं है, इसे एजेंसी फीड से ऑटो-अपलोड किया गया है।
यूनीसेफ इंडिया द्वारा भारतीय मानव विकास संस्थान (आईएचडी) की साझेदारी में किए गए अध्ययन में करीब छह हजार परिवारों ने हिस्सा लिया। अध्ययन के दौरान मई से दिसंबर 2020 के बीच चार चरणों में आंकड़े एकत्र किए गए जिनमें सात राज्य- आंध्र प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, तमिलनाडु, तेलंगाना और उत्तर प्रदेश- के 12 जिलों से प्रतिभागियों को चुना गया।
यह अध्ययन ‘‘सबसे असुरक्षित आबादी पर कोविड-19 का सामाजिक आर्थिक असर का आकलन- समुदाय आधारित निगरानी के जरिये’’ शीर्षक से किया गया। इसमें पाया गया महामारी के दौरान प्रतिभागियों द्वारा पर्याप्त भोजन का जुगाड़ करना सबसे बड़ी चुनौती थी।
अध्ययन में कहा गया, ‘‘पांच में से केवल तीन महिला (60 प्रतिशत) प्रतिभागी तीन वक्त का खाना खा सकती थी जो सबसे असुरक्षित आबादी पर भोजन की उपलब्धता को लेकर दबाव को प्रतिबिंबित करता है।भोजन की अनुपलब्धता अजन्में बच्चे के पोषण को भी बुरी तरह से प्रभावित किया। उत्तर प्रदेश के जलौन, ललितपुर और आगरा जिले से प्राप्त नमूने इस संदर्भ में सबसे खराब रहे।’’
अध्ययन के मुताबिक एक तिहाई प्रतिभागियों ने लॉकडाउन से पूर्व के मुकबाले पिछले साल दिसंबर में आवश्यक खाद्य सामग्री जैसे सब्जी, दूध, फल और अंडे पर कम व्यय किया।
अध्ययन में कहा गया, ‘‘इस कमी से बहुत संभव है कि इन प्रोटीन युक्त खाद्य सामग्री के सेवन में भी कमी आई और आशंका है कि इसका दुष्प्रभाव बच्चे के विकास पर भी पड़ा होगा।’’
अध्ययन में रेखांकित किया गया है कि ग्रामीण समुदायों ने इस संदर्भ में अपने शहरी समकक्षों के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन किया।
रिपोर्ट में कहा गया कि जून और जुलाई के बाद स्थिति में सुधार आया ।
अध्ययन के मुताबिक घर लौटे परिवार (लॉकडाउन के बाद अपने पैतृक गांवों पहुंचे परिवार) और महिला मुखिया वाले परिवार सामान्य परिवारों के मुकाबले बेरोजगार व्यक्ति और भोजन की उपलब्धता के संदर्भ में अधिक असुक्षित रहे।
रिपोर्ट में कहा गया, ‘‘छोटे बच्चे वाले परिवारों और घर लौटै परिवारों में खाने की कमी अधिक रही जो संकेत करता है कि घर लौटे परिवारों के बच्चों के विकास पर अधिक दुष्प्रभाव पड़ा़।’’
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