स्वतंत्र भारत में श्यामा प्रसाद मुखर्जी को ज्यादा महत्व नहीं दिया गया : जितेंद्र सिंह
punjabkesari.in Thursday, Jun 24, 2021 - 12:13 AM (IST)
नयी दिल्ली, 23 जून (भाषा) केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने बुधवार को कहा कि स्वतंत्र भारत में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी को ज्यादा महत्व नहीं दिया गया।
मुखर्जी की पुण्यतिथि पर ‘संस्कृति एवं देशभक्ति के स्मारक एवं उनके महत्व’ विषय पर आयोजित वेबिनार में उन्होंने कहा कि भारत के इस महान सपूत के बारे में इतिहास ने अन्याय किया है।
सेमिनार का आयोजन भारत के राष्ट्रीय स्मारक प्राधिकरण ने इसके अध्यक्ष तरूण विजय के नेतृत्व में किया।
कार्मिक राज्य मंत्री सिंह ने कहा, ‘‘स्वतंत्र भारत में मुखर्जी को ज्यादा महत्व नहीं दिया गया। वह 20वीं सदी के ऐसे शिक्षाविद थे जिन्हें कम महत्व मिला। महज 33 वर्ष की उम्र में वह कलकता विश्वविद्यालय के कुलपति बन गए थे, तब बंगाल में शिक्षा का गौरवशाली युग था।’’
उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता प्राप्ति के कुछ वर्षों के अंदर भारत ने तीन दिग्गजों को खोया -- सरदार पटेल, बी आर आंबेडकर और मुखर्जी।
मंत्री ने कहा, ‘‘अगर वे जिंदा होते तो भारत नेहरू के जमाने में हुई भयंकर गलतियों से बच सकता था।’’
मुखर्जी के आंदोलन ‘‘एक विधान, एक निशान, एक प्रधान’’ का जिक्र करते हुए सिंह ने कहा कि बिना अनुमति लिए पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर में प्रवेश कर मुखर्जी ने कठुआ क्षेत्र में गिरफ्तारी दी थी, ताकि संदेश दिया जा सके कि जम्मू-कश्मीर अन्य प्रांतों की भांति ही भारत का अभिन्न अंग है।
उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर के उधमपुर और रामबन जिले के बीच ‘चेनानी-नाशरी राजमार्ग सुरंग’ का नाम मुखर्जी के नाम पर रखकर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की गई है। सिंह ने कहा कि 70 वर्षों में यह भारत की पहली बड़ी परियोजना है जिसका नामकरण केंद्र सरकार ने उनके नाम पर किया।
यह आर्टिकल पंजाब केसरी टीम द्वारा संपादित नहीं है, इसे एजेंसी फीड से ऑटो-अपलोड किया गया है।
मुखर्जी की पुण्यतिथि पर ‘संस्कृति एवं देशभक्ति के स्मारक एवं उनके महत्व’ विषय पर आयोजित वेबिनार में उन्होंने कहा कि भारत के इस महान सपूत के बारे में इतिहास ने अन्याय किया है।
सेमिनार का आयोजन भारत के राष्ट्रीय स्मारक प्राधिकरण ने इसके अध्यक्ष तरूण विजय के नेतृत्व में किया।
कार्मिक राज्य मंत्री सिंह ने कहा, ‘‘स्वतंत्र भारत में मुखर्जी को ज्यादा महत्व नहीं दिया गया। वह 20वीं सदी के ऐसे शिक्षाविद थे जिन्हें कम महत्व मिला। महज 33 वर्ष की उम्र में वह कलकता विश्वविद्यालय के कुलपति बन गए थे, तब बंगाल में शिक्षा का गौरवशाली युग था।’’
उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता प्राप्ति के कुछ वर्षों के अंदर भारत ने तीन दिग्गजों को खोया -- सरदार पटेल, बी आर आंबेडकर और मुखर्जी।
मंत्री ने कहा, ‘‘अगर वे जिंदा होते तो भारत नेहरू के जमाने में हुई भयंकर गलतियों से बच सकता था।’’
मुखर्जी के आंदोलन ‘‘एक विधान, एक निशान, एक प्रधान’’ का जिक्र करते हुए सिंह ने कहा कि बिना अनुमति लिए पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर में प्रवेश कर मुखर्जी ने कठुआ क्षेत्र में गिरफ्तारी दी थी, ताकि संदेश दिया जा सके कि जम्मू-कश्मीर अन्य प्रांतों की भांति ही भारत का अभिन्न अंग है।
उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर के उधमपुर और रामबन जिले के बीच ‘चेनानी-नाशरी राजमार्ग सुरंग’ का नाम मुखर्जी के नाम पर रखकर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की गई है। सिंह ने कहा कि 70 वर्षों में यह भारत की पहली बड़ी परियोजना है जिसका नामकरण केंद्र सरकार ने उनके नाम पर किया।
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