2019 ! ‘त्रिशंकु लोकसभा’ की ओर बढ़ रहा देश

punjabkesari.in Sunday, Jan 13, 2019 - 03:57 AM (IST)

प्रधानमंत्री मोदी ने एक बड़ा साक्षात्कार प्रसारित किया,उन पर लगाए गए आरोपों का उन्होंने उत्तर दिया। इसका दूसरा अर्थ यह है कि आम चुनाव की घोषणा फरवरी महीने में होगी। मार्च से मई महीने तक चुनाव प्रक्रिया पूर्ण होगी और देश को नई सरकार मिलेगी।

चुनाव के बाद क्या नरेन्द्र मोदी पुन: प्रधानमंत्री बनेंगे, इस प्रश्र में ही उलझ कर देश की राजनीति घूम रही है। वर्ष 2014 में मोदी राष्ट्रीय राजनीति में आए। उस समय के वातावरण और आज के वातावरण में बड़ा बदलाव हुआ है। 2014 का माहौल सिर्फ मोदीमय था। सोनिया गांधी, राहुल गांधी व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सहित कांग्रेस को बाहर करने के लिए उस समय मतदान हुआ था। आज वातावरण पूरी तरह मोदी की तरफ है, ऐसा निश्चित रूप से कोई नहीं बोल सकता। 

वर्ष 2014 में अस्तित्वहीन राहुल गांधी आज मोदी के सामने खड़े हैं। मोदी की तुलना में राहुल गांधी का नेतृत्व टीका-टिप्पणी वाला नहीं है, यह मानना पड़ेगा लेकिन मोदी के विशाल नेतृत्व ने पांच वर्ष तक भ्रमित व निराश किया जिसके कारण तूफान के सामने दीये का महत्व बढ़ गया। मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ तीनों राज्यों में कांग्रेस के मुख्यमंत्री विराजमान हैं। इन तीनों राज्यों का गणित बदलेगा और 2014 का आंकड़ा भाजपा को नहीं मिलेगा। चुनाव आम होगा, फिर भी हर राज्य में अलग लड़ाई होगी और उसके बाद ही दिल्ली की खिचड़ी पकेगी, यह आज का माहौल है। 

पक्का कौन चाहिए
भारतीय जनता पार्टी ने देशभर में 80 से 100 सीटें गंवाईं तो क्या स्थिति होगी, इस पर आज से ही चर्चा शुरू है। कुछ समय पहले अचानक भाजपा के घोड़े पर सवार हुए सांसद संजय काकड़े दिल्ली में मिले। भाजपा के साथ नहीं रहूंगा, ऐसा उन्होंने कहा। इसका मतलब यह है कि हवा उलटी बहने लगी है। काकड़े निजी संस्था के माध्यम से चुनाव का सर्वेक्षण करते रहते हैं और कई बार उनका ‘आंकड़ा’ सटीक बैठता है। यह पुणे महानगरपालिका में दिखाई दिया। देश का वातावरण भाजपा के पक्ष में नहीं  है और भाजपा 150 सीटों के ऊपर जाएगी क्या? ऐसी शंका है, ऐसा श्री काकड़े ने कहा। 

उसी समय अंबानी ग्रुप के सांसद, उद्योगपति ने कहा कांग्रेस 125  सीटों, तक जा रही है। यह आंकड़ा चिंताजनक व भाजपा को अस्वस्थ करने वाला है।  उस समय भाजपा में किस प्रकार का वातावरण होगा? इसकी झलक नितिन गडकरी के बात-व्यवहार से दिखाई दे रही है। गडकरी कल ताल ठोंक कर खड़े हो सकते हैं और भाजपा सहित अन्य नाराज पार्टियां उनको समर्थन दे सकती हैं। केंद्रीय मंत्रिमंडल में तेज-तर्रार मंत्री के रूप में काम करने की उनकी विशेषता है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का जितना मजबूत समर्थन गडकरी को है, उतना अन्य किसी को नहीं है। योगी आदित्यनाथ, शिवराज सिंह चौहान, राजनाथ सिंह जैसे अनेक प्रमुख नेता उस समय गडकरी के साथ खड़े रहेंगे। 

