संपादक-पत्रकार के रूप में अम्बेडकर सब पर भारी

punjabkesari.in Sunday, Dec 09, 2018 - 03:40 AM (IST)

बाबा साहेब अम्बेदकर का स्मरण सामान्यत: लकीर के फकीर बन कर किया जाता है। हर कोई अपने-अपने ढंग से उनको परिभाषित करता है लेकिन इतना सत्य है कि दुनिया में सबसे ज्यादा उद्धृत किए जाने वाले महापुरुषों में अम्बेदकर हैं, जिन्होंने साधारण से असाधारण तक का सफर कुछ इस तरह किया कि लाखों अति साधारण आज अत्यंत असाधारण बन सकें। फिर भी हमारे समाज के एक बड़े वर्ग के मन में अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए भेदभाव का भाव अभी तक मिटा नहीं है। 

एक ही उदाहरण से समझिए। हमारे देश में 9 करोड़ से अधिक वाल्मीकि हैं लेकिन हर शहर, संस्थान और गांव में सफाई कर्मचारी के नाते वाल्मीकि ही क्यों मिलते हैं? दुनिया में इससे बढ़कर अभिशाप क्या किसी और जाति को मिला है कि जो जन्मते ही सफाई कर्मचारी बन जाए? पाकिस्तान की सेना ने पिछले दिनों एक विज्ञापन छापा था कि उन्हें सेना में सफाई कर्मचारी के लिए हिन्दू वाल्मीकि जाति के लोग चाहिएं। हिन्दू धर्म की बात करने वाले लोगों का उस समय खून नहीं खौला। 

मीडिया में अनुसूचित जाति के युवाओं की कमी
वह तो नरेन्द्र मोदी के कौशल विकास और अनुसूचित जाति को कौशल क्षेत्र में लाने का नतीजा है कि भारत में अब वाल्मीकि युवक-युवतियां ग्राफिक डिजाइनर, सेल्स मैनेजर, सॉफ्टवेयर इंजीनियर और एम.बी.ए. भी दिख रहे हैं। लेकिन मीडिया के क्षेत्र में अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के युवाओं की विराट अनुपस्थिति किसी को खलती क्यों नहीं? जो लोग सब क्षेत्रों में इस वर्ग के आरक्षण की मांग करते हैं, वे मीडिया में उनकी अनुपस्थिति से परेशान क्यों नहीं होते? कुल 28 प्रतिशत जनसंख्या होने के बावजूद अनुसूचित जाति और जनजाति के लोग मीडिया में एक प्रतिशत से भी कम दिखते हैं। 

डा. भीमराव अम्बेदकर केवल सामाजिक परिवर्तन के ही पुरोधा नहीं थे बल्कि उन्होंने पत्रकारिता के क्षेत्र में वेदना के शब्दों का मीडिया धर्म निभाया और मूक नायक, बहिष्कृत भारत एवं अंग्रेजी में डिप्रैस्ड इंडिया जैसी पत्रिकाओं द्वारा अनुसूचित जाति समाज में स्वाभिमान और संघर्ष की अलख जगाई। उन्होंने कहा था कि भारत में एक समय पत्रकारिता मिशन होती थी, जो जनता के दुख-दर्द को प्रकट करने के लिए निर्भीकता से सत्य को प्रकट करती थी लेकिन आज पत्रकारिता व्यवसायमें तबदील हो गई है जो समझौते करती है और मुनाफे के लिए सच्चाई प्रकट करने से हिचकिचाती है। अनुसूूचित जाति और जनजाति वर्ग के दर्द को व्यक्त करने के लिए कितने संपादक व पत्रकार सामने आते हैं और कितने अपने यहां इस वर्ग के युवाओं को काम करने या प्रशिक्षण लेने का मौका देते हैं? 

