आखिर क्यों भगवान राम ने दिया अपने भाई लक्ष्मण को श्राप ?

punjabkesari.in Thursday, Jan 31, 2019 - 12:16 PM (IST)

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हमारे हिंदू धर्म में ऐसे बहुत से धार्मिक ग्रंथ हैं, जिनसे हमें बहुत सारी शिक्षाएं ग्रहण करने को मिलती हैं। हमें हर एक ग्रंथ से ये पता चलता है कि जीवन में आने वाली हर परिस्थिति का सामना कैसे, कब और किस तरह से करें। आज हम बात करेंगे उन्हीं ग्रंथों में से एक रामायण के बारे में।  वैसे तो रामायण से जुड़े बहुत से ऐसे प्रसंग हैं जो बड़े प्रसिद्ध हैं। आज हम आपको इसी से जुड़ा एक खास प्रसंग बताएंगे। जिसमें बताया है कि कैसे श्री राम को अपने ही भाई लक्ष्मण को मृत्युदंड की सजा देनी पड़ी थी। तो चलिए जानतें हैं इस प्रसंग के बारे में।
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ये प्रसंग उस समय से जुड़ा हुआ है जब भगवान राम लंका पर विजय हासिल करके अयोध्या लौटे थे। बात उस समय की है जब एक बार यम देवता राम से किसी महत्वपूर्ण मुद्दे पर बात करने के लिए उनके पास आए थे। तभी यम ने राम से ये शर्त रखी कि जब हम दोनों की बात चलेगी तब तक हमारे बीच कोई तीसरा नहीं आएगा और यदि कोई हमारे बीच आया या फिर उसने हमारी बातें सुनी तो आप उन्हें मृत्युदंड दे देंगे।
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ये बात सुनकर राम जी ने कुछ देर सोच में पड़ गए लेकिन बाद में उनकी शर्त मान ली और अपने छोटे भाई लक्ष्मण को आदेश दिया कि जब तक उनके बीच बातचीत चल रही है तब तक आप हमारे द्वारपाल बन जाइए। लेकिन अगर इस बीच कोई अंदर आया या हमारी बातें सुनेगा तो मुझे उसे मृत्युदंड देना पड़ेगा। 
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लक्ष्मण जी ने तो वैसे भी कभी अपने भाई की आज्ञा का निरादर नहीं किया तो इस बात को भी उन्होंने बड़े हर्ष से स्वीकार किया और उनके द्वारपाल बन गए। कुछ समय बीत जाने के बाद वहां पर महर्षि दुर्वासा पहुंचे। लक्ष्मण जी ने उन्हें प्रणाम किया और कहा कि आप अभी अंदर नहीं जा सकते। दुर्वासा ऋषि को ये बात सुनकर बहुत क्रोध आया और उन्होंने अयोध्या को भस्म करने की धमकी दे दी।
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तभी लक्ष्मण ने सोचा अगर ये अंदर चले गए तो ये मारे जाएंगे और अगर मैंने इन्हें अंदर नहीं जाने दिया तो ये पूरी अयोध्या को भस्म कर देंगे। तो क्यों न मैं ही अंदर चला जाऊं ताकि कुल का नाश होने से बच जाए और दुर्वासा ऋषि की बात भी पूरी हो जाएगी। इसी तरह न चाहते हुए भी मजबूरन लक्ष्मण जी को राम और यम की बातचीत के दौरान उनके बीच जाना पड़ा। जब वे अंदर उनके सामने पहुंचे तो लक्ष्मण को देखकर राम और यम बहुत ही क्रोधित हुए। लक्ष्मण ने उन्हें पूरा किस्सा सुनाया। हालांकि राम यम को ये वचन दे चुके थे कि बातचीत के बीच में आने वाले व्यक्ति को मृत्युदंड दिया जाएगा। लेकिन इस मुश्किल घड़ी में राम ने अपने गुरुदेव का स्मरण किया। कहते हैं कि गुरुदेव से सुझाव मिला कि राम लक्ष्मण को त्याग दें। न चाहते हुए भी लक्ष्मण ने राम जी के आदेश का पालन करते हुए जलसमाधि ले ली।
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