जब दुविधा में पड़ गए भोलेनाथ तो पुत्र गणेश ने रचा ये खेल

punjabkesari.in Wednesday, Feb 13, 2019 - 11:51 AM (IST)

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हमारे हिंदू धर्म में प्रथम पूज्य देव भगवान गणेश को ही माना जाता है। किसी भी धार्मिक कार्य को करने से पहले उनकी पूजा अनिवार्य मानी गई है। शास्त्रों के अनुसार बुधवार का दिन भगवान गणेश को समर्पित है। ऐसा कहा जाता है कि जो भी व्यक्ति इनकी पूजा सच्चे मन से करता है भगवान उसकी सारी विपदाएं हर लेते हैं। शास्त्रों में भगवान गणेश को बुद्धि के देवता कहा जाता है। आज हम आपको भगवान गणेश से जुड़ी एक ऐसी कथा के बारे में बताने जा रहे हैं जिसमें उन्होंने अपनी बुद्धिमता से एक ही बार में सारे देवताओं को यज्ञ के लिए बुलावा भेज दिया था। तो चलिए जानते हैं उस कथा के बारे में-
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एक पौराणिक कथा के अनुसार भगवान शिव के मन में एक बड़े यज्ञ के अनुष्ठान का विचार आया। इस बारे में विचार आते ही उन्होंने सारे गणों को यज्ञ अनुष्ठान की अलग-अलग जिम्मेदारियां सौंप दी। लेकिन सबसे बड़ा काम था यज्ञ में सारे देवताओं को आमंत्रित करना। आमंत्रण भेजने के लिए पात्र व्यक्ति का चुनाव किया जाना था, जो समय रहते सभी लोकों में जाकर वहां के देवताओं को निमंत्रण दे आए। ऐसे में किसी ऐसे व्यक्ति का चयन किया जाना था, जो तेजी से जाकर ये काम कर दे, लेकिन भगवान शिव को ये भी डर था कि कहीं आमंत्रण देने की जल्दी में देवताओं का अपमान न हो जाए। इसलिए उन्होंने इस काम के लिए गणेश का चुना।
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भगवान गणेश बुद्धि और विवेक के देवता हैं। वे जल्दबाजी में भी कोई गलती नहीं करेंगे, ये सोचकर शिव ने गणपति को बुलाया और उन्हें समस्त देवी-देवताओं को आमंत्रित करने का काम सौंपा। गणेश ने इस बात को सुनकर सोच में पड़ गए क्योंकि उनकी समस्या यह थी कि उनका वाहन चूहा था, जो बहुत धीमी गति से चल सकता था। काफी समय तक सोचने के बाद उन्होंने सारे आमंत्रण पत्र उठाए और पूजन सामग्री लेकर अपने ध्यान में भगवान शिव के सामने बैठ गए।
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गणेश ने विचार किया कि ये बात तो सत्य है कि सारे देवताओं का वास भगवान शिव में होता है। अगर उनको प्रसन्न किया जाए तो सारे देवता प्रसन्न हो जाएंगे। ये सोचकर गणेश ने शिव का पूजन किया और सारे देवताओं का आह्वान करके सभी आमंत्रण पत्र शिव को ही समर्पित कर दिए। सारे आमंत्रण देवताओं तक अपने आप ही पहुंच गए और सभी यज्ञ में समय पर ही पहुंच भी गए। इस तरह गणेश ने अपनी बुद्धिमानी से इस काम को आसान कर दिया और इसमें किसी का अपमान भी नहीं हुआ। 
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