क्या कांग्रेस पार्टी के पुनरुत्थान में बुद्धिमान लोग मदद कर सकते हैं

punjabkesari.in Tuesday, Dec 11, 2018 - 04:15 AM (IST)

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के मुख्यालय 24, अकबर रोड में छोटे से दो कमरे आपस में सटे हुए हैं। इसके भीतर 20 से 30 अच्छी वेशभूषा वाले लोग कम्प्यूटर पर कार्य करते हैं। मगर 133 वर्ष पुरानी कांग्रेस के लिए पुनर्उत्थान कार्य उन दो कमरों में किया जा रहा है जोकि बाहर की व्यस्ततम राजनीति के जैसा अंदर का भी माहौल है क्योंकि पार्टी अगले वर्ष एक और आम चुनाव की तैयारी में जुटी है। 

2014 के जख्म अभी भरे नहीं हैं और अभी भी ताजा हैं। कुल सीटों का योग 44 था। कांग्रेस की यह हालत अब तक की सबसे दयनीय हालत थी। अपने संगठनात्मक तरीकों से हटकर पार्टी का स्तर बिल्कुल विपरीत था। कहीं ऐसी दशा फिर न हो जाए इसलिए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी डाटा तथा तकनीक का उत्कृष्ट इस्तेमाल करना चाहते हैं। राहुल गांधी ने एक पूर्व इंवैस्टमैंट बैंकर प्रावीण चक्रवर्ती को डाटा तथा तकनीक का जिम्मा सौंपा है जोकि फरवरी में पार्टी के इस विभाग की देखरेख करेंगे। उनका कार्य भारत की सबसे पुरानी पार्टी में नई जान फूंकने का है। वह पार्टी में एक नया करिश्मा करने के लिए अग्रसर होंगे। मगर भाजपा जोकि कांग्रेस की प्रमुख प्रतिद्वंद्वी पार्टी है, ने फेसबुक और व्हाट्सएप के माध्यम से चार वर्ष पूर्व सफल चुनावी प्रचार कर कांग्रेस को कड़ी चुनौती दी थी। अब कांग्रेस के लिए यह चुनौती कड़े परिश्रम की तरह होगी। 

चार स्तम्भ 
चक्रवर्ती तथा उनके 50 के करीब सदस्यों की टीम इस चुनौती पर हमला करने के लिए चार स्तम्भ प्राथमिकता के आधार पर खड़े करेगी। 
शक्ति (पावर) : इसमें कांग्रेस से सहानुभूति रखने वाले कार्यकत्र्ता, सक्रिय कार्यकत्र्ता, पदाधिकारी तथा नेता शामिल होंगे। 
आवाज : शक्ति में सूचीबद्ध हुए लोगों के लिए संचार तथा एक अच्छा प्लेटफार्म तैयार करना है। 
विद्या : चुनाव से संबंधित कार्यप्रणाली के लिए शक्ति तथा आवाज का मिश्रण कर अपना ध्यान केन्द्रित करना। 

हालांकि चौथे क्षेत्र को अभी नाम नहीं दिया गया। मगर इसके लिए ऐतिहासिक डाटा को बूथ लैवल पर इकट्ठा कर चुनावों की मुहिम के लिए योग्य नीति तैयार करना जिसमें प्रभावी गठबंधन, सीटें, मुद्दों पर ध्यान केन्द्रित करना तथा सर्वे करना शामिल होगा। पांच राज्यों के चुनावों में दिसम्बर माह में इनमें से कुछ प्रयोगों को आजमाया जा चुका है। नामांकन से पूर्व प्रत्येक उम्मीदवार एक खास सीट जीतने के लिए सुझावों के एक सैट पर बने डाटा  से दिशा-निर्देश हासिल करेगा।

