न चाहते हुए भी गेहूं, धान की रिवायती फसल की ओर दोबारा वापस आ रहा है ‘अन्नदाता’

punjabkesari.in Monday, Dec 10, 2018 - 01:46 PM (IST)

सुल्तानपुर लोधी (धीर): देश के अन्नदाता को आर्थिक पक्ष से मजबूत करने की कोशिशों में किसानों को गेहूं, धान के फसली चक्र से निकालने के लिए सरकार के किए प्रयासों को अभी तक किसी भी ओर से सहारा मिलता दिखाई नहीं दे रहा, जिसके कारण किसान न चाहते हुए भी गेहूं, धान की रिवायती फसल की ओर दोबारा वापस आ रहा है। केंद्र की मोदी सरकार की ओर से किसानों को उनकी फसलों के दाम स्वामीनाथन रिपोर्ट के द्वारा देने का वायदा भी पूरे 5 वर्ष गुजरने के बाद भी अभी तक हवा में ही है 

फसलों को बेचते समय पेश आती है समस्या
सरकार की ओर से पंजाब में लगातार पानी के कम हो रहे स्तर के कारण किसानों को बार-बार रिवायती फसलों से बाहर निकाल कर अन्य फसलों जैसे सब्जी, मटर, गोभी, आलू, शिमला मिर्च, चुकंदर, जिसमें पानी की खपत कम होती है, उसको लगाने की अपील की जाती है। खेतीबाड़ी यूनिवॢसटी की ओर से भी नए-नए संशोधित हुए बीज को तकनीकों के द्वारा जानकारी दी जाती है। किसान गेहूं व धान के फसल चक्र से निकलने की कोशिश में और फसल लगाता है परंतु इन फसलों को बेचने में आई दिक्कतों और उचित दाम न मिलने के कारण उसने दोबारा क्षेत्रफल गेहूं व धान के अधीन लाना शुरू कर दिया है। 

गेहूं के अधीन क्षेत्रफल गत वर्ष से बढ़ा
इस बारे खेतीबाड़ी विस्तार अधिकारी डा. परमिन्दर कुमार ने बताया कि इस बार गेहूं के अधीन गत वर्ष से करीब 1500 हैक्टेयर क्षेत्रफल बढ़ा है, जिसका मुख्य कारण आलुओं की फसल में गत लगातार 2-3 वर्षों से आ रही मंदी है। उन्होंने कहा कि आलू की फसल का दाम सही नहीं मिलता। खाद के दाम और मजदूरों की मजदूरी में बढ़ौतरी होने के कारण किसानों को आलुओं की फसल में से वह मुनाफा नहीं हुआ, जो पहले होता था। इसलिए इस वर्ष आलू की फसल के अधीन क्षेत्रफल निकाल कर रिवायती फसल गेहूं की ओर बढ़ाया है। 

क्या कहते हैं किसान संघर्ष कमेटी के नेता
किसान संघर्ष कमेटी के नेता परमजीत सिंह बाऊपुर, अमरीक सिंह, प्रगट सिंह भैणी, दिलबाग सिंह, रामपुर गौरे ने गत दिनों नई दिल्ली में देश की समूह किसान जत्थेबंदियों ने पार्लियामेंट के आगे धरना देकर केंद्र सरकार से फसलों के दाम स्वामीनाथन कमीशन के अनुसार और अन्य फसलों के लिए मंडीकरण की सुविधा देने की मांग की थी। किसान नेताओं ने कहा कि जब तक सरकार दूसरी फसलों की खरीद नहीं करती, तब तक किसान को मजबूर होकर रिवायती फसलों की ओर रुख करना पड़ रहा है। 

 


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