उत्सर्जन का जलवायु पर पड़ने वाले प्रभाव का भुक्तभोगी है भारत : जावड़ेकर

punjabkesari.in Friday, Mar 19, 2021 - 01:04 PM (IST)

नयी दिल्ली, 19 मार्च (भाषा) वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने शुक्रवार को बताया कि 265 वर्षों के उत्सर्जन (कार्बन) के इतिहास के आंकड़े स्पष्ट करते हैं कि जलवायु एवं पर्यावरण पर उत्सर्जन से पड़ने वाले प्रभाव का भारत कारण नहीं, बल्कि भुक्तभोगी है।

लोकसभा में पी वी मिथुन रेड्डी, अजय मिश्रा टेनी के पूरक प्रश्नों के उत्तर में जावड़ेकर ने कहा कि हमारे पास वर्ष 1751 से 2017 तक करीब 265 वर्षों के उत्सर्जन (वायुमंडलीय कार्बन) के इतिहास के आंकड़ें हैं कि किस देश ने कितना उत्सर्जन किया है।
उन्होंने कहा कि यूरोपीय महाद्वीपीय क्षेत्र ने 33 प्रतिशत उत्सर्जन किया है और यह 540 अरब टन है। इसी प्रकार से अमेरिका ने 25 प्रतिशत उत्सर्जन किया है और यह 400 अरब टन है। चीन ने 13 प्रतिशत उत्सर्जन किया है और यह 200 अरब टन है।
वन एवं पर्यावरण मंत्री ने कहा कि भारत ने 48 अरब टन उत्सर्जन किया है। ऐसे में हम वायुमंडलीय उत्सर्जन से जुड़े विषयों के लिये जिम्मेदार नहीं हैं। उन्होंने कहा, ‘‘हमारा सकल उत्सर्जन काफी कम है लेकिन हमने सभी एहतियाती कदम उठाये हैं।’’
जावड़ेकर ने कहा, ‘‘ जलवायु परिवर्तन दुनिया के समक्ष बड़ी समस्या है। लेकिन हम समस्या का कारण नहीं हैं बल्कि भुक्तभोगी हैं।’’
उन्होंने कहा कि हम अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इस विषय को उठा रहे हैं तथा विकसित देशों से कह रहे हैं कि वे उत्सर्जन कम करें। इस विषय पर कदम उठाने में विकासशील देशों की मदद करें, उन्हें प्रौद्योगिकी सहायता प्रदान करें।
मंत्री ने कहा कि भारत सरकार अपने कई कार्यक्रमों एवं योजनाओं के माध्यम से जलवायु परिवर्तन का सामना करने के लिये दृढ़ता से प्रतिबद्ध है। इन कार्यो में राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन कार्य योजना का कार्यान्वयन शामिल है।
जावड़ेकर ने कहा कि राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन कार्य योजना और अन्य उपायों के कार्यान्वयन से 2005 और 2016 के बीच उत्सर्जन सघनता में कमी आई है।
उन्होंने यह भी कहा कि भारत जलवायु परिवर्तन का सामना करने के लिये पेरिस करार के तहत अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के पथ पर अग्रसर है।

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PTI News Agency

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