सनातन परम्पराओं से छेड़छाड़ ठीक नहीं

punjabkesari.in Monday, Dec 10, 2018 - 05:19 AM (IST)

सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से हम सभी हिंदू उद्वेलित हैं। इसी हफ्ते एक व्याख्यान में सर्वोच्च न्यायालय की पूर्व न्यायाधीश ज्ञान सुधा मिश्रा का कहना था कि जहां संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकारों का परम्पराओं से टकराव होगा, वहां अदालत को हस्तक्षेप करना पड़ेगा। उन्होंने सती प्रथा का उदाहरण देकर अपनी बात का समर्थन किया किंतु पूजा पद्धति और उससे जुड़े कर्मकांड को बदलने का अधिकार अदालत का नहीं होना चाहिए। जैसे जनजातीय समाजों में जो कानून की व्यवस्था है, उसमें भारत सरकार हस्तक्षेप नहीं करती। अंग्रेज हुकूमत ने भी नहीं किया। 

अंडेमान के पास सैंटीनल द्वीप में वनवासियों द्वारा तीर-कमान से मारे गए, ‘अमरीकी मिशनरी युवा’ के मामले में सरकार कोई कानूनी कार्रवाई नहीं कर रही क्योंकि गत 60 हजार सालों से यह प्रजाति शेष दुनिया से अलग-थलग रहकर जीवनयापन कर रही है। उसके अपने कानून हैं और भारत सरकार ने उनकी स्वतंत्रता को सम्मान दिया है। 

हिंदू संस्कृति की रक्षा
ईसाई मिशनरी, अन्य धर्मी लोग या फिर अदालतें अगर हमारी धार्मिक मान्यताओं में हस्तक्षेप करें, तो उसका कारण समझा जा सकता है क्योंकि उनकी आस्था हमारी परम्पराओं में नहीं है, पर अगर हिंदू संस्कृति की रक्षा करने का दावा करने वाले संत, संगठन या राजनीतिक दल ऐसा करते हैं तो यह चिंता की बात है। इलाहाबाद का नाम ‘प्रयागराज’ करना, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी महाराज का प्रशंसनीय कदम है, पर अद्र्ध कुंभ को कुंभ कहना सनातन परम्पराओं से खिलवाड़ है। 

कुंभ की परम्परा हिंदू मान्यताओं के अनुसार हजारों वर्ष पुरानी है। हर 12 वर्ष में कुंभ, हर 6 वर्ष में अद्र्ध कुंभ और हर 144 वर्षों में महाकुंभ होते आए हैं। इसके पीछे वैज्ञानिक और शास्त्रीय दोनों आधार हैं। हमारे धार्मिक ग्रंथों में इन पर्वों का विस्तृत वर्णन आता है, पर ऐसा उल्लेख कहीं नहीं मिलता कि अद्र्ध कुंभ को पूर्ण कुंभ कह दिया जाए। योगी महाराज ने अपने अज्ञानी अधिकारियों की चाटुकारिता भरी सलाह से जो यह निर्णय लिया है, वह संत समाज के गले नहीं उतर रहा। अगर इसी तरह नाम बदले गए तो भविष्य में कोई ऐसी सरकार भी आ सकती है, जो यह कह दे कि 12 वर्ष में ही कुंभ क्यों होगा? हम तो हर मकर संक्रांति को कुंभ करेंगे, तब उसे कौन रोक लेगा? 

मान्यताओं का विरोध
बात यहीं तक नहीं है, पिछले डेढ़ वर्ष में ब्रजभूमि को लेकर योगी महाराज की सरकार ने जो भी कार्यक्रम और योजनाएं घोषित की हैं, वे सब ब्रज संस्कृति और मान्यताओं के विपरीत हैं। आज  ‘ब्रजतीर्थ विकास परिषद’ अपने ही बनाए कानूनों को तोड़कर हजारों करोड़ रुपयोंं की वाहियात योजनाएं ब्रज विकास के नाम पर लागू करवा रही है, इनसे ब्रज की सेवा नहीं, विनाश होगा। इसी तरह मथुरा और वृंदावन के बीच भावनात्मक दूरी है। वृंदावनवासी ग्वारिये कृष्ण के प्रति सांख्य भाव रखते हैं, जबकि मथुरावासी कृष्ण को द्वारिकाधीश अर्थात् राजा के रूप में पूजते हैं पर योगी महाराज की सरकार ने वृंदावनवासियों के घोर विरोध की उपेक्षा करके मथुरा-वृंदावन नगर निगम बना दिया, जोकि ब्रज की सनातन परम्परा के पूरी तरह विपरीत है। 

पूरा ब्रज भक्ति भावना प्रधान है। नंदग्राम वालों के लिए अगर ग्वारिया कृष्ण अधिक महत्वपूर्ण हैं तो बरसानावासी राधारानी के प्रति स्वयं का सखी भाव रखते हैं। हर गांव का अपना पौराणिक इतिहास है। इसी तरह गोवर्धन, जो प्रकृति पूजा का सर्वोत्तम उदाहरण है, उसके चारों ओर विकास का जो मॉडल ‘ब्रजतीर्थ विकास परिषद’ लेकर आई है, वह गोवर्धन की भावना के सर्वथा प्रतिकूल है। इससे गोवर्धन ‘न्यूयॉर्क’ शहर की तरह हो जाएगा, जो इसकी अपूर्णनीय क्षति होगी। 

विडम्बना और पीड़ा
हमारी सनातन परम्पराओं से अगर कांग्रेस, समाजवादी पार्टी या बहुजन समाज पार्टी ने ऐसी छेड़छाड़ की होती, तो निश्चय ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उससे जुड़े संगठन तूफान मचा देते, जो सही भी होता लेकिन जब हिंदू धर्म की सेवा करने का दावा करने वाले दल भाजपा की सरकार में सनातन परम्पराओं से खिलवाड़ हो तो किसका विरोध किया जाए? यह हम सब सनातनधर्मियों की विडम्बना है और पीड़ा भी। योगी महाराज के मुख्यमंत्री बनने पर हम सबसे ज्यादा उत्साहित थे। आशा थी कि योगी जी हम सनातनधर्मियों की भावना का सम्मान करते हुए, हमारी सांस्कृतिक विरासतों की रक्षा में उदारता से सहयोग करेंगे। उनकी मंशा और धर्म के प्रति समर्पण में आज भी कोई संदेह नहीं है। 

वह सनातन संस्कृति की रक्षा के लिए भरपूर थैली खोले बैठे हैं पर विडम्बना यह है कि उनके चारों ओर वे लोग हैं, जो उनसे तमाम महत्वाकांक्षी योजनाओं को निज लाभ के लिए पारित करवा कर सनातन धर्म की परम्पराओं और भावनाओं पर कुठाराघात कर रहे हैं। योगी जी को इस मकडज़ाल से निकल कर मुक्त हृदय से दूसरे पक्ष की बात को भी गंभीरता से सुनने की सामथ्र्य दिखानी चाहिए, तभी धर्म की सच्ची सेवा होगी अन्यथा धर्म का विनाश होगा और केवल कुछ जेबें भरी जाएंगी। आगे हरि इच्छा।-विनीत नारायण


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Pardeep

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