भारत में चुनावी ‘भविष्यवाणियां’ करना सबसे कठिन

punjabkesari.in Monday, Dec 10, 2018 - 04:21 AM (IST)

मध्य प्रदेश तथा छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव कौन जीतेगा, इसे लेकर चुनावी सर्वेक्षण अनिश्चित हैं। शुक्रवार को प्रकाशित 9 चुनावी सर्वेक्षणों में से 8 ने कहा है कि कांग्रेस राजस्थान को जीत लेगी और इसी तरह तेलंगाना में टी.आर.एस. की विजय की सम्भावना है। मुझे यह देखकर हैरानी हुई कि चुनावी सर्वेक्षण यह बता रहे हैं कि भारतीय जनता पार्टी छत्तीसगढ़ तथा मध्य प्रदेश दोनों राज्यों में अपना बहुमत गंवा देगी। ऐसा दिखाई देता था कि जैसे यह दोनों राज्य गुजरात माडल का अनुसरण कर रहे हैं। यह सभी दो पार्टियों वाले राज्य हैं जहां कांग्रेस स्थायी रूप से विपक्ष में दिखाई देती है। यदि चुनावी सर्वेक्षण सही हैं तो मंगलवार को इसका अंत हो जाएगा। 

अमरीका में चुनावी भविष्यवाणियां
यद्यपि हमें निश्चित तौर पर पता नहीं है और इसका कारण यह भी है कि भारत में चुनावी सर्वेक्षणों के साथ समस्या है। अमरीका में हजार से भी कम सैम्पल आकार के साथ एक चुनावी सर्वेक्षण द्वारा परिणामों की भविष्यवाणी की जा सकती है। ऐसा टैलीफोन पर तथा आमतौर पर एक रोबोकॉल, अर्थात एक रिकार्डिड मैसेज, जो मतदाताओं से एक मेन्यू से विकल्प चुनने को कहता है, के माध्यम से किया जाता है। 2012 के चुनावों में नेट सिल्वर नामक एक चुनाव विश्लेषक ने अमरीका के सभी 50 राज्यों ने परिणामों की सटीक भविष्यवाणी की थी। 

अमरीका में केवल 2 पार्टियां हैं, रिपब्लिकन्स तथा डैमोक्रेट्स। वह आगे ब्ल्यू कालर तथा व्हाइट कालर कर्मचारियों और ग्रामीण व शहरी निवासियों में विभाजित हैं। फिर उनमें जाति आती है जिसमें सबसे बड़े अल्पसंख्यक अश्वेत तथा लैटिनो (अर्थात स्पैनिश बोलने वाले) हैं। जनमत सर्वेक्षण इन विभिन्नताओं के आधार पर होते हैं और सटीक तौर पर भविष्यवाणी करने में सक्षम होते हैं कि कौन जीतेगा। अमरीका में चुनाव के दिन न्यूज नैटवक्र्स एग्जिट पोल्स का आयोजन करते हैं जो गणना शुरू होने से पहले ही परिणामों की भविष्यवाणी कर देते हैं और ये भविष्यवाणियां अधिकतर सही होती हैं। 

सर्वाधिक पेचीदा राजनीतिक समाज
भारत में किसी भी अन्य लोकतांत्रिक राष्ट्र के मुकाबले सर्वाधिक पेचीदा राजनीति समाज है। हम भाषा, अर्थव्यवस्था, सांस्कृतिक भिन्नताओं विशेषकर उत्तर की दक्षिण तथा उत्तर पूर्व के साथ तुलना के आधार पर विभाजित हैं। हम एक और रूप में विभाजित हैं जो बहुत अधिक मुखर हो गया है और वह है धर्म। और फिर जाति का असामान्य तथा विलक्षण विभाजन है। यह चुनावों की भविष्यवाणी करना कठिन बनाता है, विशेषकर उनके लिए जो करीब है। भारत में एक बहुत बड़े आकार के सैम्पल साइज की जरूरत है और इसके लिए बहुत अधिक धन की जरूरत होती है क्योंकि एग्जिट पोल करवाने वाली एजैंसियों को लोगों का साक्षात्कार करने के लिए फील्ड एजैंट्स को भेजना  होता है। 

