क्या 10 प्रतिशत आरक्षण हमारे जीवन में बदलाव लाएगा

punjabkesari.in Sunday, Jan 13, 2019 - 05:04 AM (IST)

राजनीति महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके परिणाम होते हैं। सबसे महत्वपूर्ण है इसका हमारे समाज पर प्रभाव। चाहे उनका इरादा हो या नहीं, सरकारें हमारे जीवन के चरित्र को बदल अथवा उनमें संशोधन कर सकती हैं।

इसलिए उन लोगों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने के लिए संविधान में बदलाव का निर्णय, (जिन्हें जनसंख्या के आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग माना जाता है और जिन्हें वर्तमान में आरक्षण का लाभ नहीं मिलता) बहुत महत्वपूर्ण है। यदि ऐसा होता है तो यह हमारे जीवन में बदलाव लाएगा और हमारी आकांक्षाओं को प्रभावित करेगा। मैं जिन दो बिंदुओं को उठाना चाहता हूं उनमें से छोटे के साथ शुरूआत करता हूं। अब तक आरक्षण का उद्देश्य ऐतिहासिक तौर पर सामाजिक तथा शैक्षणिक तौर पर वंचित लोगों की मदद करना था। यह उनका औचित्य था। यह अब बदलने वाला है। अब के बाद आरक्षण गरीबी उन्मूलन का भी एक तरीका बन जाएगा। 

अमीरों पर कर 
पारम्परिक रूप से अमीरों पर कर लगाया जाता है ताकि उससे प्राप्त धन को गरीबों में बांटा जाए। अब उन्हें भी शैक्षणिक संस्थानों तथा नौकरियों तक पहुंच नहीं मिलेगी क्योंकि उन्हें गरीबों के लिए आरक्षित रखा जाएगा। इसका एक और परिणाम यह है कि जन्म अथवा आर्थिक दर्जा बड़े पैमाने पर गुणवत्ता से आगे निकल जाएगा। जिससे उन्हें स्कूलों अथवा विश्वविद्यालयों में शिक्षा तथा एक सरकारी नौकरी प्राप्त करने में मदद मिलेगी। इसके विपरीत यह बराबरी के सिद्धांत को प्रभावित करेगा। जो लोग गरीब अथवा सामाजिक व शैक्षणिक तौर पर वंचित हैं उनको उन लोगों के मुकाबले शिक्षण संस्थानों में दाखिला लेने अथवा सरकारी नौकरी प्राप्त करने के बेहतर अवसर मिलेंगे जिन्हें अमीर समझा जाता है। मेरा बड़ा बिंदू और भी अधिक महत्वपूर्ण है। हम सम्भवत: एक ऐसा देश बनने जा रहे हैं जहां लगभग हर किसी को आरक्षण का लाभ प्राप्त होगा। केवल एक, यदि सूक्षम नहीं तो अल्पसंख्या बाहर रह जाएगी। 

कितना आरक्षण
जो स्थिति है उसके अनुसार 15 प्रतिशत आरक्षण अनुसूचित जातियों के लिए है, 7.5 प्रतिशत अनुसूचित जनजातियों के लिए, 27 प्रतिशत अन्य पिछड़ी जातियों के लिए है। यह मोटे तौर पर 77.20 प्रतिशत आबादी पर लागू होता है। आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए नए 10 प्रतिशत आरक्षण के मानदंड की समीक्षा करने से पता चलता है कि एक बहुत छोटी-सी संख्या को अब इसमें शामिल किया जाएगा। अब हम मुख्य मानदंडों को एक-एक करके देखते हैं। आयकर आंकड़े तथा एन.एस.एस.ओ. की रिपोर्ट बताती है कि प्रति घर 8 लाख रुपए आय प्रति वर्ष के मानदंड से सभी भारतीय परिवारों में से 95 प्रतिशत के इसमें शामिल होने की सम्भावना है। 

जमीनी अधिकार के मानदंड की समीक्षा भी ऐसा ही निष्कर्ष दिखाती है। 2015-16 की कृषि जनगणना खुलासा करती है कि 86.2 प्रतिशत जमीनी अधिकार 5 एकड़ से कम हैं, जिसका अर्थ यह हुआ कि 14 प्रतिशत से भी कम जनसंख्या 5 एकड़ की सीमा से बाहर रह जाएगी। तीसरा मानदंड यह है कि पारिवारिक घर का आकार 1000 वर्ग फुट से अधिक नहीं होना चाहिए। अब एन.एस.एस.ओ. की 2012 की रिपोर्ट दर्शाती है कि देश के 20 प्रतिशत सबसे अमीर घरों का भी औसत क्षेत्र 500 वर्ग फुट के आस-पास है। यह सीमा से आधा है। अत: एक बार फिर यह मानदंड देश की सम्भवत: 90 प्रतिशत आबादी को कवर करेगा। 

मतलब क्या है 
तो इसका मतलब क्या है? बहुत साधारण है, किसी न किसी तरह से व्यावहारिक तौर पर हर कोई शैक्षणिक संस्थानों तथा सरकारी नौकरियों के लिए आरक्षण का लाभार्थी होगा। केवल थोड़ी-सी जनसंख्या, जो 5 प्रतिशत से भी कम हो सकती है, को इसके दायरे में नहीं लाया जाएगा। मेरे सामने दो प्रश्र बचते हैं जो हमारे राजनीतिज्ञों से पूछे जाने चाहिएं। पहला, क्या हम इस तरह का देश बनाना चाहते हैं? दूसरा, ऐसे देश में रहना कैसा महसूस होगा?-करण थापर
    


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