उम्मीदवारों का चयन करने के लिए शक्ति के द्वारा हुए सर्वे का इस्तेमाल किया जाएगा। 7 लाख 20 हजार पार्टी कार्यकत्र्ता शक्ति के द्वारा चुनावों वाले राज्य में कांग्रेस महासचिव की आवाज में रिकार्ड की गई कॉल को रिसीव करेंगे और उनसे यह पूछा जाएगा कि अपने राज्य या चुनावी क्षेत्र से वह किस उम्मीदवार के नाम का चयन करना चाहेंगे। हिंदी, तेलगू तथा छत्तीसगढ़ी में रिकार्ड किए गए वॉयस टू-टैक्स्ट आर्टीफिशियल इंटैलीजैंस (ए.आई.) इंजन के माध्यम से सुझाए गए नामों का जवाब मांगा जाएगा। और सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण बात के बारे में चक्रवर्ती कहते हैं कि राष्ट्रीय अध्यक्ष अब पार्टी कार्यकत्र्ताओं से सूझबूझ तरीके से बातचीत कर सकेंगे जोकि ऐतिहासिक चुनावी डाटा की बूथ लैवल पर पकड़ से सम्भव हो सकेगा। चक्रवर्ती के कैबिन के भीतर एक बड़ी स्क्रीन पर शक्ति पर लोगों द्वारा चिन्हित किए गए बिंदुओं को देखा जा सकेगा। उनका दावा है कि इससे राज्यों से 6 से 7 लाख लोग हस्ताक्षर के द्वारा दिसम्बर में चुनावों से जुड़े। स्क्रीन पर इसकी गिनती 40 लाख के निकट होगी। 

सतर्क आशावाद 
कांग्रेस जैसी वापसी करने वाली पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए यह प्रोजैक्ट मनपसंद योजना होगी। पिछले माह केरल जैसे दलबंदी झेल रहे पार्टी यूनिट में शक्ति को लांच किया गया। जिसमें सभी ब्लॉक तथा जिला स्तर के नेताओं के अलावा राज्य के बड़े नेताओं ने भाग लिया।  इस समय पार्टी को सतर्क रहने की भी जरूरत है। दक्षिण केरल के वाट्टापारा के पार्टी नेता साजी कुमार का कहना है कि सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि युवा कार्यकत्र्ता सोशल मीडिया के माध्यम से पार्टी को प्रोमोट करने के लिए कैसे ज्यादा सक्रिय होंगे क्योंकि वह जमीनी स्तर पर कार्य करने के लिए दिलचस्पी नहीं दिखा रहे। साजी का आगे कहना है कि यदि ‘शक्ति’ एक तुलनात्मक कार्य कर पाई तो यह कांग्रेस पार्टी के लिए बहुत बड़ी क्रांति साबित होगी। जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी के एक सहयोगी प्रो. टी.जी. सुरेश का कहना है कि त्वरित तकनीक के प्रयास यह दर्शाते हैं कि भाजपा के उत्थान के कारण कांग्रेस पार्टी कैसे अपने आप को पुन:परिभाषित करने के लिए बाध्य हुई है।

कांग्रेस हमेशा से ही अपनी विचारधारा तथा अपने संगठन को एक खुले तरीके से अपने आपको परिभाषित करती आई है मगर अब राहुल गांधी के नेतृत्व में यह विचारधाराएं बदल रही हैं और पार्टी भाजपा से पार पाने की कोशिश में है। कांग्रेस में संगठनात्मक बीमारियों को ठीक करने के लिए डाटा का इस्तेमाल कोई जादू की छड़ी नहीं बन सकता हालांकि कांग्रेस तथा भाजपा के बीच खाई भरने के लिए एक प्रयास जरूर हो सकता है। मगर चक्रवर्ती चाहते हैं कि डाटा एक महत्वपूर्ण रोल निभाए ताकि एक  अच्छे परिणाम की अपेक्षा की जा सके। 

लोकसभा की राह 
वैश्विक स्तर पर इस तकनीक का राजनीति में सबसे बढिय़ा इस्तेमाल अमरीका में पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के राष्ट्रपति पद के चुनावों की मुहिम के दौरान हुआ। 2008 तथा 2012 के चुनावों में चुनावी मुहिम की योजनाओं के बारे में बहुत कुछ लिखा गया। मगर भारत में ऐसी चुनावी मुहिम तकनीक अपरिपक्व तथा धीमी है। नेताओं की रेटिंग को जांचने वाली ‘नेता एप’ के संस्थापक प्रथम मित्तल का कहना है कि अभी लोकतांत्रिक स्तर तक राजनीतिक पार्टियां के पहुंचने के लिए जहां डाटा को चुनावी प्रक्रिया में महत्वपूर्ण रोल अदा करना है अभी दूर की कौड़ी लग रही है। अभी तो भारत में सभी पार्टियां अपने जमीनी स्तर पर कार्य कर रही हैं। क्या विदेशी ढांचे वाली, अंग्रेजी बोलने वाली यह तकनीक कांग्रेस को सफलता दिलाएगी। क्या भारत के गांव पार्टी से पिछले पांच वर्षों की तुलना में अब ज्यादा जुड़ेंगे। इन सबका जवाब तो 2019 के लोकसभा चुनावों के बाद ही मिल पाएगा।-एन. जॉन


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Pardeep

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