अदालती मामलों का बोझ कम करने में वैकल्पिक विवाद निपटान, प्रौद्योगिकी का बढ़े इस्तेमाल: चंद्रशेखरन
punjabkesari.in Saturday, Aug 08, 2020 - 12:11 AM (IST)
नयी दिल्ली, सात अगस्त (भाषा) देश के प्रमुख उद्योग समूह टाटा संस के चेयरमैन एन. चंद्रशेखरन ने शुक्रवार को अदालतों में लंबित मामलों की संख्या घटाने के लिए वैकल्पिक विवाद निपटान (एडीआर) व्यवस्था और प्रौद्योगिकी का अधिक से अधिक इस्तेमाल करने की वकालत की।
उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड के मुताबिक देश की विभिन्न अदालतों में करीब तीन करोड़ मामले लंबित हैं। देश की न्यायिक व्यवस्था में क्षमता का बड़ा मुद्दा है।
शास्त्र विश्वविद्यालय के एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए चंद्रशेखरन ने कहा कि यदि हम उच्च न्यायालयों और उच्चतम न्यायालय की बात करें तो करीब 45 लाख मामले लंबित हैं। सामान्यत एक मामले के निस्तारण में चार से पाचं साल का वक्त लग जाता है। जबकि अदालत में कार्रवाई के दौरान विवाद के निपटान की कुल राशि का करीब 40 प्रतिशत खर्च ही हो ताजा है। ऐसे में यदि जाया होने वाले समय के मूल्य को भी जोड़ लें तो विवाद निपटान में हासिल होने वाला 100 प्रतिशत खत्म हो चुका होता है।
उन्होंने कहा कि यदि इसे कॉरपोरेट कंपनियों की नजर से देखा जाए तो कानूनी मामलों पर सालभर में 45,000 करोड़ रुपये व्यय होते हैं। इस तरह उनके हिसाब से यह बड़ा खर्च है और बड़ी कमी भी जिसे दूर किए जाने की जरूरत है। ऐसे में वैकल्पिक विवाद निपटान व्यवस्था और प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल निश्चित तौर पर बड़ा फर्क ला सकती है।
राष्ट्रीय न्यायिक सूचना ग्रिड के मुताबिक देश की न्यायिक प्रणाली में करीब तीन करोड़ मामले लंबित हैं।
चंद्रशेखरन ने कहा कि व्यवस्था को प्रणाली को असंतुष्ट पार्टियों को यह विश्वास दिलाने की जरूरत है कि कोई निपटान अथवा फैसला थोड़े अथवा विवाद के बिना हो सकता है। उन्होंने कहा कि यह समय एडीआर और कृत्रिम मेधा दोनों के लिये उपयुक्त है।
उन्होंने कहा कि भारत की कोई भी सामाजिक समस्या प्रौद्योगिकी के इसतेमाल से हल हो सकती है लेकिन केवल प्रौद्योगिकी से नहीं।
यह आर्टिकल पंजाब केसरी टीम द्वारा संपादित नहीं है, इसे एजेंसी फीड से ऑटो-अपलोड किया गया है।
उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड के मुताबिक देश की विभिन्न अदालतों में करीब तीन करोड़ मामले लंबित हैं। देश की न्यायिक व्यवस्था में क्षमता का बड़ा मुद्दा है।
शास्त्र विश्वविद्यालय के एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए चंद्रशेखरन ने कहा कि यदि हम उच्च न्यायालयों और उच्चतम न्यायालय की बात करें तो करीब 45 लाख मामले लंबित हैं। सामान्यत एक मामले के निस्तारण में चार से पाचं साल का वक्त लग जाता है। जबकि अदालत में कार्रवाई के दौरान विवाद के निपटान की कुल राशि का करीब 40 प्रतिशत खर्च ही हो ताजा है। ऐसे में यदि जाया होने वाले समय के मूल्य को भी जोड़ लें तो विवाद निपटान में हासिल होने वाला 100 प्रतिशत खत्म हो चुका होता है।
उन्होंने कहा कि यदि इसे कॉरपोरेट कंपनियों की नजर से देखा जाए तो कानूनी मामलों पर सालभर में 45,000 करोड़ रुपये व्यय होते हैं। इस तरह उनके हिसाब से यह बड़ा खर्च है और बड़ी कमी भी जिसे दूर किए जाने की जरूरत है। ऐसे में वैकल्पिक विवाद निपटान व्यवस्था और प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल निश्चित तौर पर बड़ा फर्क ला सकती है।
राष्ट्रीय न्यायिक सूचना ग्रिड के मुताबिक देश की न्यायिक प्रणाली में करीब तीन करोड़ मामले लंबित हैं।
चंद्रशेखरन ने कहा कि व्यवस्था को प्रणाली को असंतुष्ट पार्टियों को यह विश्वास दिलाने की जरूरत है कि कोई निपटान अथवा फैसला थोड़े अथवा विवाद के बिना हो सकता है। उन्होंने कहा कि यह समय एडीआर और कृत्रिम मेधा दोनों के लिये उपयुक्त है।
उन्होंने कहा कि भारत की कोई भी सामाजिक समस्या प्रौद्योगिकी के इसतेमाल से हल हो सकती है लेकिन केवल प्रौद्योगिकी से नहीं।
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