बठिंडा लोकसभा सीट: 27 साल से नहीं जीत पाई कांग्रेस, दिलचस्प होगा मुकाबला

punjabkesari.in Saturday, Feb 23, 2019 - 09:16 AM (IST)

बठिंडा(नरेश):  पंजाब में पिछले 27 साल में 3 बार कांग्रेस सत्ता में आई लेकिन इसके बावजूद वह अकाली दल के मजबूत गढ़ बठिंडा की लोकसभा की सीट अब तक नहीं जीत पाई है। कांग्रेस ने 1992 के लोकसभा चुनाव में यह सीट जीती थी लेकिन उसके बाद इस सीट पर लगातार अकाली दल का प्रभाव रहा है।

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1999 के चुनाव में सिर्फ एक बार सी.पी.आई. के भान सिंह भौरा इस सीट पर जीते जबकि कांग्रेस इस दौरान भी तीसरे नंबर की पार्टी रही। लिहाजा केंद्र में मोदी सरकार के खिलाफ बने माहौल और पंजाब में दोनों विपक्षी पार्टियों में पड़ी भारी फूट के बीच कांग्रेस के लिए 27 साल बाद एक बार फिर बठिंडा में जीत का मौका बन सकता है लेकिन इस सीट पर अकाली दल को कमजोर करके आंकना भारी भी पड़ सकता है। इस सीट का नतीजा इस बात पर निर्भर करेगा कि आम आदमी पार्टी को 2017 के चुनाव दौरान इस हलके में मिले करीब साढ़े 4 लाख वोटरों का व्यवहार कैसा रहता है। 2017 के विधानसभा चुनाव के दौरान आम आदमी पार्टी हलके की 9 में से 5 विधानसभा सीटों पर जीत गई थी लेकिन पिछले 2 साल में आम आदमी पार्टी में हुई टूट के चलते उसका वोट बिखरना तय है। यही वोट बठिंडा लोकसभा सीट का नतीजा तय करेगा। 

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बठिंडा में फिर देवर-भाभी आमने-सामने!
बठिंडा लोकसभा सीट को लेकर हालांकि किसी पार्टी ने उम्मीदवार के नाम की घोषणा नहीं की है लेकिन पिछले 10 दिन से हलके की मौजूदा सांसद हरसिमरत कौर बादल जिस तरीके से हलके में सक्रिय हैं उसे देखकर माना जा रहा है कि अकाली दल एक बार फिर उन्हें ही इस सीट पर मैदान में उतारेगा। उनके सामने कांग्रेस की तरफ से एक बार फिर मनप्रीत बादल को उतारे जाने की चर्चा है। मनप्रीत बादल पिछला चुनाव अपनी भाभी के हाथों 19395 मतों के अंतर से हार गए थे लेकिन इस बार राजनीतिक हालात हरसिमरत के लिए इतने मुफीद नहीं हैं। 
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प्रभाव नहीं छोड़ पाए ‘आप’ के विधायक
आम आदमी पार्टी ने 2017 के विधानसभा चुनाव के दौरान इस हलके की बठिंडा रूरल, तलवंडी साबो, मानसा, बुढलाडा और मौड़ मंडी सीटों पर जीत दर्ज की थी और पार्टी ने बङ्क्षठडा लोकसभा के तहत आती 9 विधानसभा सीटों में 447036 वोट हासिल किए थे लेकिन पिछले 2 साल में आम आदमी पार्टी के इन पांचों विधायकों में से कोई भी विधायक जनता में ऐसा प्रभाव नहीं छोड़ पाया है जिससे पार्टी मजबूत हो। उलटे पार्टी में हुई फूट और सुखपाल खैहरा की बठिंडा में सक्रियता से आम आदमी पार्टी का वोटर दुविधा में है और लोकसभा चुनाव के दौरान पार्टी को इसका खमियाजा भुगतना पड़ सकता है। आम आदमी पार्टी यदि इस सीट पर किसी मजबूत चेहरे को मैदान में उतारती है तो ही पार्टी यहां मजबूती से टक्कर दे पाएगी। दूसरा विकल्प यह हो सकता है कि कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के मध्य समझौते की स्थिति में यदि सीट ‘आप’ के हिस्से आई तो ही पार्टी यहां मजबूती से टक्कर दे पाएगी। 

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बठिंडा सीट का विधानसभा चुनाव के नतीजों के मुताबिक विश्लेषण

सीट   आप अकाली दल  कांग्रेस
लम्बी  21,254 66,375 43,605
भुच्चो मंडी 50,960 44,025 51,605
बठिंडा अर्बन 45,462 37,177  63,942
बठिंडा रूरल 51,572 40,794 28,939    
तलवंडी साबो  54,553 34,473  35,260
मानसा  70,586  44,232 50,117
सरदूलगढ़ 38,102 59,420 50,563
बुढलाडा 52,265 50,477   50,989
मौड़ मंडी  62,282  47,605  23,087
कुल 4,47,036  4,24,578  3,98,107

