भाजपा के खिलाफ गठबंधनों का क्या ‘प्रभाव’ होगा

punjabkesari.in Monday, Jan 14, 2019 - 03:05 AM (IST)

देश भर में भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ बनाए जा रहे गठबंधनों का क्या प्रभाव होगा? इसका स्वाभाविक निष्कर्ष यह होगा कि भाजपा को 2019 में कम सीटें मिलेंगी। भारत में चुनावी गठजोड़ों का इतिहास यह बताता है कि जब एक प्रभुत्वशाली पार्टी को संयुक्त विपक्ष का सामना करना पड़ता है तो वह सीटें गंवा देती है।

ऐसा ही कांग्रेस पार्टी के साथ हुआ था जब स्वतंत्रता के बाद 5 दशकों तक यह एक प्रभुत्वशाली ताकत रही थी। जब कभी भी विपक्ष एक साथ हुआ है, जैसा कि 1977 तथा 1989 में, वह बड़ी पार्टी को पराजित करने में सक्षम रहा। सिद्धांत यह है कि चूंकि भारत में अधिकतर पार्टियों  जाति आधारित हैं, गठजोड़ काम करते हैं और मत हिस्सेदारी बढ़ाने के समक्ष होते हैं। जब सत्ताधारी पार्टी के खिलाफ बड़े गठबंधन बनते हैं तो वह संकट में पड़ जाती है। 

मई में मामला क्या होगा
हो सकता है इस वर्ष मई में ऐसा हो या न हो और यह भी हो सकता है कि भाजपा किसी गठबंधन के माध्यम से सत्ता में फिर से वापसी कर ले। परंतु इसमें बहुत कम संदेह है कि इसे 2014 के मुकाबले कहीं अधिक प्रतिरोध का सामना करना पड़ेगा। ऐसी आशा की जा रही है कि महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश तथा उत्तर प्रदेश में भाजपा कम से कम 100 सीटें गंवा सकती है। इस नुक्सान की देश के उन हिस्सों में भरपाई नहीं हो पाएगी जहां पार्टी लाभ में होगी, उदाहरण के लिए केरल तथा पश्चिम बंगाल। हमें शीघ्र ही पता चल जाएगा कि क्या हो रहा है जब अगले महीने से जनमत सर्वेक्षण आने शुरू हो जाएंगे। गठबंधनों का एक प्रभाव यह भी है कि भाजपा के भीतर मोदी-शाह की जोड़ी कमजोर पड़ जाएगी और हम उस पर नजर डालते हैं। मेरा कहने का मतलब यह है कि पार्टी के भीतर क्या होगा।

भाजपा विलक्षण है
कई मायनों में भाजपा विलक्षण है क्योंकि यह खुद को एक सैद्धांतिक पार्टी के तौर पर देखती है। इसकी तुलना में कांग्रेस के पास कोई वास्तविक विचारधारा नहीं है। यह कह सकती है कि इसके पास मूल्य हैं, उदाहरण के लिए धर्मनिरपेक्षता या इसके पास कुछ नीतियां हैं, जैसे कि उदारीकरण। मगर इसके पास कोई स्थायी मान्यताएं नहीं हैं और इसे ही विचारधारा या सिद्धांत कहते हैं। 

बहुजन समाज पार्टी (बसपा), समाजवादी पार्टी (सपा), तृणमूल कांग्रेस तथा बीजू जनता दल (बीजद) आदि जैसी पार्टियों के पास भी कोई विशेष विचारधारा नहीं है। समाजवादी पार्टी खुद को लोहियावादी कह सकती है लेकिन अधिकतर पार्टी कार्यकत्र्ताओं या यहां तक कि सपा नेताओं के लिए भी यह बता पाना मुश्किल होगा कि इसका वास्तविक अर्थ क्या है। साम्यवादी कह सकते हैं कि उनके पास माक्र्सवादी अथवा लेनिनवादी विचाराधारा है लेकिन जब वे राज्य में सत्ता में होते हैं तो वास्तव में उस विचारधारा की अभिव्यक्ति नहीं कर सकते। कांग्रेस नीत यू.डी.एफ. सरकार के अंतर्गत केरल कोई विशेष अलग दिखाई नहीं देता जैसा कि माक्र्सवादियों के नेतृत्व में एल.डी.एफ. सरकार के समय में था। 

मगर भाजपा का दावा है कि उसके पास एक उचित विचारधारा है और यह इस विचारधारा को हिंदुत्व कहती है। क्या होगा जब पार्टी कमजोर हो रही है, जैसा कि हाल ही के महीनों में इसके साथ हुआ है? हमें आशा करनी चाहिए कि इसके कुछ परिणाम होंगे। पहला यह कि अनिश्चितता के समय में सैद्धांतिक दल अपने पहले नियमों की ओर मुड़ जाते हैं। भाजपा के मामले में इसका अर्थ यह हुआ कि पार्टी वही कथानक बनाए रखेगी जिसे इसके कट्टर समर्थक समझते हैं, यानी कि मंदिर, मूर्तियां, मुस्लिम तथा गऊएं। यही वे विश्वसनीय चीजें हैं जिन पर पार्टी को यकीन है और इन्हीं चीजों को लेकर पार्टी का रुख भाजपा को इसके प्रतिस्पर्धियों से अलग करता है। 

दूसरे स्तर के नेताओं के लिए अवसर 
इसका परिणाम यह है कि यह नेतृत्व को चरम की ओर खींच ले जाएगी। पार्टी के भीतर दूसरे स्तर के नेता खुद को इस आशा के साथ तैयार करना शुरू कर देंगे कि अनिश्चितता बाद में अवसर पैदा करेगी। ऐसी परिस्थितियों में मोदी तथा शाह अधिक असुरक्षित होंगे। उनके पास विकास तथा समावेशन के लिए बात करने हेतु कम स्थान होगा और वह दाईं ओर बढेंग़े। यही कारण है कि 2014 के मुकाबले इस बार हम इन चीजों पर अधिक जोर दिया जाना नहीं देख रहे। 

उन पर पहले ही दबाव है और अगले कुछ महीनों तक बढ़ता रहेगा। मोदी तथा शाह के दाईं ओर बढऩे के साथ ही गडकरी जैसे भाजपा के मध्यमार्गी नेताओं के लिए भी अपनी गैर हिदुत्व अपील को विस्तार देने के लिए बड़े अवसर होंगे। इस तरह से असुरक्षा दोनों पक्षों की ओर होगी। इसे पार्टी के लिए अच्छे के तौर पर देखा जा सकता है क्योंकि इस वक्त यह राष्ट्रीय स्तर पर काफी बंद तथा अलोकतांत्रिक है। मगर समावेश तथा विकास भाजपा के आह्वान के केन्द्र में नहीं है और हमें यह निष्कर्ष अवश्य निकालना होगा कि इस काल में उत्पन्न बदलाव रोजमर्रा तथा भौतिकवादी चीजों के मुकाबले धार्मिक तथा राष्ट्रवादी चीजों में अधिक दिखाई देगा। चूंकि गठबंधन बनाए जा रहे हैं और उनकी घोषणाएं हो रही हैं, जनमत संग्रहों के परिणाम इस रूपरेखा को बनाए रखेंगे। मोदी के लिए स्थान सिकुड़ता तथा दाईं ओर सरकना जारी रहेगा।-आकार पटेल


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