राहुल गांधी नहीं और मोदी भी नहीं, ऐसी दुविधा में खड़ा दिल्ली का सत्ता संघर्ष मुझे आज दिखाई दे रहा है। पराजय और विधायक-सांसदों की अकार्यक्षमता की जवाबदेही पार्टी के अध्यक्ष की होती है, ऐसा एक बयान गडकरी ने पांच राज्यों में मिली हार के बाद दिया था, यह उसका उदाहरण है। गडकरी जब भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे तब मोदी और शाह राज्य में थे। अमित शाह कहीं भी नहीं थे। राष्ट्रीय अध्यक्ष पद का दूसरा टर्म गडकरी को नहीं मिले, इसके लिए दिल्ली में षड्यंत्र रचा गया। गडकरी दोबारा अध्यक्ष हुए होते तो दिल्ली में मोदी व शाह का उदय नहीं हुआ होता। उसमें से ‘पूर्ति’ प्रकरण निकला और अंत में वह निराधार साबित हुआ लेकिन गडकरी को उसका फटका लगा। उसी वेदना को लेकर गडकरी आज भी दिल्ली में टहल रहे हैं। गडकरी 2019 की त्रिशंकु लोकसभा का इंतजार करते हुए खड़े हैं। 

...तो मोदी विपक्ष सीट पर
कांग्रेस पार्टी ने 100 का आंकड़ा पार किया तो भी मोदी व उनके सहयोगियों को विपक्षी सीट पर बैठना पड़ेगा। उत्तर प्रदेश में मायावती व अखिलेश यादव एक होकर चुनाव नहीं लड़ें, इसके लिए सरकारी स्तर पर अघोरी प्रयोग शुरू हैं। सी.बी.आई., प्रवर्तन निदेशालय (ई.डी.) और ई.वी.एम. ये तीन महत्वपूर्ण हथियार आज भी भाजपा के कद्दावर नेताओं के हाथ में हैं और ये लोग चुनाव जीतने के लिए व्यापारी दिमाग से किसी भी स्तर तक जा सकते हैं, ऐसा विश्वास जनता को है। 

पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में भाजपा की हार हुई, फिर भी ई.वी.एम. पर संशय कायम है। यह हमारे चुनाव आयोग की असफलता है। विश्व भर में ई.वी.एम. का प्रयोग बंद है लेकिन हमारे देश में ई.वी.एम. का प्रयोग हठ से किया जा रहा है। मोदी-शाह द्वारा नियुक्त किए गए चुनाव आयुक्त भी कहते हैं कि ई.वी.एम. का पर्याय नहीं है। गुजरात में विधानसभा चुनाव भाजपा ने सही रास्ते से नहीं जीता, ऐसा विश्वास के साथ कहने वाले लोग जब मिलते हैं तो चिंता होती है। 

सूरत में भाजपा, मोदी-शाह का विरोध अपने चरम पर था लेकिन इस क्षेत्र की सभी सीटें अंतिम दो घंटों में भाजपा की झोली में चली गईं और गुजरात का पलड़ा ही घूम गया। एक महत्वपूर्ण व्यक्ति मुझसे मिले और कहा कि 20 से 25 प्रतिशत ई.वी.एम. मशीनें मैनेज की जाती हैं और इसके लिए गुजरात के एक बड़े उद्योगपति को जिम्मेदारी दी गई है। यह 20 से 25 प्रतिशत व्यवस्था ही भाजपा को ग्राम पंचायत, विधानसभा और लोकसभा में विजय दिलाती है। उप चुनाव छोड़ दिए जाते हैं। लोकसभा मतदान घोटाले की तरफ ध्यान न दिया जा सके इसीलिए तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव को छोड़ दिया गया। इससे ‘सावधान’ हो जाओ, ऐसा लोग जब बोलते हैं तो बहुत दुख होता है। 

महाराष्ट्र में अस्पष्टता
महाराष्ट्र का राजनीतिक समीकरण अस्पष्ट है। शिवसेना-भाजपा युति की अभी तक चर्चा भी शुरू नहीं हुई है। इसके कारण क्या पकेगा, यह कहा नहीं जा सकता। दिल्ली यात्रा के दौरान अशोक चव्हाण मिले। ‘राष्ट्रवादी’ कांग्रेस के साथ कांग्रेस की युति होगी क्या? इस पर ‘होने में कोई आपत्ति नहीं’ ऐसा उन्होंने कहा। महाराष्ट्र में किसी भी युति या आघाड़ी के बारे में कोई विश्वास के साथ नहीं बोल सकता है। एक-दूसरे को आंकना शुरू है। इसी दौरान 2014 से भी बड़ी विजय हासिल करूंगा, ऐसा अमित शाह कहते हैं और ‘मोदी पुन: प्रधानमंत्री नहीं होंगे’ ऐसा राहुल गांधी कहते हैं। देश त्रिशंकु लोकसभा की तरफ चल पड़ा है। अंत में इसके जिम्मेदार मोदी ही हैं। मौके को नहीं भुना पाए जिसके कारण देश में नए पर्याय की खोज पुन: शुरू हो गई है।-संजय राऊत                       
           


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