 

लड़ाई को दिलचस्प बना सकती है खैहरा की एंट्री
आम आदमी पार्टी से बगावत करके पंजाबी एकता पार्टी बनाने वाले सुखपाल खैहरा पिछले कई दिनों से इस हलके में खासे सक्रिय हैं और माना जा रहा है कि वह बठिंडा लोकसभा हलके से ही चुनाव लड़ेंगे। राजनीतिक विश£ेषकों का मानना है कि खैहरा की नजर आम आदमी पार्टी को 2017 में हासिल हुए करीब साढ़े 4 लाख वोट पर है और वह इसी वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए बङ्क्षठडा सीट का रुख कर सकते हैं। हालांकि उनकी उम्मीदवारी पर सस्पैंस बना हुआ है लेकिन यदि वह मैदान में उतरे तो देवर-भाभी की लड़ाई के बीच खैहरा की एंट्री इस सीट की लड़ाई को और ज्यादा दिलचस्प बना देगी। 

 

कई अहम मुद्दों पर की बहस  
हरसिमरत कौर बादल केंद्रीय मंत्री हैं। लिहाजा संसद में उनकी हाजिरी का कोई रिकार्ड उपलब्ध नहीं है। नियमों के मुताबिक मंत्री पद मिल जाने पर सांसद न तो संसद का हाजिरी रजिस्टर साइन करता है और न ही वह सवाल पूछता है क्योंकि उसे विपक्ष के साथ-साथ अपनी पार्टी के सांसदों के सवालों का जवाब देना होता है। लेकिन बतौर सांसद हरसिमरत ने किसानों के साथ जुड़े मुद्दों के अलावा सिखों की पगड़ी के मसले, आनंद मैरिज एक्ट और फूड सिक्योरिटी बिल जैसे मुद्दों पर भी संसद में बहस पर हिस्सा लिया है। 

मजबूत पक्ष-हरसिमरत कौर बादल पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल की बहू हैं और परिवार की राजनीतिक साख का हरसिमरत को फायदा मिलता है। बतौर केंद्रीय मंत्री हरसिमरत द्वारा इलाके में किए गए कार्यों से उनकी स्थिति मजबूत होती है। पिछले 6 चुनाव में अकाली दल इस सीट पर 5 बार विजयी रहा है। कांग्रेस पिछले 27 साल से यह सीट नहीं जीत पाई है।

कमजोर पक्ष-2017 के विधानसभा चुनाव के दौरान अकाली दल को इस सीट पर तगड़ा झटका लगा है और पार्टी इस सीट पर कमजोर हुई है। इसके अलावा पंथक वोटों की नाराजगी भी हरसिमरत पर भारी पड़ सकती है। 

विधानसभा चुनाव में पिछड़ी कांग्रेस 
हालांकि 2017 के विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस ने पंजाब की 10 लोकसभा सीटों पर बढ़त बनाई लेकिन बठिंडा लोकसभा सीट पर वह बुरी तरह पिछड़ गई। कांग्रेस बठिंडा की 9 विधानसभा सीटों में से भुच्चो मंडी और बठिंडा अर्बन सीटों पर ही जीत हासिल कर सकी और वोटों की संख्या के लिहाज से भी कांग्रेस बठिंडा लोकसभा की विधानसभा सीटों पर तीसरे नंबर पर रही। हालांकि ये नतीजे विधानसभा चुनाव के हैं और लोकसभा चुनाव में स्थिति इससे भिन्न हो सकती है।

हरसिमरत की उपलब्धियां
-बठिंडा में एम्स अस्पताल
-मानसा में सरकारी सहायता प्राप्त गल्र्ज कालेज
-पंजाब में तीन मैगा फूड पार्क

हरसिमरत का फंड
-कुल जारी फंड-20 करोड़
-ब्याज के साथ फंड-21.13 करोड़
-खर्च फंड-18.56 करोड़
-फंड शेष-2.57 करोड़
स्रोत-एम.पी. लैड फंड वैबसाइट

बठिंडा लोकसभा सीट का इतिहास
 

साल        विजेता  पार्टी
1951  हुकुम सिंह कांग्रेस
1957  अजीत सिंह कांग्रेस
1962  धन्ना सिंह अकाली दल
1967 के. सिंह अकाली दल
1971 भान सिंह सी.पी.आई.
1977  धन्ना सिंह अकाली दल
1980   हाकम सिंह कांग्रेस
1985   तेजा सिंह अकाली दल
1989   सुच्चा सिंह शिअद (मान)
1992  केवल सिंह कांग्रेस
1996 हरिन्द्र सिंह अकाली दल
1998  चैन सिंह अकाली दल
1999  भान सिंह  सी.पी.आई.
2004 परमजीत कौर अकाली दल
2009  हरसिमरत कौर बादल अकाली दल

 


 


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Naresh Kumar

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