आओ चलें प्रयाग, नहा लें कुंभ

punjabkesari.in Tuesday, Jan 22, 2019 - 06:00 PM (IST)

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कुंभ मेला 2019 का आयोजन प्रयागराज में हो रहा है। जो 15 जनवरी से शुरु हो गया है और 4 मार्च तक चलेगा। प्रयागराज में ‘कुंभ’ कानों में पड़ते ही गंगा, यमुना एवं सरस्वती का पावन त्रिवेणी संगम मन में एक अलग सी खुशी पैदा करता है। पवित्र संगम स्थल पर जाकर तन-मन भक्ति-भाव से विभोर हो उठता है। श्री अखाड़ों के शाही स्नान से लेकर सन्त पंडालों में धार्मिक मंत्रोच्चार, ऋषियों द्वारा दिया जाने वाला ज्ञान, मंत्र-मुग्ध करने वाला संगीत, नादों का मदमस्त करता नाद, संगम में डुबकी से हिलोरे खाता हृदय एवं अनेक देवस्थानों के दिव्य दर्शन प्रयागराज कुम्भ की महिमा को बढ़ा देते हैं।
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प्रयागराज का कुंभ मेला अन्य स्थानों के कुंभ की तुलना में बहुत से कारणों से काफी अलग है। सबसे पहले कल्पवास की परंपरा केवल प्रयाग में है। दूसरे कतिपय शास्त्रों में त्रिवेणी संगम को पृथ्वी का केन्द्र माना गया है, तीसरे भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि-सृजन के लिए यज्ञ किया था, चौथे प्रयागराज को तीर्थों का तीर्थ कहा गया है, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण कारण है यहां किए गए धार्मिक क्रिया एवं तपस्या का फल अन्य तीर्थ स्थलों से अधिक माना जाना। मत्स्य पुराण में महर्षि मार्कंडेय युधिष्ठिर से कहते हैं कि यह स्थान सभी देवताओं द्वारा खासतौर पर रक्षित है, यहां एक मास तक निवास करने, पूरा परहेज रखने, अखंड ब्रह्मचर्य धारण करने से और अपने देवताओं व पितरों को तर्पण करने से समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
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प्रयागराज का कुंभ मेला लगभग 50 दिनों तक संगम क्षेत्र के आस-पास हजारों हैक्टेयर भूमि पर चलने के चलते विश्व के बड़े अस्थायी शहर का रूप ले लेता है। सभी काम, सारी व्यवस्थाएं अपने आप ही चलने लगती हैं। आदिकाल से चली आ रही इस आयोजन की एकता अपने आप में अनोखी हैं। 
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महत्वपूर्ण स्नान तिथियां: कुंभ की शुरूआत मकर संक्रांति को पहले स्नान से होती है। इसे शाही स्नान और राजयोगी स्नान भी कहा जाता है। इस दिन संगम, प्रयागराज पर विभिन्न अखाड़ों के संतों की पहले शोभा यात्रा निकलती हैं और फिर स्नान होता है। दूसरा स्नान पौष पूर्णिमा के दिन होता है। माना जाता है कि जो व्यक्ति इस दिन विधि से सुबह स्नान करता है उसे मोक्ष प्राप्त होता है वहीं, इस दिन से सभी शुभ कार्यों की शुरूआत कर दी जाती है। इस दिन संगम पर सुबह स्नान के बाद कुंभ की अनौपचारिक शुरूआत हो जाती है। इस दिन से कल्पवास भी आरंभ हो जाता है। इसके बाद आने वाली महत्वपूर्ण स्नान तिथियां कुछ इस तरह रहेंगी-
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मौनी अमावस्या : 4 फरवरी- तीसरा स्नान मौनी अमावस्या के दिन किया जाता है। मान्यता है कि इसी दिन कुंभ के पहले तीर्थंकर ऋषभ देव ने अपनी लंबी तपस्या का मौन व्रत तोड़ा था और संगम के पवित्र जल में स्नान किया था।  

बसंत पंचमी : 10 फरवरी- बसंत पंचमी के दिन से ही बसंत ऋतु शुरू हो जाती है।  हिंदू मान्यताओं के अनुसार इस दिन देवी सरस्वती का जन्म हुआ था। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान का विशेष महत्व है।  

माघी पूर्णिमा 19 फरवरी : इस दिन सभी हिंदू देवता स्वर्ग से संगम पधारे थे। वहीं, माघ महीने की पूर्णिमा (माघी पूर्णिमा) को कल्पवास की पूर्णता का पर्व भी कहा जाता है क्योंकि इस दिन माघी पूर्णिमा समाप्त हो जाती है। इस दिन संगम के तट पर कठिन कल्पवास व्रतधारी स्नान कर उत्साह मनाते हैं। इस दिन गुरु बृहस्पति की पूजा की जाती है।
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महाशिवरात्रि  4 मार्च : कुंभ मेले का आखिरी स्नान महा शिवरात्रि के दिन होता है। इस दिन सभी कल्पवासी अंतिम स्नान कर अपने घरों को लौट जाते हैं। भगवान शिव और माता पार्वती के इस पावन पर्व पर कुंभ में आए सभी भक्त संगम में डुबकी जरूर लगाते हैं। मान्यता है कि इस पर्व का देवलोक में भी इंतजार रहता है।
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Niyati Bhandari

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