जब महादेव ने त्रिशूल से शनिदेव पर वार किया तो वो यहां आकर गिरा
punjabkesari.in Sunday, Dec 30, 2018 - 04:48 PM (IST)
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देश के कोने-कोने में भगवान शंकर से जुड़े कई तीर्थ स्थल देखने को मिलते हैं, जिनका रहस्य और इतिहास चौकाने वाला है। आज हम आपको भोलेनाथ से जुड़े ऐसे ही एक मंदिर के बारे में बताने वाले हैं। जिसका इतिहास अनसुना और अनदेखा है। ये मंदिर रांची से 150 किलोमीटर की दूरी पर झारखंड के गुमला जिल में स्थित है, जिसे परशुराम जी की तपस्थली माना जाता है। इस पावन स्थल को टांगीनाथ और बाबा टांगीनाथ के नाम से जाना जाता है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान परशुराम ने यहां शिव की घोर उपासना की थी, और यहीं उन्होंने अपने परशु यानि फरसा जमीन में गाड़ दिया था। इस फरसे को देखने पता चलता है कि इसकी ऊपरी आकृति त्रिशूल से मिलती-जुलती है। मान्यता है महर्षि परशुराम ने जिस परशु यानि फरसे को यहां गाड़ दिया था, आज के समय में यहां के लोग इसे त्रिशूल के रूप में पूजते हैं।
शिव त्रिशूल
इस त्रिशूल की सबसे खास और हैरान कर देने वाली बात ये है कि आज तक इस पर आज तक जंग नहीं लगा और न ही धूप, छांव, बरसात का कोई असर नहीं पड़ता। कहा जाता है यहां ज्यादातर सावन और महाशिवरात्रि के दिन ही यहां शिवभक्तों की भीड़ उमड़ती है। इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यहां के साक्षात भगवान शिव निवास करते हैं।
जंगल में स्थित है मंदिर
बाबा टांगीनाथ का ये मंदिर घने जंगल में स्थित है। इस परिसर में लगभग 200 निशानियां हैं जिसमें शिवलिंग और देवी-देवताओं की मूर्तियां, विशेषकर दुर्गा, महिषासुर मर्दिनी, भगवती लक्ष्मी, गणेश, अर्द्धनारीश्वर, विष्णु, सूर्य देव, हनुमान और नंदी आदि की मूर्तियां प्रमुख हैं। यहां की सबसे बड़ी विशेषता यहां स्थापित महाविशाल त्रिशूल है। बल्कि कहा जाता है पूरे देश में यहां से बड़ा त्रिशूल कहीं नहीं है। यहां छोटे और बड़े कई प्रकार के 60 शिवलिंग हैं।
पौराणिक महत्व
मंदिर को लेकर कथा प्रचलित है कि जब त्रेता युग में भगवान श्रीराम ने जनकपुर में आयोजित सीता माता के स्वयंवर में शिव जी का धनुष तोड़ा तो वहां पहुंचे भगवान परशुराम काफी क्रोधित हो गए। इस दौरान लक्ष्मण से उनकी लंबी बहस हुई और इसी बीच जब परशुराम को पता चला कि भगवान श्रीराम स्वयं नारायण ही हैं तो उन्हें बड़ी आत्मग्लानि हुई।
शनिदेव से भी जुड़ी गाथा
टांगीनाथ धाम का प्राचीन मंदिर रख रखाव के अभाव में ढह चुका है और पूरा इलाका खंडहर में तब्दील हो गया है लेकिन आज भी इस पहाड़ी में प्राचीन शिवलिंग बिखरे पड़े हैं। मंदिर की बनावट देवकाल की कहानी बयां करती हैं। इस मंदिर से जुड़ी एक और गाथा है जिस के अनुसार शिव ने शनिदेव के किसी अपराध के लिए उन पर अपना त्रिशूल फेंक कर वार किया तो वह इस पहाड़ी की चोटी पर आ धंसा। लेकिन उसका अग्र भाग जमीन के ऊपर रह गया। जबकि त्रिशूल जमीन के नीचे कितना गड़ा है, यह कोई नहीं जानता।
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