रुकने का नाम नहीं ले रहा पंजाब का ‘बौद्धिक प्रवास’

punjabkesari.in Saturday, Jan 12, 2019 - 11:13 AM (IST)

ज्ञान /बौद्धिकता के दौर में हम पंजाबियों ने अज्ञान/अबौद्धिक पतन का आखिरी किनारा देख लिया है। पत्थर चाटकर लौटने वाली मछली वाला मुहावरा भी हम पर लागू नहीं हो रहा तो सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि पंजाबी समाज, जो बार-बार पंजाबियत की रट लगाए रखता है, किस सामाजिक पतन की ओर बढ़ रहा है। यह ‘ब्रेन-ड्रेन’, जिसे बौद्धिक प्रवास भी कहा जा सकता है, आखिर है क्या? क्या इसके रुकने की सम्भावना है? क्या विदेशों में इन बौद्धिक कर्मियों का कोई भविष्य है। 

आखिर पंजाबी नौजवान विदेशों की ओर क्यों भागा जा रहा है? राजनीति क्या है, सामाजिक/आर्थिक हालात क्या हैं? कौन जिम्मेदार है इन हालातों का, जिनमें ‘दिमागों’ के साथ-साथ ‘पूंजी’ भी प्रवास करती जा रही है? पिछले साल ही विदेशों में जाने वाले विद्यार्थियों की गिनती अढ़ाई लाख के करीब बताई जा रही थी और उन पर आने वाला खर्च 70 हजार करोड़ माना जा रहा है। आखिर यह मामला इतना पेचीदा क्यों बन गया है कि इसका समाधान ही नजर नहीं आ रहा? 

इस समस्या के पैदा होने का बुनियादी प्रश्र शिक्षा तंत्र है। हमने वह शिक्षा दी जो नई औद्योगिक क्रांति में विद्यार्थी को किसी भी तरह के रोजगार के उपयुक्त नहीं बना रही। उद्योग की मांग और थी तथा हम जो शिक्षा दे रहे थे वह दशकों पीछे छूट चुके सिस्टम के काम आने वाली थी। हम अपने विद्यार्थियों को न तो प्रासंगिक शिक्षा दे सके और न ही उनमें कौशल पैदा कर सके। लिहाजा पंजाब में बेरोजगारी इतनी बढ़ी कि पंजाबी समाज बर्बाद होता चला गया। बेरोजगारी से उकताए युवा की निराशा इतनी बढ़ गई कि उसने चिट्टे का रास्ता पकड़ लिया। 

सामाजिक मूल्यों से परे हो चुके, नैतिक मूल्य गंवा चुके राजनीतिज्ञों तथा तस्करों की मिलीभगत से पंजाब में नशे का कारोबार इतना बढ़ा कि इसे ‘उड़ता पंजाब’ की उपमा से तोलना शुरू कर दिया गया। पहली बार राहुल गांधी ने पंजाब के युवा को ‘नशेड़ी’ कह कर सम्बोधित किया तो पंजाबियों ने बुरा तो बहुत मनाया परंतु जब पोल खुलनी शुरू हुई तो शर्मिंदगी भी इन्हीं को उठानी पड़ी। अब हालत यह है कि पंजाब में जो कालेज हैं, प्रोफैशनल के नाम पर जो यूनिवर्सिटियों खुली हैं, उनके पास न तो समय के अनुसार शिक्षा है और न ही किसी किस्म का वह ढांचा जिसके साथ कुशल कर्मी तैयार किए जा सकें, जोकि चौथी औद्योगिक क्रांति के काम आ सकें। 

साइबर उद्योग वहां पहुंचेगा जहां साइबर कर्मी होंगे
अब प्रश्र यह है कि चौथी औद्योगिक क्रांति क्या है? क्या पंजाब इसके लिए तैयार है? क्या हम इसका किसी भी तरह से मुकाबला करने के योग्य हैं? पंजाबी के प्रसिद्ध विद्वान अमरजीत ग्रेवाल ने इस क्रांति का आकलन करते हुए लिखा है कि पंजाब में आधुनिक सैक्टर के निर्माण के लिए अब तक जितने भी अवसर आए, वे सभी हमने गंवा दिए। औद्योगिक उत्पादन, सूचना-तकनीक तथा नालेज/रचनात्मक/सांस्कृतिक उद्योगों के निर्माण की बस हमसे पहले ही छूट गई थी। अब एक बार फिर अवसर आया है। यह अवसर है चौथी औद्योगिक क्रांति के माध्यम से पंजाबी युवा की अथाह शक्तियों को पंजाब के पुनर्निर्माण के लिए चैनेलाइज करने का। पंजाब के ग्रामीण समाज को साइबर/ज्ञान आर्थिकता में रूपांतरित करना। 