वाल्मीकि भाईचारे की अवहेलना
वास्तव में भारत में धनपतियों के लिए हर प्रकार की शिक्षा के केन्द्र खोले जाते हैं। करोड़पति लोग इतने बड़े-बड़े विद्यालय, जिनमें वातानुकूलित कक्षाएं होती हैं तथा लाखों रुपए सालाना की फीस ली जाती है, खोलते हैं ताकि न तो उन्हें अपनी कमाई पर टैक्स देना पड़े और बिना विशेष मेहनत के उनका धन भी कई गुना बढ़ता रहे। इनमें 90-95 प्रतिशत हिन्दू ही होते हैं, पर वे अपने ही समाज के उस वर्ग की शिक्षा के लिए प्रयास करते कभी दिखते नहीं, जो न केवल सबसे ज्यादा रामभक्त हैं बल्कि आदि रामकथा के रचयिता कवि भगवान वाल्मीकि के वंशज हैं। वाह रे राम भक्तो! राम की भक्ति में सबसे आगे और राम के भक्तों की दुर्दशा में भी सबसे आगे? 

ऐसी परिस्थिति में देश के कुछ सम्पादकों व पत्रकारों ने अपनी पहल पर एक ऐसे डा. अम्बेदकर मीडिया सशक्तिकरण विद्यालय की रचना की है जिसमें देश के श्रेष्ठ पत्रकारिता विद्यालयों में पढ़ाए जाने वाले पाठ्यक्रम ही नहीं, बल्कि आर्टीफिशियल इंटैलीजैंस और एथीकल हैकिंग और साइबर सिक्योरिटी के विषय भी शामिल किए हैं। सबसे पहले देहरादून, पुणे और गुवाहाटी के बाद पटना, औरंगाबाद और तमिलनाडु और उत्तर पूर्वांचल के राज्यों में भी इनकी शाखाएं खोलने की मांग है। इन पंक्तियों के लिखे जाते समय वाल्मीकि समुदाय के अनेक युवाओं ने मीडिया में आने की इच्छा दर्शाने वाले फोन किए तो मुझे लगा जात-पात का यह सिलसिला तोडऩा ही अम्बेदकर को सबसे बड़ी श्रद्धांजलि है। 

शौर्य और पराक्रम का दिन
इससे बढ़कर देश और समाज पर कोई कलंक नहीं हो सकता कि किसी जाति को जन्मते ही उसके लिए सदियों से रूढि़वादियों द्वारा निर्धारित कर्म सौंप दिया जाए। वह दिन इस देश के लिए सबसे बड़ा शौर्य और पराक्रम का होगा, जब हमारे समाज में सब लोग जाति के आधार पर भेदभाव को त्याग कर इस सिद्धांत पर काम करें कि जिसके हाथ में कौशल वही आगे बढ़ेगा और जिसके पास जाति का भेदभाव, वह नीचे जाएगा। कौशल जाति नहीं पूछता। भगवान जाति नहीं पूछता। धर्म जाति नहीं पूछता। केवल हम ही लोग हैं जो धर्मराज से लेकर यमराज तक अपने देवी-देवता जातियों में बांट देते हैं। 

मीडिया में अम्बेदकर वास्तव में सामाजिक समरसता और समता के लिए एक मीडिया सत्याग्रह प्रतीत होता है जिसमें जुडऩे के लिए हर जाति के लोग शामिल हो रहे हैं। वास्तव में यह कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं है कि अगर इस देश में सबसे ज्यादा जाति रहित या जाति के भेदभाव से विमुक्त कोई समुदाय है तो वह मीडिया का समुदाय है। मीडिया सत्याग्रह के माध्यम से अनुसूचित जाति और जनजाति के युवा अपनी वेदना और संघर्ष को ही सिर्फ बेहतर ढंग से व्यक्त नहीं कर पाएंगे, बल्कि समाज में समता का भाव उसी तीव्रता से फैला पाएंगे जिस तीव्रता के साथ संपादक एवं पत्रकार डा. भीमराव अम्बेदकर ने बढ़ाया था। इस मीडिया सत्याग्रह को रंगभेद और राजनीति के भेद से परे जिस प्रकार का समर्थन मिल रहा है वह कलम के धन और शब्द की शक्ति के लिए शुभ है।-तरूण विजय


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Pardeep

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