यहां जानें, स्वर्ग की प्राप्ति करवाने वाले इस प्रभावशाली व्रत की कथा

punjabkesari.in Wednesday, Jan 30, 2019 - 03:07 PM (IST)

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हिंदू धर्म के अनुसार हर माह में आने वाली एकादशी महत्वपूर्ण मानी गई है। शास्त्रों में बताया गया है कि व्यक्ति को हर मास में पड़ने वाली दोनों पक्षों की एकादशी का पालन करना चाहिए। एकादशी चाहे कृष्ण पक्ष की हो या शुक्ल पक्ष की उसमें कभी भी अंतर नहीं करना चाहिए। तो चलिए आज हम बात करेंगे माघ मास के कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी की जिसे षटतिला एकादशी का नाम से जाना जाता है। इस बार इस एकादशी का व्रत 31 जवनवरी 2019 को रखा जाएगा। पद्म पुराण में षटतिला एकादशी का बहुत महात्मय बताया गया है। इस दिन उपवास करके दान, तर्पण और विधि-विधान से पूजा करने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है। कहते हैं कि कोई भी व्रत बिना उसकी कथा के अधूरा माना जाता है, तो चलिए आज आपको माघ मास की षटतिला एकादशी की व्रत कथा के बारे में बताते हैं।  
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एक बार नारद जी भ्रमण करने हुए भगवान श्रीहरि के पास गए और षटतिला एकादशी का महात्म्य पूछने लगे। उन्होंने कहा कि ’प्रभु! षटतिला एकादशी के उपवास का क्या पुण्य है? उसकी क्या कथा है, कृपा कर मुझसे कहिए।’

नारद की प्रार्थना श्रीहरि ने कहा, ‘हे नारद! मैं तुम्हें इसकी कथा के बारे में बताता हूं। ध्यानपूर्वक इसकी कथा को सुनना।’
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बहुत समय पहले मृत्युलोक में एक ब्राह्मणी रहती थी। वह सदा एकादशी का व्रत बिना कुछ खाए पीए करती थी। एक बार उसने लगातार एक महीने तक उपवास किया जिसकी वजह से उसका शरीर बहुत कमजोर हो गया। इतने व्रत तप के बाद उसने कभी किसी भी देवता या ब्राह्मणों को अन्नादि का दान नहीं किया। फिर मैंने सोचा कि इस ब्राह्मणी ने उपवास आदि से अपना शरीर तो पवित्र कर लिया है और इसके साथ ही उसे वैकुंठ लोक भी प्राप्त हो जाएगा। लेकिन इसने कभी अन्नदान नहीं किया है, अन्न के बिना जीव की तृप्ति होना कठिन है। उसके भले के लिए मैं मृत्युलोक गया और उस ब्राह्मणी से अन्न की भिक्षा मांगी। इस पर उस ब्राह्मणी ने मुझे एक मिट्टी का पिंड दे दिया। मैं उस पिंड को लेकर स्वर्ग लौट आया। कुछ समय उस ब्राह्मणी ने शरीर त्याग दिया और उसे स्वर्ग की प्राप्ति हुई। मिट्टी के पिंड के प्रभाव से उसे एक महल मिला लेकिन वे महल अंदर से खाली था। न खाने की व्यवस्था थी और न पीने की। ये सब देखकर वह बहुत घबराई और मेरे पास आकर बोली, ‘हे प्रभु! मैंने अनेक व्रत आदि से आपका पूजन किया है, किंतु फिर भी मेरा घर वस्तुओं से खाली है, इसका क्या कारण है?’
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तब मैंने कहा- ‘तुम अपने घर जाओ। वहां तुम्हारे द्वार पर देव-स्त्रियां तुम्हें देखने आएंगी लेकिन तब तुम उनसे षटतिला एकादशी व्रत का माहात्म्य और उसका विधान पूछना जब तक वे न बताएं तब तक द्वार नहीं खोलना।’

प्रभु के ऐसे वचन सुनकर उस ब्राह्मणी ने बिल्कुल वैसा ही किया। जब देव-स्त्रियां आईं और द्वार खोलने के लिए कहने लगीं, तब उस ब्राह्मणी ने कहा, ‘यदि आप मुझे देखने आई हैं तो पहले मुझे षटतिला एकादशी का महात्म्य बताएं।’ 
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तब उनमें से एक देव स्त्री ने कहा, ‘यदि तुम्हारी यही इच्छा है तो ध्यानपूर्वक सुनो, मैं तुमसे एकादशी व्रत और उसका महात्म्य विधान सहित कहती हूं।’

जव उस देव-स्त्री ने षटतिला एकादशी का महात्म्य सुना दिया, तब उस ब्राह्मणी ने द्वार खोल दिया। देव-स्त्रियों ने ब्राह्मणी को सब स्त्रियों से अलग पाया। उस ब्राह्मणी ने भी देव-स्त्रियों के कहे अनुसार षटतिला एकादशी का उपवास किया और उसके प्रभाव से उसका घर धन्य-धान्य से भरपूर हो गया। तो इसलिए जो कोई भी षटतिला एकादशी का व्रत पूरी श्रद्धा भावना के साथ करता है उस व्यक्ति के सारे पाप दूर हो जाते हैं और अंत में स्वर्ग की प्राप्ति होती है।
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