सेवानिवृत्ति के 2 वर्ष बाद तक नहीं मिलना चाहिए अधिकारियों को कोई अन्य पद

punjabkesari.in Thursday, Jan 17, 2019 - 04:08 AM (IST)

केन्द्रीय जांच ब्यूरो (सी.बी.आई.) के निदेशक आलोक वर्मा के संबंध में विवाद का अप्रत्याशित परिणाम जस्टिस ए.के. सीकरी के अपनी सेवानिवृत्ति के बाद की नौकरी से इस्तीफे के रूप में निकला। जज, जिन्हें मार्च में सेवानिवृत्त होना था, ने प्रस्ताव को ठुकरा कर नैतिकता के सर्वोच्च मानदंडों को बनाए रखा है ताकि इस सिद्धांत पर चला जाए कि न्याय केवल किया ही नहीं जाना चाहिए बल्कि किया जाते दिखना भी चाहिए। 

जहां जस्टिस सीकरी की उच्च निष्ठा पर किसी को संदेह नहीं है, वहीं इस पूरे घटनाक्रम ने उच्च तथा स्वतंत्र सार्वजनिक पदों पर बैठे लोगों के लिए सेवानिवृत्ति के बाद नौकरियों के प्रश्न की ओर ध्यान केन्द्रित किया है। इसने इस मांग को फिर पुनर्जीवित कर दिया है कि इस मामले में एक ‘कूलिंग ऑफ पीरियड’ अथवा सेवानिवृत्ति के बाद कम से कम दो वर्षों के लिए सरकार द्वारा नियुक्ति पर प्रतिबंध होना चाहिए। 

जस्टिस सीकरी पर विवाद अनुचित
उनके बारे में निष्पक्ष तौर पर कहें तो जस्टिस सीकरी काफी अनुचित तरीके से विवाद के केन्द्र में आए। उन्हें गत वर्ष दिसम्बर में लंदन स्थित कामनवैल्थ सैक्रेटेरिएट आरबिट्रल ट्रिब्यूनल (सी.एस.ए.टी.) के सदस्य के तौर पर एक पार्ट टाइम पद का प्रस्ताव किया गया था, वह भी भारत के तत्कालीन चीफ जस्टिस की सहमति के बाद। 

पद के तहत ट्रिब्यूनल के लंदन स्थित मुख्यालय में पूर्णकालिक तौर पर रहना आवश्यक नहीं था लेकिन समय-समय पर मध्यस्थता के लिए जाना पडऩा था। यह किसी भी तरह से कोई लाभप्रद पद नहीं था और न ही एक ऐसा पद जिससे भारत सरकार को किसी भी तरह से कोई लाभ हो सकता। यह भी एक तथ्य है कि जस्टिस सीकरी के सी.बी.आई. निदेशक के मामले में शामिल होने के कोई संकेत नहीं थे, जो सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद सामने आया। संयोग से उन्हें पैनल में चीफ जस्टिस के प्रतिनिधि के तौर पर नामांकित किया गया था क्योंकि वह उनके बाद सर्वाधिक वरिष्ठ जज थे। 

सी.बी.आई. निदेशक आलोक वर्मा को हटाने के पैनल के निर्णय, जिसमें प्रधानमंत्री तथा विपक्ष के नेता भी शामिल थे, की विपक्ष ने आलोचना की। यह तब हुआ जब एक समाचार रिपोर्ट में इस तथ्य की ओर संकेत दिया गया कि जस्टिस सीकरी को एक राष्ट्रमंडल पद के लिए सरकार द्वारा नामांकित किया गया है। रिपोर्ट में हालांकि जस्टिस सीकरी को दिए गए प्रस्ताव तथा उनके प्रधानमंत्री के रुख का पक्ष लेने के निर्णय के बीच किसी सीधे संबंध का आरोप नहीं लगाया गया लेकिन आक्षेप स्पष्ट था कि जस्टिस सीकरी ने यह रुख सरकार की ‘कृपा दृष्टि’ के बदले में अपनाया था। दोनों को जोडऩा उचित नहीं था। यद्यपि रिपोर्टर का कहना था कि वह केवल मामले के तथ्यों को सामने लाना चाहता था, जबकि कहानी लिखने का उद्देश्य स्वाभाविक था। 

कोई अन्य विकल्प नहीं था
जस्टिस सीकरी के पास विवाद में आए प्रस्तावित पद से इस्तीफा देने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था। जो बड़ा प्रश्र पैदा हुआ वह यह कि क्या सभी वरिष्ठ पदों में एक आवश्यक नियम होना चाहिए कि अधिकारी सेवानिवृत्ति के बाद कम से कम दो वर्षों तक कोई सार्वजनिक अथवा निजी पद स्वीकार नहीं करेंगे। ऐसे सभी पदों में पहले ही आकर्षक पैंशनें तथा अन्य लाभ उपलब्ध करवाए गए हैं। ऐसे अवसरों तथा सम्भावनाओं का अभाव उन्हें सेवानिवृत्ति के बाद पद प्राप्त करने के लिए तत्कालीन सरकार को खुश करने के प्रयासों से दूर रखेगा। 

कौशल का इस्तेमाल
एक विचार यह भी है कि प्रतिबंध एक ऐसी उम्र में कौशल के इस्तेमाल से वंचित करेगा जब संबंधित व्यक्ति का मानसिक तथा शारीरिक स्वास्थ्य अच्छा है और वह समाज को लाभ देने के सक्षम है। देश में अधिकतर नौकरियों में सेवानिवृत्ति की आयु कई अन्य देशों में प्रावधानों के मुकाबले कहीं कम है। उदाहरण के लिए अमरीका में जजों को तब तक पीठ में काम करने की इजाजत दी जाती है और प्रोत्साहित किया जाता है जब तक वे समझते हैं कि वे ऐसा कर सकते हैं। कई अन्य पश्चिमी देशों में यह संबंधित व्यक्ति के निर्णय पर छोड़ दिया जाता है कि वह तब तक काम करे जब तक वह खुद को मानसिक तथा शारीरिक रूप से स्वस्थ समझे।

भारत में ऐसा करना सम्भवत: कठिन होगा, जहां बड़ी जनसंख्या बेरोजगार है लेकिन यही समय है कि कुछ अत्यंत कौशलपूर्ण नौकरियों में सेवानिवृत्ति की उम्र बढ़ाई जाए। हालांकि चुनिंदा व्यक्तियों को पदों का प्रस्ताव करने के निर्णयों पर रोक लगानी चाहिए। इसका एक सम्भावित तरीका प्रख्यात तथा निष्ठावान व्यक्तियों की एक स्वतंत्र समिति का गठन हो सकता है, जो चुनिंदा नियुक्तियों पर चर्चा कर निर्णय ले सके। ऐसी समिति तत्कालीन सरकार के प्रभाव से मुक्त होनी चाहिए। ऐसी समिति के गठन के लिए एक ऐसी प्रक्रिया बनाई जानी चाहिए जिससे सरकार का इस पर किसी भी तरह का राजनीतिक दबाव न हो। यह एक आसान कार्य नहीं होगा लेकिन कौशल का इस्तेमाल सुनिश्चित करने तथा ऐसे निर्णय लेने से सरकार को दूर रखने के लिए यही एकमात्र रास्ता दिखाई देता है।-विपिन पब्बी


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