खत्म होने को है जुमलों का दौर, राहुल ने दिखाई नई राह

punjabkesari.in Thursday, Jan 17, 2019 - 05:46 AM (IST)

चार साल पहले देश को सब्जबाग दिखाकर सत्ता हथियाने वाली भाजपा का पतनकाल शुरू हो गया है। गुजरात के विधानसभा चुनावों में राहुल गांधी की भूमिका ने इसकी शुरूआत की थी। चुनाव प्रचार के दौरान फिर से गुजरात के बेटे के नाम पर मोदी ने  मतदाताओं का इमोशनल ब्लैकमेल किया और भाजपा बड़ी मुश्किल से जैसे-तैसे यह चुनाव जीत गई लेकिन कांग्रेस की तरफ जनता के बढ़ते झुकाव के संकेत इस चुनाव ने खुलकर दे दिए। 

इसके बाद कर्नाटक में ये संकेत और स्पष्ट हो गए जब भाजपा सत्ता का दुरुपयोग करने के कारण सत्तासीन नहीं हो पाई। कर्नाटक में पूर्व प्रधानमंत्री देवेगौड़ा और राहुल गांधी की दूरगामी सोच ने साम्प्रदायिक ताकतों को सत्ता से दूर करके न सिर्फ सरकार  बनाई बल्कि भविष्य में गैर-भाजपा दलों केमहागठबंधन की नींव भी रख डाली। कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण समारोह में इसकी झलक साफ दिखी थी जहां तमाम क्षेत्रीय दलों के बड़े नेताओं ने मंच सांझा किया था।  इससे बौखलाई भाजपा ने विरोधी दलों को सी.बी.आई. जैसी संस्थाओं के जरिए निशाना बनाना शुरू कर दिया। इस वजह से 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव में कोई  बड़ा समझौता नहीं हो सका लेकिन भाजपा की चालबाजियों को जनता ने भांप लिया और मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को वोट देकर सत्तासीन किया।

उत्साहवर्धक नतीजे
ये नतीजे न सिर्फ कांग्रेस के लिए बल्कि भाजपा विरोधी गैर-कांग्रेस दलों के लिए भी उत्साहवद्र्धक रहे। हिंदी बेल्ट के इन मुख्य राज्यों में लोकसभा की 65 सीटें आती हैं। इनमें से भाजपा के पास छत्तीसगढ़ में 10, राजस्थान में सभी 25 और मध्यप्रदेश में 29 में से 26 सीटें थीं। जाहिर है अब समीकरण उलटे होंगे। प्रथम दृष्टया यहां कांग्रेस को कम से कम 40 सीटों का सीधा लाभ नकार आता है। इसमें कर्नाटक तथा पंजाब (जहां कांग्रेसनीत सरकारें हैं) को जोड़ लेंगे तो भाजपा को 41 और सीटों पर  सीधा नुक्सान साफ झलकता है  क्योंकि यहां भी ज्यादातर सीटें कांग्रेस या सहयोगियों के खाते में ही जानी हैं। 

शेष राज्यों में महाराष्ट्र की 48 और बिहार की 40 सीटों पर कांग्रेस  मजबूत गठबंधन में  है। दोनों ही जगह भाजपा के अपने ही उससे नाराज हैं और ऊपर से सत्ता विरोधी लहर भी है। उधर यू.पी. में भले ही अभी कांग्रेस की गठबंधन भूमिका तय नहीं है लेकिन इतना तय है कि भाजपा जिसने पिछले लोकसभा में राज्य की 80 में से 71 सीटें जीती थीं, वह आधे से भी कम पर सिमट जाएगी। यानि यहां भी भाजपा को भारी नुक्सान है। मोटे तौर पर इन 8 राज्यों की 274 सीटों पर कांग्रेस और सहयोगी दल भाजपा से कहीं आगे हैं। 

अन्य राज्यों पर फोकस
ऐसे में अब सारा फोकस आंध्रप्रदेश, ओडिशा और  पश्चिम बंगाल पर जा टिकता है। आंध्रप्रदेश  में 25, ओडिशा में 21, तमिलनाडु में 39 और पश्चिम बंगाल में 42 सीटें हैं।  इन 127 सीटों पर भी समीकरण तय हैं। तमिलनाडु में कांग्रेस और डी.एम.के. का गठबंधन धमाल मचाने को है। पश्चिम बंगाल में टी.एम.सी. का रुख भाजपा के प्रति साफ है, ममता बनर्जी किसी भी हाल में भाजपा के साथ नहीं जाएंगी। आंध्र और ओडिशा में भाजपा का ज्यादा स्कोप नहीं है और केरल की 20 सीटों की स्थिति भी कमोबेश यही है। इस तरह से कुल  हो गईं 421  सीटें। शेष बचे राज्यों में असम (14), तेलंगाना (17) और झारखंड (14) प्रमुख हैं। इनमें भाजपा असम में सरकार होने के चलते थोड़े लाभ की स्थिति में है लेकिन यह लाभ उसे सत्ता तक पहुंचा पाएगा, यह संभव नहीं दिखता।

सत्ताविरोधी लहर
इसके बाद हिमाचल, जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड और हरियाणा  की 25 सीटें हैं। जम्मू-कश्मीर की हालत किसी से छिपी नहीं है तथा हरियाणा, उत्तराखंड और हिमाचल में भाजपा की सरकारें जबरदस्त सत्ता विरोधी लहर का सामना कर रही हैं। इन राज्यों में भी कांग्रेस फ्रंट रनर है। कुल मिलाकर जो तस्वीर वर्तमान में उभर रही है उसमें कांग्रेस  सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरती नजर आ रही है और उसके सहयोगी दलों के पास भी इतनी सीटें दिख रही हैं जो भाजपा को सत्ताच्युत करने में सक्षम हैं। यह एक बड़ा संकेत है। राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस का  फिर से उठ खड़ा होना इस बात का प्रतीक है कि देश की जनता अब जुमलेबाजी  की हकीकत समझ चुकी है और झांसे में नहीं आने वाली। यानि भाजपा की उलटी गिनती शुरू हो चुकी है।-राजेन्द्र राणा(विधायक हि.प्र.)


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