कुछ एजैंसियां इसका एक अनोखा समाधान पा लेती हैं। एक टुडे’का चाणक्य नामक सफल एजैंसी है जिसका कहना है कि उसके पास प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र का आकलन करने के लिए एक अलग तरीका है। कई बार यह प्रतिक्रियादाताओं के समक्ष खुलासा नहीं करती कि यह एक चुनावी सर्वेक्षण करवा रही है। चुनावी सर्वेक्षकों के सामने एक सबसे बड़ी समस्या यह है कि भारत में लोग आमतौर पर झूठ बोलते हैं। इसलिए नहीं कि हम चालाक लोग हैं बल्कि इसलिए क्योंकि हमें विश्वास नहीं होता कि इस सूचना का इस्तेमाल कैसे किया जाएगा और क्या इसका खुलासा करने से हमें कोई हानि होगी। सी.एस.डी.एस.नामक एजैंसी ने चुनावों के बाद एक सर्वेक्षण किया जिसमें इसने अपने स्टाफ को लोगों के घरों में भेजा तथा 30 मिनट के गहन साक्षात्कार किए। वह यह जानना चाहती थी कि लोगों ने इस तरह से मतदान क्यों किया तथा उसके सामने कौन से मुद्दे हैं। उनका सैम्पल साइज अपेक्षाकृत छोटा था क्योंकि उनका लक्ष्य मात्रा अथवा संख्या की बजाय गहराई तथा गुणवत्ता था। 

अनुमान पर आधारित निष्कर्ष
आमतौर पर चुनावी एजैंसियां महज अनुमान लगाती दिखाई देती हैं। मुझे लगभग 15 वर्ष पूर्व एक आम चुनाव की याद है जिसमें एजैंसी का नेतृत्व मेरे मित्र चुनाव विश्लेषक जी.वी.एल. नरसिम्हा राव (जो इन दिनों भाजपा के एक नेता हैं) ने किया था। शो की मेजबानी एक अन्य मित्र स्तम्भकार स्वामीनाथन एस. अंकलेसरिया अय्यर ने की थी। जैसे ही परिणाम आना शुरू हुए, यह नतीजा निकला कि नरसिम्हा राव की एजैंसी लगभग सभी राज्यों में गलत साबित हुई। अय्यर ने उनसे इस बाबत पूछा तो राव ने कहा कि उनका राष्ट्रीय जोड़ न्यूनाधिक सही था। निश्चित तौर पर यह स्वीकार्य नहीं है और विज्ञान के छद्मावरण में महज अनुमान पर आधारित है। 

भारत में चुनाव परिणामों की अनिश्चितता से निपटने का एक तरीका रेंज बताना है। यदि हम मध्य प्रदेश के चुनावों पर नजर डालें तो चार एजैंसियों ने एक विशिष्ट संख्या नहीं बल्कि एक रेंज बारे भविष्यवाणी की, जिसमें कई बार 20 सीटों तक का बड़ा अंतर होता है। इसका अर्थ यह हुआ कि वह अपने चुनावी आंकड़ों को लेकर विश्वस्त नहीं है तथा इस बारे में भी निश्चित नहीं है कि कौन जीतेगा। आंकड़े भ्रमित करने वाले हैं अथवा संख्या इतनी करीब है और यह एक चीज की ओर इशारा करते हैं कि यद्यपि प्रधानमंत्री ने जोरदार प्रचार किया तो भी इन राज्यों में भाजपा का प्रभुत्व धूमिल पड़ता जा रहा है। 

राष्ट्रीय स्तर पर परिणाम बहुत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि 2014 के लोकसभा चुनावों में भाजपा ने राजस्थान, मध्य प्रदेश तथा छत्तीसगढ़ में 65 लोकसभा सीटों में से 62 जीती थीं। यदि यह स्पष्ट हो जाता है कि भाजपा उत्तर भारत में अपना आधार खो रही है तो विपक्ष का मनोबल बढ़ेगा तथा गठबंधन बनाने में आसानी होगी। इस मायने में हमने 2014 से जितने भी विधानसभा चुनाव देखे हैं, यह सबसे महत्वपूर्ण हैं। 


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Pardeep

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