आपके हर दुख को दूर कर सकती हैं ये 5 बातें

punjabkesari.in Thursday, Mar 07, 2019 - 10:13 AM (IST)

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ये बात तो सब जानते हैं कि जब-जब धरती पर अधर्म बढ़ा है तब-तब श्री हरि ने धरती पर अवतार लिए हैं और धर्म की रक्षा की है। आज हम उनके श्री कृष्ण अवतार के बारे में बात करेंगे। भगवान कृष्ण ने महाभारत में अर्जुन को गीता का ज्ञान देकर उसे युद्ध के लिए प्रेरित किया था। गीता में ऐसी बहुत सी बातों का वर्णन मिलता है, जिन्हें अगर कोई व्यक्ति अपने जीवन में अपना ले तो उसका जीवन सुधर सकता है। ऐसा माना जाता है कि अगर किसी व्यक्ति को कोई चिंता या परेशानी हो तो उसे भगवद् गीता अवश्य पढ़नी चाहिए, क्योंकि ऐसा कहा गया है कि हर रोज़ गीता का पाठ पढ़ने से हमारी जीवन में आ रही मुश्किलों का हल मिलता है। गीता में वर्णित हर एक श्लोक व्यक्ति की हर परेशानी को कम कर सकता है। तो चलिए आज हम आपको गीता से जुड़ी ऐसी कुछ बातों के बारे में बताएंगे जिसे अपनाकर व्यक्ति अपने दुख और परेशानी को कम कर सकता है।  
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भगवत गीता में लिखा गया है कि मनुष्य का शरीर मात्र एक कपड़े के टुकड़े के समान है। इसमें बताया गया है कि जिस तरह मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्याग कर नए वस्त्र धारण करता है, ठीक उसी प्रकार आत्मा भी पुराने शरीर को त्याग कर एक नए शरीर में प्रवेश लेती है। अर्थात मानव शरीर की आत्मा अस्थाई वस्त्र है यानि हमेशा मनुष्य की पहचान उसके शरीर से नहीं बल्कि उसके मन और उसकी आत्मा से होती है। तो व्यक्ति को कभी किसी के मरने पर शोक नहीं करना चाहिए। क्योंकि आत्म अजर-अमर होती है। 
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गुस्सा एक स्वभाविक प्रक्रिया है जो आज के समय में हर किसी में होती ही है। लेकिन यही गुस्सा एक न एक दिन व्यक्ति के अंदर एक भ्रम पैदा कर देता है जिसकी वजह से व्यक्ति को सही और गलत की पहचान नहीं रहती। इसलिए क्रोध में वे कई बार गलत फ़ैसले भी ले लेता है। गीता में कहा गया है कि व्यक्ति को क्रोध का मार्ग छोड़कर शांति का मार्ग अपना लेना चाहिए। 
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कहते हैं कि किसी भी चीज़ को हद से ज्यादा चाहना एक बहुत ही बूरी आदत होती है और यही आदत व्यक्ति को एक न एक दिन नुकसान पहुंचा सकती हैं। गीता में कहा है कि व्यक्ति को रिश्ते की मिठास या उनकी कड़वाहट या खुशी हो या गम हर परिस्थिति में अपने जीवन का संतुलन बना कर रखना चाहिए।
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कहते हैं कि अगर व्यक्ति को सफलता चाहिए तो उसे सबसे पहले अपने स्वार्थ का त्याग करना पड़ेगा। क्योंकि स्वार्थी व्यक्ति अपने स्वभाव की वजह से कभी आगे नहीं बड़ सकता है। इसलिए गीता में भी बताया गया है कि स्वार्थ का त्याग करके ही व्यक्ति अपने लक्ष्य को पा सकता है। 

गीता में ये बात बताई गई है कि व्यक्ति को कभी भी फल की इच्छा से कर्म नहीं करने चाहिए। बल्कि उसे सिर्फ कर्म करते रहना चाहिए। फल की इच्छा भगवान पर छोड़ देनी चाहिए।  
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