एनजीटी ने पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्र की अधिसूचना को अंतिम रूप देने का निर्देश दिया
punjabkesari.in Thursday, Oct 01, 2020 - 07:20 PM (IST)
नयी दिल्ली, एक अक्टूबर (भाषा) राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने पर्यावरण एवं वन मंत्रालय को पश्चिमी घाट में पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील क्षेत्र की अधिसूचना को 31 दिसंबर तक अंतिम रूप देने का निर्देश दिया है। साथ ही, यह भी कहा कि इसमें विलंब का कोई औचित्य नहीं है।
एनजीटी ने कहा, ‘‘यहां तक कि यदि लॉकडाउन की अवधि हटा भी दी जाए, तो भी विलंब जारी रखने का कोई औचित्य महज इसलिए नहीं हो सकता कि राज्यों ने पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील क्षेत्र (ईएसजेड) से इलाके को बाहर करने की अनुमति मांगी थी। ’’
एनजीटी अध्यक्ष न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, ‘‘अब 31 दिसंबर 2020 से पहले जरूरी चीज की जाए, अन्यथा उसके बाद मंत्रालय के ईएसजेड प्रभाग के सलाहकार का वेतन रोकने का निर्देश प्रभावी हो जाएगा। अगली तारीख से पहले इस अधिकरण को एक अनुपालन रिपोर्ट सौंपी जा सकती है। ’’
पीठ ने कहा कि उन राज्यों ने पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील क्षेत्रों को अधिक से अधिक बाहर करने की मांग की है जो विकास की जरूरतों की खातिर ऐसा चाहते हैं, जबकि पर्यावरण संरक्षा की जरूरत इस तरह की मांग को स्वीकार नहीं करती।
पीठ ने कहा कि अधिसूचना को अंतिम रूप देने की जरूरत है जो पिछले करीब आठ साल से विचारार्थ लंबित है।
अधिकरण ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए यह कहा, जिसमें यह आरोप लगाया गया है कि पश्चिमी घाट में पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील क्षेत्र की अधिसूचना को अंतिम रूप नहीं दिया गया है, जबकि एनजीटी ने छह महीने के अंदर इस कार्य को पूरा करने का निर्देश दिया था।
पश्चिमी घाट की पारिस्थितिकी के ‘‘गंभीर खतरे’’ में होने का जिक्र करते हुए अधिकरण ने इस क्षेत्र में पड़ने वाले छह राज्यों पर उन पर्यावरणीय गतिविधियों की अनुमति देने पर रोक लगा दी थी, जो पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील क्षेत्र को प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर सकते हैं।
मंत्रालय ने अपनी मसौदा अधिसूचना में छह राज्यों में फैले 56,825 वर्ग किमी क्षेत्र के पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील क्षेत्र (ईएसए) होने के रूप में पहचान की थी।
इन राज्यों में गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु शामिल हैं।
हालांकि, इसकी सिफारिशों के खिलाफ विभिन्न संगठनों और राजनीतिक दलों के विरोध प्रदर्शन के बाद सरकार ने के. कस्तूरीरंगन समिति का गठन किया, जिसे पश्चिमी घाट पारिस्थितिकी विशेषज्ञ समिति रिपोर्ट की पड़ताल करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी।
कस्तूरीरंगन समिति ने सिफारिश की कि कुल क्षेत्र के बजाय पश्चिमी घाट के सिर्फ 37 प्रतिशत क्षेत्र को ईएसए के दायरे में लाया जाए।
यह आर्टिकल पंजाब केसरी टीम द्वारा संपादित नहीं है, इसे एजेंसी फीड से ऑटो-अपलोड किया गया है।
एनजीटी ने कहा, ‘‘यहां तक कि यदि लॉकडाउन की अवधि हटा भी दी जाए, तो भी विलंब जारी रखने का कोई औचित्य महज इसलिए नहीं हो सकता कि राज्यों ने पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील क्षेत्र (ईएसजेड) से इलाके को बाहर करने की अनुमति मांगी थी। ’’
एनजीटी अध्यक्ष न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, ‘‘अब 31 दिसंबर 2020 से पहले जरूरी चीज की जाए, अन्यथा उसके बाद मंत्रालय के ईएसजेड प्रभाग के सलाहकार का वेतन रोकने का निर्देश प्रभावी हो जाएगा। अगली तारीख से पहले इस अधिकरण को एक अनुपालन रिपोर्ट सौंपी जा सकती है। ’’
पीठ ने कहा कि उन राज्यों ने पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील क्षेत्रों को अधिक से अधिक बाहर करने की मांग की है जो विकास की जरूरतों की खातिर ऐसा चाहते हैं, जबकि पर्यावरण संरक्षा की जरूरत इस तरह की मांग को स्वीकार नहीं करती।
पीठ ने कहा कि अधिसूचना को अंतिम रूप देने की जरूरत है जो पिछले करीब आठ साल से विचारार्थ लंबित है।
अधिकरण ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए यह कहा, जिसमें यह आरोप लगाया गया है कि पश्चिमी घाट में पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील क्षेत्र की अधिसूचना को अंतिम रूप नहीं दिया गया है, जबकि एनजीटी ने छह महीने के अंदर इस कार्य को पूरा करने का निर्देश दिया था।
पश्चिमी घाट की पारिस्थितिकी के ‘‘गंभीर खतरे’’ में होने का जिक्र करते हुए अधिकरण ने इस क्षेत्र में पड़ने वाले छह राज्यों पर उन पर्यावरणीय गतिविधियों की अनुमति देने पर रोक लगा दी थी, जो पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील क्षेत्र को प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर सकते हैं।
मंत्रालय ने अपनी मसौदा अधिसूचना में छह राज्यों में फैले 56,825 वर्ग किमी क्षेत्र के पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील क्षेत्र (ईएसए) होने के रूप में पहचान की थी।
इन राज्यों में गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु शामिल हैं।
हालांकि, इसकी सिफारिशों के खिलाफ विभिन्न संगठनों और राजनीतिक दलों के विरोध प्रदर्शन के बाद सरकार ने के. कस्तूरीरंगन समिति का गठन किया, जिसे पश्चिमी घाट पारिस्थितिकी विशेषज्ञ समिति रिपोर्ट की पड़ताल करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी।
कस्तूरीरंगन समिति ने सिफारिश की कि कुल क्षेत्र के बजाय पश्चिमी घाट के सिर्फ 37 प्रतिशत क्षेत्र को ईएसए के दायरे में लाया जाए।
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