साइबर फिजिकल आर्थिकता तथा ज्ञान आर्थिकता पर टिका नालेज/रचनात्मक/सांस्कृतिक उद्योग वहीं विकसित होगा जहां साइबर/नालेज कर्मी मौजूद होंगे। जहां का कार्यबल उद्योग तथा नालेज इंडस्ट्री के निर्माण तथा विकास के लिए जरूरी कौशल से लैस होगा। परंतु हमारा जो शैक्षणिक ढांचा है, जो शिक्षा हम दे रहे हैं,क्या वह इन कर्मियों को पैदा करने के सक्षम है? नहीं, बिल्कुल नहीं। जो हमारा शिक्षा तंत्र पढ़ा रहा है, नए उद्योग को उसकी जरूरत नहीं है तथा जिसकी जरूरत है वह हम पढ़ा नहीं रहे। इसीलिए जो आज के अनुकूल शिक्षा है उसे ग्रहण करने के लिए ही पंजाबी युवा विदेशों की ओर कूच कर रहा है। 

इनके साथ ही पंजाब से हर वर्ष 67,000 करोड़ रुपए भी कूच कर जाते हैं। हर साल यह गिनती भी बढ़ रही है और धन की निकासी भी। इसके साथ ही 10-15 हजार करोड़ रुपए की वह निकासी भी जुड़ी हुई है जो कालेजों के खर्चों के अतिरिक्त किरयानों वगैरह की है, ट्रैवलिंग, मकानों से किरायों से जुड़ी है, जिसने हमारे छोटे दुकानदार को, रिक्शा वालों को, बस सर्विस को, टैक्सी वालों को कमाई देनी होती है तथा जिसके साथ हमारे निम्न मध्य वर्ग का कारोबार जुड़ा होता है। वह भी बहुत बुरी तरह से प्रभावित हुआ है। 

विद्यार्थियों के दाखिले में 40 प्रतिशत तक गिरावट 
अब इस प्रवास ने पंजाब के कालेजों के लिए भी संकट खड़ा कर दिया है। ढांचागत खर्चों के अतिरिक्त अध्यापकों की मोटी तनख्वाहें तथा सरकार का इस ओर से हाथ खींच लेना भी परेशानी  का कारण बन रहा है। कालेजों में विद्यार्थियों के दाखिले में 40 प्रतिशत तक की गिरावट निजी संस्थानों के लिए तो आफत ही बन गई है। यदि कुछ सरकारी कालेजों में गरीब विद्यार्थी जा भी रहे हैं तो वहां अध्यापकों की कमी तथा ढांचागत कमियों ने भी इस संकट को और गहरा किया है। केन्द्र सरकार की पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप स्कीम ने कालेजों को कुछ राहत दी हुई थी। परंतु जिस तरह की धांधली उसमें सामने आई, जिस तरह सरकारों ने हाथ खींचा, उसके दाखिले भी बंद हुए जैसे ही हैं। 

पंजाब में शिक्षा के नाम पर जो कुछ स्कूली अध्यापकों के साथ किया जा रहा है, वह किसी से छिपा नहीं। फिर इनसे आशा भी क्या की जा सकती है, जिसके शिक्षा मंत्री सरकारी स्कूलों को ढाबे कह रहे हों? इसलिए हालात बदतर ही हैं। समय अनुकूल शिक्षा देने से ऊब चुकी पंजाब सरकार यदि अब कुछ नए की बात भी करती है तो वह है स्कूलों में आइलैट्स सैंटर खोलने की। अर्थात यहां भी वही कि इन युवाओं को रोजगार के काबिल नहीं बनाना, बस विदेशों की ओर भेजते रखना है। 

यह प्रश्र भी जायज है कि क्या विदेशी सरकारें इन सभी साइबर या समकालीन औद्योगिक कर्मियों की कार्यशक्ति का इस्तेमाल कर पाएंगी? यह महसूस किया गया है कि इन देशों द्वारा युवा श्रम शक्ति के कौशल का पूरा लाभ उठाया जाएगा। इन युवाओं को हालांकि लगभग 5 वर्ष तक बहुत कड़ी मेहनत करनी पड़ती है और वहां की कार्य संस्कृति को समझना पड़ता है परंतु जब वे इस संघर्ष से निकलते हैं तो खुद को समय के साथ खड़े महसूस करते हैं। वैसे यह भी महसूस किया गया कि ये युवा विशेषकर लड़कियां इन देशों में हमारे मध्यवर्गीय परिवारों की घुटन से आजादी तथा अधिक सुरक्षित भी महसूस करती हैं।-देसराज काली(हरफ-हकीकी)


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